'दम तोड़ते' जल निकायों को 'जीवनदान' दे रहीं बुंदेलखंड की महिलाएं, इस तकनीक से पहुंचा रहीं कई गांवों तक पानी

सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह ने अग्रोथा में महिलाओं को बारिश के पानी के कल्टीवेशन और भंडारण के लिए तब प्रशिक्षित करने में मदद की, जब आसपास की भूमि सूखे के कारण सूख गई थी.

विज्ञापन
Read Time: 12 mins
केंद्र सरकार लाख कोशिशों के बावजूद लोगों को जलापूर्ति करने में विफल रहती है.
छतरपुर :

भारत में मानसून ने दस्तक दे दी है. ऐसे में सालों की कमरतोड़ मेहनत के बाद इस साल समर्पित महिलाओं के एक समूह को उम्मीद है कि इस बार का मॉनसून उनके लिए सहयोगी साबित होगा और उनके गांव का जल संकट दूर हो जाएगा. भारत के करीब 1.4 बिलियन लोग जल संकट से जूझ रहे हैं. पर्यावरण में आए बदलाव के कारण मौसम के पूर्वाणुमान में आ रही परेशानियों ने संकट को और गहरा दिया है. बुंदेलखंड की तुलना में कुछ स्थानों पर यह कठिन है, जहां पानी की कमी ने निराश किसानों को मैदानी इलाकों में अपनी जमीन छोड़ने और शहरों में अनिश्चित काम करने के लिए प्रेरित किया है. 

न्यूज एजेंसी को सूखा जल निकाय दिखाते हुए बबीता राजपूत ने बताया, "हमारे बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि यह निकाय साल भर भरा रहता था, लेकिन अब यहां एक बूंद भी नहीं है. हमारे क्षेत्र में जल संकट है. यहां के सारे कुएं भी सूख गए हैं. " बता दें कि तीन साल पहले बबीता जल सहेली (फ्रेंड्स ऑफ वॉटर) में शामिल हुईं, जो बुंदेलखंड में गायब हुए जल स्रोतों के पुनर्वास और पुनर्जीवित करने के लिए काम कर रही लगभग 1,000 महिलाओं का एक स्वयंसेवी नेटवर्क है. इन महिलाओं ने एक साथ काम करके बांध, तालाब और तटबंध बनाने का काम किया, ताकि जून के महीने में होने वाली बारिश के पानी को इकट्ठा किया जा सके. बता दें कि जून में भारत की वार्षिक वर्षा का लगभग 75 प्रतिशत वर्षा होता है. 

अग्रोथा, जहां बबीत रहती हैं, उन 300 से अधिक गांवों में से एक है जहां महिलाएं नए जलग्रहण स्थलों, जलाशयों और जलमार्ग के पुनरोद्धार की योजना बना रही हैं. उन्होंने कहा कि उनके काम ने उन्हें मानसून के वर्षा जल को लंबे समय तक बनाए रखने और अपने गांव के आसपास आधा दर्जन जल निकायों को पुनर्जीवित करने में मदद की है. हालांकि, अभी तक वे इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हैं, लेकिन अग्रोथा के निवासी अब लगभग 60 करोड़ भारतीयों में नहीं हैं, जिन्हें रोजाना पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ता है. महिलाओं की कोशिश आशा के किरण के रूप उभरी है.  

गौरतलब है कि केंद्र सरकार लाख कोशिशों के बावजूद लोगों को जलापूर्ति करने में विफल रहती है. नीति आयोग का अनुमान है कि दशक के अंत तक देश की लगभग 40 प्रतिशत आबादी को पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं होगा. बुंदेलखंड में अनिश्चित वर्षा पैटर्न और अत्यधिक गर्मी को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा गया है, जो सदी के अंत में सूखे की घोषणा के बाद से कई लंबे समय तक सूखे का सामना कर चुका है. 

सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह ने अग्रोथा में महिलाओं को बारिश के पानी के कल्टीवेशन और भंडारण के लिए तब प्रशिक्षित करने में मदद की, जब आसपास की भूमि सूखे के कारण सूख गई थी. उन्होंने न्यूज एजेंसी को बताया, " सरकार हर नागरिक को पानी सुनिश्चित करने में विफल रही है, खासकर ग्रामीण इलाकों में. ऐसे में वो ग्रामीणों को पुरानी प्रथा पर वापस जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं."

यह भी पढ़ें -

-- उद्धव ठाकरे ने दिया इस्तीफा, पिछले 8 दिनों में दूसरी बार फेसबुक पर हुए लाइव
-- उद्धव ठाकरे ने दिया इस्तीफा, अब आगे क्या होगा महाराष्ट्र की राजनीति में?

Advertisement
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Raebareli Dalit Murder: यूपी में 48 घंटे में 20 एनकाउंटर! | Syed Suhail | Bharat Ki Baat Batata Hoon
Topics mentioned in this article