क्या होती है JPC? जिसमें भेजा गया पीएम और सीएम को कुर्सी से हटाने वाला बिल

Joint Parliamentary Committee: गंभीर आपराधिक मामले, जिनमें कम से कम पांच साल की सजा हो सकती है, उनमें 30 दिन तक जेल में रहने वाले मंत्रियों को पद से हटाने का प्रावधान है.

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जेपीसी में भेजे गए मंत्रियों को हटाने वाले बिल
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  • संसद में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों के पद छोड़ने के प्रावधान वाले तीन विधेयकों को लेकर विवाद हुआ
  • विपक्षी दलों का कहना है कि ये विधेयक संविधान और मौलिक अधिकारों के खिलाफ हैं
  • गृहमंत्री अमित शाह ने विवादित विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति जेपीसी में भेजने की सिफारिश की
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Joint Parliamentary Committee: प्रधानमंत्री हों या फिर मुख्यमंत्री, अगर जेल गए तो कुर्सी छोड़ने पर मजबूर करने वाले बिल को लेकर संसद में जमकर हंगामा हुआ. गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में इससे जुड़े तीन विधेयक पेश किए. इसमें किसी आपराधिक मामले में जेल जाने वाले पीएम, सीएम या फिर मंत्रियों के लिए सख्त कानून बनाए जाने की बात कही गई है. ऐसे मंत्री अगर जेल जाते हैं और 30 दिन तक उन्हें बेल नहीं मिलती है तो उन्हें पद से हटा दिया जाएगा. अब इस बिल को जेपीसी में भेजने की बात कही गई है. ऐसे में आइए जानते हैं कि जेपीसी क्या होती है और तमाम विवादित बिलों को इसमें क्यों भेजा जाता है. 

तीन विधेयकों पर क्यों है बवाल?

सबसे पहले ये जान लेते हैं कि तीनों विधेयकों पर संसद में बवाल क्यों हो रहा है. दरअसल विपक्षी दलों का कहना है कि ये संविधान के खिलाफ है. इसे मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया जा रहा है. इस बिल के विरोध में विपक्षी सांसदों ने इसकी कॉपियां भी फाड़ दीं. 

  • तीनों विधेयकों का नाम संघ राज्य क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 है.
  • गंभीर आपराधिक मामले, जिनमें कम से कम पांच साल की सजा हो सकती है, उनमें 30 दिन तक जेल में रहने वाले मंत्रियों को पद से हटाने का प्रावधान
  • इसमें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों और राज्यों के मंत्रियों को शामिल किया गया है
  • हंगामे के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने इन बिलों को जेपीसी में भेजने की सिफारिश की

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क्या होती है JPC?

जेपीसी का मतलब ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (संयुक्त संसदीय समिति) होता है.  जिन बड़े मामलों पर गहराई से चर्चा और विचार करने की जरूरत होती है, उन्हें जेपीसी में भेज दिया जाता है. JPC दो तरह की होती हैं, जिनमें एक अस्थायी कमेटी होती है और दूसरी स्टैंडिंग कमेटी... स्पीकर जेपीसी के गठन के वक्त ही कार्यकाल का निर्धारण भी कर देते हैं. जेपीसी का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है. हालांकि कई बार देखा गया है कि कुछ बिल जेपीसी में जाने के बाद ठंडे बस्ते में चले जाते हैं.

  • जेपीसी मामले से जुड़े किसी भी व्यक्ति या संस्था से पूछताछ कर सकती है और पेश होने के लिए बुला सकती है. 
  • जेपीसी स्पीकर को अपनी रिपोर्ट पेश करती है और अंतिम फैसला स्पीकर ही लेते हैं. 
  • सरकार को अगर लगता है कि जेपीसी की रिपोर्ट देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकती है तो वो उसे रोक सकती है.
राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान हुए बोफोर्स घोटाले के मामले को भी जेपीसी में भेजा गया था. इसके अलावा हर्षद मेहता स्टॉक मार्केट घोटाला (1992), केतन पारेख शेयर बाजार घोटाला (2001), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी, 2016) और व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (2019) भी जेपीसी में गया था. हाल ही में वक्फ बिल को लेकर भी बवाल मचा था, जिसके बाद इसे जेपीसी में भेजने का फैसला लिया गया.

जेपीसी में कौन-कौन होता है?

जब भी कोई बिल जेपीसी में भेजा जाता है तो स्पीकर सबसे पहले जेपीसी का गठन करते हैं. इसमें राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों को शामिल किया जाता है. इसमें लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा सदस्यों से दोगुनी होती है. आमतौर पर 15 सदस्यों की जेपीसी बनाई जाती है. जिस पार्टी के ज्यादा सांसद होते हैं, उसके ज्यादा सदस्य जेपीसी में होते हैं. स्पीकर ही जेपीसी सदस्यों की संख्या को तय करते हैं और ये भी फैसला लेते हैं कि किस दल से कितने सदस्य शामिल होंगे. 

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