कर्नाटक के नतीजों से कांग्रेस पर क्यों मजबूत हो जाएगी गांधी परिवार की पकड़?

जिम्मेदारी के साथ सत्ता, पार्टी की एकता और भविष्य के कैंपेन की झलक : कर्नाटक के लिए सोनिया गांधी के संदेश के मायने

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सोनिया गांधी ने कर्नाटक में कांग्रेस की जीत को लेकर भावनात्मक संदेश दिया.
नई दिल्ली:

कर्नाटक में बहुमत हासिल करने के ठीक एक हफ्ते बाद शनिवार को, कांग्रेस पार्टी ने न केवल राज्य में काफी सोच-समझकर मंत्रियों को प्रतिनिधित्व देते हुए सरकार बनाई, बल्कि पार्टी की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने शाम को एक भावनात्मक संदेश जारी करके कांग्रेस को भी धन्यवाद दिया. राज्य के लोग देश के बाकी हिस्सों को यह संकेत दे रहे हैं कि कांग्रेस, और विशेष रूप से इसका नेतृत्व आगामी चुनावों में कैसा रुख अपनाएगा.

पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच विवाद को सफलता से हल करने के बाद दिल्ली से मंत्रियों की सूची जारी की. हालांकि पार्टी पदाधिकारियों ने कहा कि यह राज्य के नेताओं के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद किया गया.

अपने वीडियो संबोधन में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने जनादेश को "जनता समर्थक, गरीब समर्थक सरकार और विभाजनकारी व भ्रष्टाचार की राजनीति को अस्वीकृति" कहा. उन्होंने राज्य के लोगों को आश्वासन दिया कि कर्नाटक में कांग्रेस सरकार उनसे किए गए वादों को लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहेगी. उन्होंने घोषणा की कि पहली कैबिनेट बैठक में पार्टी की पांच गारंटियों को लागू करने को मंजूरी दे दी गई है.

सोनिया गांधी का बयान इस बदलाव को दर्शाता है कि पार्टी अपनी चुनावी जीत के करीब कैसे पहुंच रही है. जहां तक ​​कर्नाटक का संबंध है, यह स्पष्ट है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व जिसमें गांधी परिवार शामिल है, और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पार्टी महासचिव रणदीप सुरजेवाला और केसी वेणुगोपाल जैसे वरिष्ठ नेता कर्नाटक में पार्टी की जोरदार जीत का श्रेय ले रहे हैं. विशेष रूप से गांधी परिवार राज्य में सत्ता के लिए जवाबदेही की भी मांग कर रहा है. पार्टी इस जीत को भाजपा के खिलाफ अपनी सबसे महत्वपूर्ण चुनावी जीत में से एक के रूप में देख रही है.

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कर्नाटक में जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के जरिए किए गए प्रयासों की पुष्टि करती है, हालांकि आलोचकों ने इसे पार्टी में सिर्फ एक व्यक्ति को आगे लाने की कोशिश बताया है और इसका कोई चुनावी प्रभाव नहीं है. हालांकि यह सच है कि राहुल गांधी ने पार्टी के केंद्रीय नेताओं के साथ पार्टी की कैंपेन को आगे बढ़ाया. उन्होंने कांग्रेस की गारंटी को आगे बढ़ाया और विशेष रूप से सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार और खरगे को भी बोलने दिया, जो कि कर्नाटक से हैं. सोनिया गांधी और खरगे ने अंतिम दौर में राज्य में नेतृत्व के संकट को इस तरह संभाला, जिसमें वे निर्णायक बने रहे और डीके शिवकुमार को साथ ले लिया. राहुल गांधी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अधिकतम विधायक सिद्धारमैया के पक्ष में हैं, वही मुख्यमंत्री होंगे.

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यही कारण है कि कर्नाटक के नतीजों ने गांधी परिवार की पार्टी पर पकड़ मजबूत कर दी है.

सोनिया गांधी अंतिम मध्यस्थ और पार्टी की अधिकृत आवाज

जैसे ही सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच असहमति सामने आई, खड़गे, सुरजेवाला, राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल और अन्य ने मतभेदों को सुलझाने की कोशिश की. माना जाता है कि सोनिया ही थीं जिनके पास शिवकुमार को लेने के लिए अंतिम शब्द था. कांग्रेस नेतृत्व का उनसे सीएम पद के अलावा हर चीज का वादा करना और पीसीसी अध्यक्ष के रूप में बने रहने की उनकी मांग पर सहमत होना भी पार्टी के तय कठोर नियमों को लेकर पहले के उदाहरणों से अलग था. कुछ महीने पहले जब अशोक गहलोत को पार्टी अध्यक्ष बनाने की बात चल रही थी, तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वे सीएम बने रहना चाहते हैं. यह एक ऐसी शर्त थी जिस पर पार्टी नेतृत्व सहमत नहीं था. गुरुवार को सोनिया के संदेश ने यह स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता को लेकर अपने रुख पर कायम रहेगी. उन्होंने यह भी साफ किया कि पार्टी 200 यूनिट मुफ्त बिजली, राज्य की महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को आय समर्थन के अपने वादे को पूरा करेगी. उन्होंने इससे यह स्पष्ट किया कि परिवार न केवल जीत की जिम्मेदारी ले रहा है बल्कि शासन के लिए जवाबदेही भी मांग रहा है. जी परमेश्वर, केएच मुनियप्पा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियांक खरगे पार्टी हाईकमान की पसंद माने जाते हैं.

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कांग्रेस ने कर्नाटक में अपनी कैंपेन, नेतृत्व को लेकर विवाद बेहतर ढंग से संभाला

राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में गांधी परिवार की अपनी पार्टी के नेताओं के बीच कलह खत्म न कराने के कारण आलोचना की जाती है. ज्योतिरादित्य सिंधिया जहां पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए और मंत्री बन गए, वहीं सचिन पायलट कई महीनों से राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ अपनी शिकायतों को हवा दे रहे हैं. लेकिन हिमाचल में प्रतिभा सिंह और सुखविंदर सिंह सुक्खी के सीएम की सीट पर दावा करने, और फिर कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच लड़ाई के साथ पार्टी ने सबक अच्छी तरह से सीख लिया है. नेतृत्व को लेकर विधायकों की पसंद वही है जिसके साथ जाना पार्टी ने तय किया है. पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, "पार्टी पुद्दुचेरी की तरह पहले की गई गलतियों को नहीं दोहराएगी, जहां उसने विधायकों की इच्छा के खिलाफ नारायणस्वामी को जिम्मा दिया, सिर्फ इसलिए कि दिल्ली के कुछ शीर्ष नेताओं ने उन पर भरोसा किया."

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गांधी परिवार-खरगे गतिशील

यह पहला चुनाव था जिसमें गांधी परिवार-खरगे गतिशील दिखाई दे रहे थे. गांधी परिवार "बड़े भाई" की भूमिका निभाते हुए कभी भी खरगे के कद को कम नहीं करने के लिए सतर्क रहे. खरगे खुद एससी समुदाय से आते हैं, जिसने इस बार बड़ी संख्या में कांग्रेस को वोट दिया है, खासकर उत्तरी कर्नाटक में, जहां से खरगे आते हैं. यहां तक कि बाद के विशेष रूप से नेतृत्व संबंधी विवादों के बीच खरगे ने ही अगुवाई करते हुए व्यापक विचार-विमर्श किया.

गांधी परिवार ने अपने प्रचार के तरीके बदले

कर्नाटक में चुनाव प्रचार अभियान के बीच राहुल गांधी की सांसद पद से अयोग्यता का मामला आया. इस मामले में पार्टी के प्रचार को पटरी से उतारने की क्षमता थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस उत्तर पूर्वी राज्यों, त्रिपुरा और गुजरात में भी चुनावों में अपनी छाप छोड़ने में विफल रही थी, जहां 2017 में वह भाजपा से सिर्फ 20 सीटों से पीछे रही थी. तब राहुल गांधी की हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे चुनावी राज्यों में भारत जोड़ो यात्रा नहीं निकालने के लिए आलोचना की गई थी, हालांकि राहुल गांधी पहले दक्षिणी राज्यों को कवर करने की अपनी योजना पर अडिग रहे. हालांकि उनका यह कदम कारगर होता दिख रहा है क्योंकि इसने कांग्रेस कैडर को ऊर्जा से भर दिया है. उनका मार्च कांग्रेस के गढ़ों पर ही केंद्रित नहीं था, बल्कि इसमें उन चुनाव क्षेत्रों की यात्रा भी शामिल थी जहां भाजपा ने 2018 में जीत हासिल की थी. इनमें भाजपा द्वारा जीती गई 12 सीटें, कांग्रेस द्वारा जीती गई 5 सीटें और 2018 में जेडी (एस) द्वारा जीती गई सीटें शामिल थीं. यात्रा जिन 21 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी उनमें से 16 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की. सन 2018 में उसे इनमें से 5 सीटें मिली थीं. यहां तक कि प्रियंका और राहुल गांधी दोनों ने ही जमीनी प्रचार किया और रोड शो किए. उन्होंने कांग्रेस की गारंटी को लेकर बात की और चुनाव को अत्यधिक स्थानीयता पर केंद्रित रखा. राहुल गांधी विशेष रूप से ठेका कर्मचारियों और महिलाओं तक पहुंचे, जिनके लिए पार्टी ने बड़ी कल्याणकारी योजनाओं का वादा किया था. हुबली की जनसभा में सोनिया गांधी की भागीदारी भी पार्टी को जीत के प्रति आश्वस्त होने का संकेत देने वाली थी.

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