Save Aravalli: आखिर क्या है 'अरावली' शब्द का मतलब? भारत के सबसे पुरानी पहाड़ श्रृंखला में है शुमार

Save Aravalli अभियान फिर चर्चा में है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने Aravalli Hills की परिभाषा बदल दी है, जिससे 90% क्षेत्र कानूनी सुरक्षा से बाहर हो सकता है. जानें Aravalli शब्द का मतलब, इसका Sanskrit Origin, भारत की Oldest Mountain Range होने का महत्व.

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Save Aravalli Campaign: "अगर आप लगभग तीन अरब साल पहले कोई एलियन या स्पेस ट्रैवलर होते, तो आपको सिर्फ एक ही खास चीज दिखती जो उस जमीन के उत्तरी किनारे को बताती थी जिसे हम भारत कहते हैं, वह अरावली पहाड़ की रेंज होती. लेकिन अरावली अब नेताओं और कॉर्पोरेशन्स के लालच, छोटी सोच और बहुत ज्यादा दूर की न सोचने की वजह से जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रही है." एनवायरनमेंट कैंपेनर प्रणय लाल ने अपने 2019 के आर्टिकल "अरावली: एक खोया हुआ पहाड़" में लिखा.

अरावली भारत की सबसे पुरानी पहाड़ी श्रृंखला है, जो अब अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने अरावली की परिभाषा बदल दी है, जिससे पर्यावरणविदों में चिंता बढ़ गई है. सोशल मीडिया पर #SaveAravalli ट्रेंड कर रहा है और लोग सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर अरावली का मतलब क्या है और यह क्यों इतनी महत्वपूर्ण है?

अरावली का मतलब क्या है?

‘अरावली' शब्द संस्कृत से आया है. इसमें दो शब्द शामिल हैं, ‘आरा' जिसका अर्थ है रिज या ओवल (पर्वत की धार या गोलाकार आकृति), और ‘वली' जिसका अर्थ है लाइन या रो (श्रृंखला या कतार). यानी अरावली का मतलब है “चोटियों की लाइन” या “रिज की श्रृंखला”. यह भारत की सबसे पुरानी पहाड़ी रेंज है, जो गुजरात से लेकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई है.

अरावली क्यों है खास?

अरावली दुनिया के सबसे पुराने फोल्ड माउंटेन सिस्टम में से एक है. यह न सिर्फ भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए भी अहम है. अरावली रेंज रेगिस्तान को फैलने से रोकती है, ग्राउंडवॉटर रीचार्ज करती है और जैव विविधता को बनाए रखती है.

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला

20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा तय की. अब सिर्फ वे लैंडफॉर्म जो स्थानीय इलाके से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचे हैं, उन्हें अरावली माना जाएगा. पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे अरावली के 90% हिस्से को कानूनी सुरक्षा से बाहर कर दिया जाएगा.

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क्या होगा असर?

अगर यह परिभाषा लागू होती है, तो निचली पहाड़ियों पर खनन, रियल एस्टेट डेवलपमेंट और अन्य गतिविधियों की इजाजत मिल सकती है. इससे रेगिस्तान का विस्तार होगा, भूजल स्तर गिर जाएगा और पहले से प्रदूषण और पानी की कमी से जूझ रहे इलाकों में पर्यावरणीय संकट गहरा जाएगा.

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पहले भी चेतावनी दी गई थी

सुप्रीम कोर्ट ने खुद 2018 में कहा था कि माइनिंग की वजह से अरावली की 31 पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं. इसके बावजूद कोर्ट ने केंद्र सरकार के 2010 के क्राइटेरिया को अपनाया है, जिससे विवाद और बढ़ गया है.

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