सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका को 27 बार टालने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट पर नाराजगी जताई और आरोपी को जमानत दे दी. चीफ जस्टिस बीआर गवई ने सवाल किया कि आरोपी चार साल से जेल में है, हाईकोर्ट कुछ भी तय नहीं कर रहा है. व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामले में 27 बार इसे स्थगित कर दिया है. पिछले 27 मौकों पर हाईकोर्ट ने कुछ नहीं किया है. आप 28वें मौके पर उससे क्या उम्मीद करते हैं?"
सीजेआई गवई ने क्या कहा
वरिष्ठ वकील सुंदर खत्री ने बताया कि सुनवाई के दौरान CJI बी आर गवई ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में हाईकोर्ट से मामले को टालते रखने की अपेक्षा नहीं की जाती. नतीजतन, हाईकोर्ट के समक्ष लंबित जमानत के लिए आवेदन निष्प्रभावी हो गया है. व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में, उच्च न्यायालयों से इतने लंबे समय तक मामले को लंबित रखने और समय-समय पर स्थगित करने के अलावा कुछ भी नहीं करने की अपेक्षा की जाती है. याचिकाकर्ता चार साल से अधिक समय से जेल में बंद है. शिकायतकर्ता का बयान भी दर्ज किया गया है. मामले के इस दृष्टिकोण से, और मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हम याचिकाकर्ता को जमानत देने के लिए इच्छुक हैं.
क्यों सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस दिया था
बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ ने 21 अप्रैल को इस आधार पर नोटिस जारी किया था कि याचिकाकर्ता 4 साल से अधिक समय से जेल में बंद है और जमानत के लिए केस 27 मौकों पर टाला गया था. जब मामले की सुनवाई हुई तो याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में होनी है. हालांकि, यह 28वीं बार होगा, जब मामला सूचीबद्ध किया गया है. उन्होंने कहा कि वो 3 साल, 8 महीने और 24 दिन से हिरासत में हैं.
सीबीआई ने जमानत का विरोध किया
दरअसल, हाईकोर्ट के 20 मार्च के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत कोर्ट ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित करते हुए निर्देश दिया था कि शिकायतकर्ता के साक्ष्य दर्ज किए जाएं. याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत अपराध के आरोप शामिल हैं. जबकि सीबीआई ने जमानत दिए जाने का पुरजोर विरोध किया, इस आधार पर कि याचिकाकर्ता 33 अन्य मामलों में शामिल है. इस पर जस्टिस गवई ने सवाल किया कि वह चार साल से जेल में है, हाईकोर्ट कुछ भी तय नहीं कर रहा है. व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामले में 27 बार इसे स्थगित कर दिया है. पिछले 27 मौकों पर हाईकोर्ट ने कुछ नहीं किया है. आप 28वें मौके पर उससे क्या उम्मीद करते हैं?"