आखिर BJP लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड पर क्यों दे रही है जोर?

बीजेपी को मुस्लिम समुदायों और विपक्षी दलों से यूनिफॉर्म सिविल कोड के मजबूत विरोध को लेकर राजनीतिक रूप से लाभ होने की भी उम्मीद है. सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अंतिम मसौदा पेश करने से पहले कई पहलुओं पर विचार करना होगा.

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पीएम मोदी ने भोपाल की एक रैली में यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत की थी.
नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने मंगलवार को भोपाल में वंदे भारत ट्रेनों (Vande Bharat Trains Flagoff) को हरी झंडी दिखाने के बाद हुई एक रैली में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लेकर अपना रुख साफ कर दिया. पीएम ने इसके साथ ही स्पष्ट कर दिया कि 2024 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2024) से पहले बीजेपी अपने मूल और वैचारिक मामलों पर आक्रामक रहेगी. 

पीएम मोदी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड के अपने समर्थन को संवैधानिक समानता और देश की एकता के आसपास केंद्रित किया. उन्होंने तीन तलाक के बारे में भी बात की. 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक बोल कर शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया था.

बीजेपी को मुस्लिम समुदायों और विपक्षी दलों से यूनिफॉर्म सिविल कोड के मजबूत विरोध को लेकर राजनीतिक रूप से लाभ होने की भी उम्मीद है. सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अंतिम मसौदा पेश करने से पहले कई पहलुओं पर विचार करना होगा. हमें यह याद रखना होगा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड में शादी, तलाक, अडॉप्शन और विरासत जैसे पारिवारिक मामलों के बारे में भी बहुत कुछ प्रावधान है. मुस्लिम समुदायों ने खासतौर पर इसका विरोध इसलिए किया है, क्योंकि धर्म को एक निजी क्षेत्र माना जाता है.

UCC का इतिहास
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आगे बढ़ने से पहले आइए इसका थोड़ा इतिहास जान लें. संविधान निर्माताओं ने एक समान कानून की परिकल्पना की थी, जो देश में मौजूद प्रत्येक धर्म के अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों की जगह लेगा. अब इन्हें राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में उल्लिखित किया गया है. 1985 में शाह बानो मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में उम्मीद जताई कि संसद राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने और सीआरपीसी या अन्य कानूनों के साथ व्यक्तिगत कानूनों के टकराव को दूर करने के लिए समान नागरिक संहिता बनाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने अक्सर यह माना है कि धार्मिक ग्रंथों से प्राप्त व्यक्तिगत कानून संविधान के मुताबिक होने चाहिए और ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते.

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अभी की प्रक्रिया क्या है?
विधि आयोग ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर राय मांगी है. विधि आयोग जल्द ही अपनी सिफारिशें पेश करेगा. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि संविधान राज्य को अपने नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए बाध्य करता है. केंद्र ने कहा कि विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के लोगों के लिए अलग-अलग संपत्ति और वैवाहिक कानूनों का पालन करना देश की एकता के लिए अच्छा नहीं है.

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राज्य UCC पर दे रहे हैं जोर
यूनिफॉर्म सिविल कोड राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक लक्ष्य है और बीजेपी शासित कई राज्यों में यह पार्टी के घोषणा-पत्र का एक अहम हिस्सा भी है. पिछले साल उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी के कार्यान्वयन के लिए एक समिति का गठन किया था. पैनल वर्तमान में इस मुद्दे पर देशभर से सुझाव ले रहा है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले पैनल ने कोड के प्रारूप से संबंधित 90 प्रतिशत काम पूरा कर लिया है. इसे 30 जून तक पेश किया जाएगा, जिसके बाद राज्य इसे लागू करने के लिए कदम उठाएगा.

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असम में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार और मध्य प्रदेश सरकार ने भी समितियों के गठन की घोषणा की है. गोवा नागरिक संहिता पुर्तगाली काल से लागू है. इसे समान नागरिक संहिता का एक रूप माना जाता है, लेकिन जमीनी स्तर पर यह काफी जटिल है. गुजरात सरकार ने भी कहा है कि वह यूसीसी लाने के लिए कदम उठा रहा है. 

बीजेपी के लिए आगे चुनौतियां?
केंद्र समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर जोर दे रहा है, जो धर्म, लिंग या जाति के बावजूद सभी भारतीयों पर लागू होगा. लेकिन इसके रास्ते में कई चुनौतियां हैं. कानूनों का एक सेट कई मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों की जगह कैसे लेगा, जो विवाह, विरासत, गोद लेने और तलाक को नियंत्रित करते हैं. कुछ कानून धर्म और कभी-कभी क्षेत्र के आधार पर भी अलग होते हैं. क्या यूसीसी में इन क्षेत्रों को अलग से लिया जाएगा? क्या व्यक्तिगत कानूनों के कुछ पहलुओं को यूसीसी में समायोजित किया जाएगा? क्या पूरी तरह से कानूनों का एक नया सेट बनेगा? क्या यह बहुविवाह के मुद्दों पर विचार करेगा, जो अक्सर हिंदू समूहों द्वारा उठाए जाते हैं.

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जब विरासत की बात आती है तो हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिए अलग-अलग कानून हैं. यह कहीं अधिक जटिल हो जाता है, क्योंकि मातृसत्तात्मक हिंदुओं (मेघालय और केरल में) के पास दूसरों के विपरीत विरासत के अलग-अलग नियम हैं. जहां मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड विरासत के मामले में महिलाओं को समान अधिकार नहीं देता है. वहीं, महिलाओं द्वारा कृषि भूमि की विरासत पर भी एकरूपता नहीं है. यहां तक ​​कि हिंदू समुदायों में भी ये कानून देखा जाता है. 

कानूनों को लिंग के आधार पर समान बनाने के लिए भी कई कोशिशें हुई हैं. कम से कम हिंदुओं और ईसाइयों में तो ऐसे उदाहरण मिलते हैं, लेकिन इसकी जटिलता अभी भी मौजूद है. जब आप घरेलू हिंसा अधिनियम या गोद लेने के नियमों को देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि महिलाओं और बच्चों के हित को ध्यान में रखा गया था. लेकिन गौर से देखने पर इसमें भी कुछ खामियां मिलेंगी. स्पष्ट रूप से सरकार को एक बड़ी परामर्श प्रक्रिया भी चलानी होगी. सिख समूहों और जनजातीय समुदायों तक पहुंचना होगा, जो सदियों से अपने रीति-रिवाजों का पालन करते आए हैं और ऐसे नए कानून की तरफ नहीं मुड़ जाएंगे.

विपक्ष में से कुछ लोग इस मुद्दे को टाल-मटोल क्यों करेंगे?
कांग्रेस प्रस्तावित यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ विरोध का नेतृत्व कर रही है. कांग्रेस का कहना है कि पिछले विधि आयोग ने कहा था कि समान नागरिक संहिता का होना इस स्तर पर न तो जरूरी है और नहीं वांछनीय. कांग्रेस का कहना है कि यूसीसी असल में केंद्र की अन्य मुद्दों से ध्यान भटकाने की रणनीति है. खासकर तब जब मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है. डीएमके, जेडीयू, आरजेडी, लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस ने भी यूसीसी को लेकर सरकार की आलोचना की है.

देश में अविभाजित सेना यूसीसी की प्रबल समर्थक थी. अब आम आदमी पार्टी ने भी यूसीसी का समर्थन किया है. अपने हिंदू मतदाताओं को न खोने देने के प्रयास में कई विपक्षी दल अपने रुख के बारे में अस्पष्ट रहे हैं. इस बीच प्रमुख मुस्लिम निकाय प्रस्तावित यूसीसी के विरोध में सामने आए हैं. वो इसे 'संविधान की भावना के खिलाफ' और 'सभी नागरिकों द्वारा प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता के विपरीत' बता रहे हैं.

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