World Elephant Day: खयाल रखने से तनाव दूर करने तक, हाथियों की दुनिया बदल रहीं महिला महावतों की कहानी

संपन्न पृष्ठभूमि से आने वालीं पार्बती ने सादा जीवन चुना. अपने पिता की तरह, उन्हें बचपन से ही हाथियों से काफी लगाव था. 14 साल की उम्र से ही उन्होंने हाथियों को  ट्रेंड करना शुरू कर दिया था.

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  • महिला महावतों की संख्या केरल, असम, कर्नाटक में बढ़ रही है और वे विभिन्न संरक्षण प्रोजेक्ट में कार्यरत हैं.
  • पद्मश्री पार्बती बरुआ देश की पहली महिला महावत हैं, जिन्होंने हाथी संरक्षण में 4 दशकों तक योगदान दिया.
  • राधा लक्ष्मी और रेणुका जैसी महिला महावत भारत में पुरुष प्रभुत्व वाले पेशे में अपनी जगह बना रही हैं.
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नई दिल्‍ली:

धुंधली-सी सुबह. केरल का पेरियार टाइगर रिजर्व. हाथियों के पैरों की भारी आहट सुनाई देती है. इन विशालकाय जीवों को संभालने वाली एक शख्सियत पर आपकी नजर पड़ती है. आप देखते हैं कि सफेद कमीज और नीली लुंगी में वो कोई अनुभवी बुजुर्ग महावत नहीं, बल्कि 32 साल की राधा लक्ष्मी हैं. उनके हाथ में कोई 'अंकुश' नहीं, बल्कि केले की एक गठरी है. आप चौंक जाते हैं, वो मुस्‍कुराते हुए कहती है- 'हाथियों को प्‍यार से ज्‍यादा कुछ नहीं चाहिए.' 

अब एक दृश्‍य सोचिए. कर्नाटक के एक जंगल में कोई हाथी दुर्घटना का शिकार हो गया, उसके साथ चल रहे मासूम बच्‍चे पर क्‍या बीतेगी. अब बचपन की घटना के चलते वो जिस ट्रॉमा से गुजर रहा था, उसे उबारना है और फिर से उसकी दुनिया खुशनुमा बनानी है. आप सोच रहे होंगे कि कितना मुश्किल काम है ये. लेकिन यही काम करती हैं, रेणुका, जो कनार्टक में हाथियों के रिहैबिलिटेशन सेंटर में काम करती हैं.

राधा लक्ष्‍मी और रेणुका देश की उन चुनिंदा महिला महावतों में से हैं, जो एक ऐसे पेशे में जगह बना रही हैं, जिसमें लंबे समय तक केवल पुरुषों का ही वर्चस्‍व रहा.  

पुरुषों का वर्चस्‍व तोड़ती महिलाएं

महावत का पेशा भारत में सदियों पुराना है. राजाओं के दरबार से लेकर जंगल के कामकाज और धार्मिक आयोजनों तक, हाथी संभालने का काम हमेशा पुरुषों के हिस्से में रहा. लेकिन 2010 के बाद ये तस्वीर बदलने लगी. केरल, कर्नाटक, असम और राजस्थान में महिला महावतों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ी. इस बदलाव के पीछे सरकारी वाइल्डलाइफ ट्रेनिंग प्रोग्राम, एनजीओ की पहल और टूरिज्‍म सेक्‍टर में जेंडर इक्विलिटी जैसी नीतियों की अहम भूमिका रही है. 

देश में कितनी हैं महिला महावत?

आधिकारिक आंकड़े सीमित हैं, लेकिन WWF इंडिया और प्रोजेक्ट एलीफैंट के अनुसार, देशभर में अब लगभग 35 से 40 प्रशिक्षित महिला महावत सक्रिय हैं. इनमें से सबसे अधिक केरल और असम में हैं, उसके बाद कर्नाटक और राजस्थान का नंबर आता है. ये महिलाएं नेशनल पार्क, टूरिस्ट कैंप, हाथी रिहैबिलिटेशन सेंटर और वन विभाग के संरक्षण प्रोजेक्ट में काम कर रही हैं.

  • महिला महावत बनने का रास्ता आसान नहीं है. सबसे पहली चुनौती तो शारीरिक ताकत के मिथक को लेकर है. आम धारणा है कि हाथियों जैसे विशालकाय जानवर को केवल पुरुष ही संभाल सकते हैं.
  • दूसरी चुनौती है, समाज की नजर में ये काम. कई बार गांव और कस्बों में महिलाओं को इस पेशे में उतरने पर ताने सुनने पड़ते हैं.
  • तीसरी बड़ी चुनौती सुविधाओं की कमी की है. जंगल कैंप में रहने की जगह और सुरक्षा इंतजाम अक्सर पुरुष महावतों के हिसाब से होते हैं. इससे महिलाओं को अतिरिक्त मुश्किल झेलनी पड़ती है.

पहली महिला महावत पद्मश्री पार्वती

पार्बती बरुआ को देश की पहली महिला महावत के तौर पर जाना जाता है. उन्‍हें जिन्हें हाथी की परी भी कहा जाता है. पशु कल्याण के लिए सामाजिक कार्य कैटगरी में उन्‍हें पद्मश्री सम्मान दिया  जा चुका है.  

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संपन्न पृष्ठभूमि से आने वालीं पार्बती ने सादा जीवन चुना. अपने पिता की तरह, उन्हें बचपन से ही हाथियों से काफी लगाव था. 14 साल की उम्र से ही उन्होंने हाथियों को  ट्रेंड करना शुरू कर दिया था. लगातार चार दशकों के प्रयास में उन्होंने कई जंगली हाथियों के रेस्‍क्‍यू में और हाथियों का जीवन संवारने में अहम भूमिका निभाई है. 

वह एशियन एलीफैंट स्पेशलिस्ट ग्रुप, IUCN की सदस्य हैं. उनके जीवन पर कई डॉक्यूमेंट्री भी बनी हैं. बीबीसी ने उनके जीवन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी. 

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राधा लक्ष्‍मी, नंदिता और रेणुका 

  • राधा लक्ष्मी (केरल): राधा लक्ष्मी केरल के पेरियार टाइगर रिजर्व में पिछले 6 वर्षों से काम कर रही हैं. वे हाथियों की मेडिकल देखभाल में विशेषज्ञ हैं और रिजर्व में घायल या बीमार हाथियों का उपचार करती हैं. उनका काम हाथी संरक्षण और उनकी सेहत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह वन्यजीवों और हाथियों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए वन विभाग के साथ मिलकर काम करती हैं. पेरियार रिजर्व की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता के बीच उनका योगदान हाथियों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने में अहम है.
  • नंदिता बरुआ (असम): नंदिता बरुआ असम के प्रसिद्ध काज़ीरंगा नेशनल पार्क में टूरिस्ट सफारी के लिए हाथियों को ट्रेनिंग देती हैं. वे हाथियों के व्यवहार को समझने और उन्हें प्रशिक्षित करने में माहिर हैं ताकि वे सुरक्षित ढंग से पर्यटकों के साथ सफारी कर सकें. उनका प्रशिक्षण हाथियों को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करता है, जिससे पार्क में पर्यटन अनुभव सुगम और सुरक्षित होता है. नंदिता का काम काज़ीरंगा के संरक्षण प्रयासों का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हाथियों और पर्यावरण संरक्षण को जोड़ता है.
  • रेणुका (कर्नाटक): रेणुका कर्नाटक के एक घायल हाथियों के रिहैबिलिटेशन सेंटर में काम करती हैं. उनका मुख्य कार्य घायल और मानसिक रूप से परेशान (PTSD) हाथियों की देखभाल और पुनर्वास करना है. वह हाथियों के मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देती हैं ताकि वे तनाव और भय से उबर सकें. रेणुका का काम हाथियों के पुनर्वास और प्राकृतिक जीवन में वापसी के लिए आवश्यक है. उनका प्रयास इन हाथियों को पुनः सामान्य जीवन जीने में मदद करता है, जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतर होता है और वे फिर से जंगल में सुरक्षित रह पाते हैं.

इको-टूरिज्म और महिला सशक्तीकरण

इन जैसी महिला महावत न केवल हाथियों की दोस्त बनी हैं, बल्कि इको-टूरिज्‍म में स्थानीय महिलाओं के लिए रोजगार का नया रास्ता भी खोल रही हैं. टूरिस्ट हाथी कैंप में महिला महावत का होना पर्यटकों में भरोसा और सुरक्षा की भावना बढ़ाता है. कुछ जगहों पर महिला महावत टूर गाइड, कस्टमर इंटरैक्शन और वाइल्डलाइफ एजुकेशन प्रोग्राम भी चला रही हैं.

ये महिला महावत साबित कर रही हैं कि बड़े बदलाव के लिए बड़े कद की नहीं, बड़े दिल की जरूरत होती है, चाहे कोई इंसान हो या हाथी. 

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