'भारतीय सेना में आपके लिए जगह नहीं...', SC ने ईसाई अफसर को लगाई फटकार, जानें-पूरा मामला

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'वह किस तरह का संदेश दे रहा है? यह सेना अधिकारी की गंभीर अनुशासनहीनता है. उसे बर्खास्त किया जाना चाहिए था. ऐसे झगड़ालू लोग सेना में रहने के योग्य नहीं हैं.'

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई सेना अधिकारी सैमुअल कमलेसन की याचिका खारिज करते हुए उसे अनुशासनहीन बताया.
  • अदालत ने कहा कि कमलेसन सेना में रहने के योग्य नहीं हैं क्योंकि उन्होंने सीनियर के आदेश का उल्लंघन किया.
  • कमलेसन ने गुरुद्वारे में जाने ने से इनकार किया था, जिसके कारण उन्हें सेना से बर्खास्त किया गया था.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक ईसाई आर्मी ऑफिसर की याचिका पर सुनवाई हुई. इस ईसाई अफसर को गुरुद्वारे में पूजा करने से मना करने पर नौकरी से निकाल दिया गया था. याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ईसाई सेना अधिकारी को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि वह मिलिट्री में रहने के लायक नहीं है.

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'वह किस तरह का संदेश दे रहा है? यह सेना अधिकारी की गंभीर अनुशासनहीनता है. उसे बर्खास्त किया जाना चाहिए था. ऐसे झगड़ालू लोग सेना में रहने के योग्य नहीं हैं.'

'भारतीय सेना के लिए अनुपयुक्त'

अदालत ने आगे कहा, 'वह भले ही एक उत्कृष्ट अधिकारी हो, लेकिन भारतीय सेना के लिए अनुपयुक्त है. इस समय हमारी सेनाओं पर जो जिम्मेदारियां हैं, उसमें ऐसे रवैये को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.'

यह भी पढ़ें- पिता ने पूरे शहर में क्यों निकाली बेटी की शाही सवारी, दूल्हे की प्रथा को दुल्हन ने क्यों निभाया

आपको बता दें कि सैमुअल कमलेसन तीसरी कैवलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट थे. लेकिन उन्होंने गुरुद्वारे में पूजा करने के लिए जाने से अपने सीनियर के आदेश को मना कर दिया था. उन्होंने कहा था कि उनका ईसाई धर्म इसकी इजाजत नहीं देता. इसके बाद उन्हें मिलिट्री डिसिप्लिन तोड़ने के लिए निकाल दिया गया था.

HC से भी लगी थी फटकार

इससे पहले मई में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सेना के फैसले को बरकरार रखा था और कहा था कि कमलेसन ने 'अपने धर्म को सीनियर के ऑर्डर से ऊपर रखा', जो स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है. अदालत ने इसे सैन्य मूल्यों का उल्लंघन बताया.

Advertisement

'वर्दी में रहते हुए निजी व्याख्या नहीं थोप सकते' 

आज सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी याचिका खारिज कर दी. न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची ने टिप्पणी की कि पूर्व अधिकारी ने अपने पादरी की सलाह तक नहीं मानी. जस्टिस बागची ने कहा, 'जब आपका पादरी आपको समझाता है, तो बात वहीं खत्म हो जाती है. आप अपनी निजी व्याख्या नहीं थोप सकते, खासकर वर्दी में रहते हुए.'

यह भी पढ़ें- सही समय पर करारा जवाब देंगे… पाकिस्तान सेना के हमले के बाद मुनीर को तालिबान की धमकी

Advertisement

कमलेसन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि उन्हें एक ही गलती के लिए बर्खास्त किया गया और उन्होंने अन्य धर्मों का सम्मान दिखाया था, जैसे होली और दिवाली में भाग लेकर.

शंकरनारायणन ने यह भी कहा कि संविधान व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार देता है और साथ ही अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में भाग न लेने का भी अधिकार देता है. शंकरनारायणन ने कहा, 'सेना में शामिल होने से कोई अपनी धार्मिक पहचान नहीं खोता. मैं गुरुद्वारे, मंदिर में गया, लेकिन जब पूजा करने को कहा गया तो रुक गया. संविधान इतना अधिकार देता है.' हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया.

Advertisement

Featured Video Of The Day
Delhi Blast Case: Private Hospitals और Medical Colleges के लॉकर्स की जांच, मुजम्मिल का खुलासा | J&K