आप भी गुस्से में बच्चे पर कभी भी उठा देती हैं हाथ तो कर रही हैं बड़ी गलती, साइकाइट्रिस्ट ने बताया बच्चे पर क्या पड़ता है प्रभाव 

अक्सर मां को गुस्सा आता है या बच्चा कोई गलती करता है तो मां बच्चे को एक-आधा थप्पड़ लगा देती हैं. लेकिन, साइकाइट्रिस्ट इस आदत पर चिंता जताते हैं. जानिए बच्चे पर जबतब हाथ उठाने को लेकर एक्सपर्ट्स का क्या कहना है. 

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बच्चे को मारने की है आदत तो एक बार सुन लें साइकाइट्रिस्ट की यह बात. 

Parenting: सोशल मीडिया पर आयदिन ऐसे वीडियो वगैरह देखने को मिल जाते हैं जिनमें मां बच्चे को मारती, पीटतीं या उसे फिजिकली चोट पहुंचाती नजर आ जाती हैं. हाल ही में ऐसा ही एक वीडियो सामने आया है जिसमें एक मां अपने 11 साल के बच्चे को बेरहमी से पीटती हुई नजर आ रही है. वहीं, आस-पास भी यह खूब देखने को मिलता है जहां माएं बच्चे को कभी गुस्से में, कभी उसकी कोई गलती पर, कभी बात ना मानने पर तो कभी किसी और कभी मजाक में ही थप्पड़ लगा देती हैं. कई बार माओं का यह कहना होता है कि बच्चा बात नहीं मानता है तो ऐसा करना जरूरी होता है या फिर किसी और बात पर गुस्सा (Anger) गलती से बच्चे पर निकल जाता है. लेकिन, ये छोटी सी गलती बच्चे के भविष्य तक को प्रभावित करने वाली साबित होती है. कई बार बच्चे का वर्तमान बिगड़ता है तो कई बार बच्चे को मानसिक क्षति पहुंचती है जो जीवनभर उनके साथ रहती है. इसपर हमने कुछ साइकाइट्रिस्ट्स और एक्सपर्ट्स से बात की है जो यह बता रहे हैं कि माता-पिता के इस तरह गुस्से में या किसी और कारण से बच्चे पर हाथ उठाने से बच्चे पर किस तरह के प्रभाव पड़ते हैं और बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है. 

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बच्चे पर गुस्से में क्यों नहीं उठाना चाहिए हाथ 

साइकाइट्रिस्ट और फॉर्टिस नैशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम, फॉर्टिस हेल्थकेयर के चेयरपर्सन डॉ. समीर पारीख कहते हैं कि, "यह समझने की जरूरत है कि शारीरिक दंड या कहें फिजिकल पनिशमेंट बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है. यह बच्चे के लिए ट्रॉमेटिक एक्सीपिरियंस हो सकता है. इससे बच्चे को एंजाइटी होने लगती है, पढ़ाई पर असर पड़ता है, दोस्ती पर असर पड़ता है क्योंकि बच्चे विश्वास खो देते हैं और लंबे समय तक होने वाली परेशानियां बढ़ती हैं. इससे बच्चों में एक डर बना रहता है कि अगली बार कब उन्हें मार पड़ेगी या उनकी पिटाई होगी. उनके मन में यही रहता है कि कहीं उनसे कोई गलती ना हो जाए. बच्चे माता-पिता से मार के डर से उनसे चीजें छुपाने भी लगते हैं और खुलकर बात नहीं कर पाते हैं. ऐसे में पैरेंट्स के लिए समझना जरूरी है कि उन्हें बच्चों के साथ ओपन रिलेशनशिप रखना है जिससे बच्चे अपने मन की बात माता-पिता से बेझिझक कह पाएं."

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डॉ. पारीख आगे कहते हैं कि, "पैरेंट्स के लिए अपने गुस्से को काबू में रखना बेहद जरूरी है. माता-पिता की कोशिश होनी चाहिए कि वे बच्चों की गलती पर उन्हें समझाएं, उनसे बात करें, उन्हें मार्गदर्शन दें, गलती सुधारने का मौका दें और जब वे कुछ अच्छा काम करें तो उनकी सराहना करें. तारीफ और समझाने से आप बच्चे के व्यवहार को शेप कर सकते हैं बजाय उसपर हाथ उठाने के."

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जब पैरेंट्स बच्चे को मारते हैं तो इससे बच्चे पर क्या असर पड़ता है, इस सवाल के जवाब में फॉर्टिस स्कूल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम की हेड और क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट मिमांसा सिंह तंवर कहती हैं, "बच्चे को मारने से बच्चा यह नहीं सीखता कि हमें क्या चीज बदलने की जरूरत है. बच्चे को मारना एक मोंमेटरी काम है जिससे आपको लगता है कि बच्चा इस सजा और डर से बात को बेहतर तरह से समझेगा. लेकिन, रिसर्च में हमेशा से यही सामने आया है कि मारने से बच्चे का गुस्सा बढ़ता है या फिर बच्चे के अंदर आत्मविश्वास इतना कम हो जाता है कि बच्चा अपनेआप को एक्सप्रेस नहीं कर पाता. अलग-अलग क्षेत्रों में बच्चे पर असर पड़ता है, बच्चा अपने बारे में नकारात्मक (Negative) रूप से सोचने लगता है या फिर बच्चे को फर्क पड़ना बंद हो जाता है क्योंकि उसे यह लगने लगता है कि वह कोई भी गलत काम करेगा तो उसे मार तो पड़ेगी ही. इससे समय बीतने के साथ-साथ आपके और बच्चे के रिश्ते में कॉम्प्लेक्सिटी आने लगती है. बच्चे को पहले की तरह अटैचमेंट नहीं रहती है आपके साथ और वह आपसे दूर होने लगता है जिसकी एक वजह यह भी है कि बच्चे को लगने लगता है कि माता-पिता उसे नकारात्मक दृष्टि से देखने लगे हैं."

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मिमांसा आगे कहती हैं, "बच्चे गलतियां करते हैं और इन गलतियों से सीखते हुए आगे बढ़ते हैं. माता-पिता होने के नाते हमारी अप्रोच नेगेटिव और ऑथोरिटी वाली होने की जगह या कभी भी बच्चे पर हाथ उठाने या उसे कुछ भी बोल देने के बजाय बच्चे को सकारात्मक तरीके से समझाने और बदलाव के बारे में बताने की होनी चाहिए. इससे बच्चे को भी यही लगता है कि माता-पिता उसे समझने और सुधार के लिए उसकी मदद कर रहे हैं तो बच्चे का कोंफिडेंस बढ़ता है और वह चीजें बेहतर तरह से समझता है. जब आपको गुस्सा आए तो बच्चे के ऊपर गुस्सा निकालने के बजाय इस स्थिति से हटने की कोशिश करें. ज्यादा डांटने या मारने-पीटने के बजाय उसे समझाने की कोशिश करें. 

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पैरेंटिंग एक्सपर्ट एंड चाइल्ड एंड रिलेशनशिप काउंसलर डॉ. गीतांजली शर्मा कहती हैं, "जब बच्चा छोटा होता है, दुनिया में आता है, तो दुनिया को पैरेंट्स की नजरों से देखता है. कम उम्र के बच्चे का दिमाग तेजी से ग्रो करता है, उसके न्यूरोलॉजिकल फंक्शंस ग्रो कर रहे होते हैं जिनके सही विकास के लिए शांतिपूर्ण, सुरक्षित और विश्वास वाला वातावरण होना बेहद जरूरी है. ऐसे में अगर बच्चे के साथ मार-पीट की जाती है तो बच्चा हर समय एक डर में रहता है. उसे वृद्धि और विकास के लिए सही वातावरण नहीं मिलता. बच्चा हमेशा फाइट या फ्लाइट मोड में रहता है, अलर्ट मोड में रहता है. बच्चे को एंजाइटी (Anxiety) होने लगती है, उसे स्थिति और लोगों पर विश्वास करने में दिक्कत होती है, जल्दी लड़ने लगता है. जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है उसमें दुख और खालीपन की भावनाएं आने लगती हैं. मारपीट से बच्चे को लगने लगता है कि उसकी गलती है जिससे वह खुद को दोष देने लगता है, उसका आत्मविश्वास कम होता है और आत्मसम्मान की कमी होने लगती है. आगे चलकर बच्चे के रिलेशनशिप, कम्यूनिकेशन स्किल्स, प्रोब्लम सोल्विंग स्किल्स और सोशल स्किल्स पर भी प्रभाव पड़ता है."

बच्चे पर गुस्सा आने की स्थिति में पैरेंट्स को क्या करना चाहिए इसपर डॉ. गीतांजली का कहना है कि "बच्चे को समझना सबसे जरूरी है. अगर पढ़ाई को लेकर दिक्कत है तो जानने की कोशिश करें कि उसे पढ़ने में क्या परेशानी आ रही है या वो पढ़ना क्यों नहीं चाहता. पढ़ाई को इंट्रेस्टिंग बनाने की कोशिश की जा सकती है. बच्चे को मोटिवेट करने की कोशिश करें. दूसरों बच्चों से तुलना करने से बचना चाहिए और पैरेंट्स को अपनी अपेक्षाओं को भी कुछ कम करने की जरूरत है."

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