महाराष्‍ट्र में जारी खींचतान के बीच क्‍या किंगमेकर बनेंगे शरद पवार?

चुनाव परिणाम को आए काफ़ी दिन बीत चुके हैं लेकिन अभी भी महाराष्ट्र में सरकार बनती नहीं दिख रही.

महाराष्‍ट्र में जारी खींचतान के बीच क्‍या किंगमेकर बनेंगे शरद पवार?

शरद पवार

खास बातें

  • खींचतान के बीच क्‍या किंगमेकर बनेंगे शरद पवार?
  • चुनाव के बाद पवार को बधाई देने वालों में शिवसेना के नेता काफ़ी आगे रहे
  • 2014 में शिवसेना और BJP ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था
नई दिल्ली:

चुनाव परिणाम को आए काफ़ी दिन बीत चुके हैं लेकिन अभी भी महाराष्ट्र में सरकार बनती नहीं दिख रही. उसकी वजह है कि शिवसेना और BJP जिन्होंने मिलकर चुनाव लड़ा और अब आपस में ही उलझ गए हैं. मुद्दा यह है कि शिवसेना इस बात पर अड़ गई है कि एक फ़ॉर्मूला तय हुआ था अमित शाह और उद्धव ठाकरे के बीच कि यदि शिवसेना और BJP की सरकार बनती है तो ढाई साल शिवसेना और ढाई साल BJP राज करें. दरअसल शिवसेना आदित्‍य ठाकरे को जो कि उद्धव ठाकरे के बेटे हैं और ठाकरे परिवार के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने चुनाव लड़ा है, उनको मुख्यमंत्री बनाना चाहती है लेकिन अभी तक इस पर बात बन नहीं पाई है. 

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आपको ये भी बता दें कि 2014 में शिवसेना और BJP ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. हालांकि बहुतों को यह याद नहीं है. दूसरी बात यह है कि पिछले पांच साल सरकार में रहते हुए भी शिवसेना ने एक तरह से विपक्ष की भूमिका निभाई है. अक्सर शिवसेना अपने मुखपत्र सामना के जरिए BJP और मोदी सरकार पर निशाना साधती रही है जबकि उसी सामना में शरद पवार की जमकर तारीफ़ होती रही है. 

ख़ासकर चुनाव के बाद पवार को बधाई देने वालों में शिवसेना के नेता काफ़ी आगे रहे. शरद पवार के भी बाल ठाकरे से हमेशा से अच्छे रिश्ते रहे हैं जिसे पवार परिवार ने कभी नहीं छिपाया. तो क्या यह माना जा रहा है कि अब ऐसी परिस्थिति में यदि पवार शिवसेना को समर्थन देते हैं तो कांग्रेस भी मजबूरी में इस गठबंधन को समर्थन करेगी भले ही वो इस गठबंधन का हिस्सा हो या ना हो. 

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ये बात इसलिए कही जा रही है कि कांग्रेस के नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्‍हाण इसका संदेश दे चुके हैं. NCP के नवाब मलिक और प्रफुल्ल पटेल का रवैया भी शिवसेना के प्रति नरम है. जब शिवसेना के नेता राज्‍यपाल से मिलने गए थे उसके बाद संजय राउत पवार से मिले. 

ज़ाहिर है 2 राजनीतिक नेता जब आपस में मिलते हैं तो राजनीति की ही बातें होती हैं. ये भी कहा जा रहा है कि शिवसेना अब यदि पीछे हटती है तो उसको राजनीतिक नुक़सान होगा, उसकी छवि पर असर पड़ेगा कि शिवसेना कुछ करती नहीं है केवल धमकी देती है. उसके दांत केवल दिखाने के हैं. शिवसेना को यदि परिपाटी बनना है तो उसको BJP की परछाई से बाहर आना होगा, ऐसा बड़े लोग मानते हैं. 

बहुत लोग ऐसा मानते हैं कि ऐसे हालात में यदि NCP और शिवसेना साथ आते हैं तो उनके पास 110 का आंकड़ा होगा जबकि बहुमत के लिए उन्हें 127 विधायक चाहिए क्योंकि कांग्रेस वोटिंग से गैरहाज़िर रहेगी इसके लिए 13 विधायक और चाहिए जबकि निर्दलीय और छोटी पार्टियों के विधायकों की संख्या 27 है. तो क्या पवार कुछ ऐसा कर सकते हैं? जितने भी लोग पवार को जानते हैं उनका मानना है कि ये संभव है. 

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एक दूसरे विकल्प की भी चर्चा की जा रही है कि क्या BJP और NCP साथ आ सकते हैं? कई लोग ये मानते हैं कि ऐसा भी हो सकता है. इसकी वजह है ED यानी प्रवर्तन निदेशालय जो शरद पवार, अजीत पवार और प्रफुल्ल पटेल के पीछे पड़ी हुई है. तो क्या उससे बचने के लिए पवार BJP का दामन थाम सकते हैं? 

राजनीति में कुछ भी हो सकता है लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि आख़िर बीजेपी 50-50 के फ़ॉर्मूले से क्यों बच रही है, यानी ढाई साल BJP राज करे और ढाई साल शिवसेना. इसकी वजह यह है कि इतिहास में ऐसे सभी प्रयोग असफल रहे हैं. उत्तर प्रदेश में मायावती और कल्याण सिंह की सरकार भी नहीं चली, कर्नाटक में कुमारस्वामी और कांग्रेस की सरकार नहीं चली और हाल ही में कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती और BJP की सरकार नहीं चली. क्या यही वजह है कि BJP शिवसेना के साथ 50-50 के फ़ॉर्मूले से बचना चाहती है. 

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ख़ैर जो भी हो लेकिन महाराष्ट्र के लोगों ने एक नई सरकार चुनी है और उन्हें हक़ है कि एक सरकार बने जो उनके लिए काम करना शुरू करे क्योंकि महाराष्ट्र के कई हिस्सों में अभी भी बहुत तेज बारिश हो रही है और लोगों की हालत ख़राब है. ये वक़्त राजनीति के लिए नहीं है. शिवसेना और BJP को आपस में बैठकर अपने झगड़े सुलझाना चाहिए. नहीं तो जैसा कि सुप्रिया सुले जो कि शरद पवार की बेटी हैं और बारामती से सांसद भी हैं, उन्होंने कहा कि यदि BJP और शिवसेना अपना काम नहीं करेगी तो जनता के हित के लिए हमें ही कुछ करना पड़ेगा. उनका इशारा साफ़ है और सभी महाराष्ट्र के राजनीतिक दलों को यह इशारा समझ जाना चाहिए.

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