डोनाल्ड ट्रंप क्यों कह रहे हैं कि अमेरिका ने भारत को खो दिया, वो किस बात से हैं परेशान

क्या भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान क्या इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि वो अब अपनी कार्रवाई को लेकर प्रायश्चित कर रहे हैं.

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  • ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद भारत पर टैरिफ लगाया, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में तनाव उत्पन्न हुआ है.
  • ट्रंप ने माना कि चीन के कारण भारत और रूस जैसे दोस्त अमेरिका से दूर हो गए हैं.
  • ट्रंप की नीतियों ने भारत को चीन की ओर धकेलने की कोशिश की, जिससे अमेरिका की रणनीति प्रभावित हुई है.
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नई दिल्ली:

डोनाल्ड ट्रंप ने इस साल जनवरी में राष्ट्रपति का दूसरा कार्यकाल शुरू किया. इसके बाद से ही वो अपने बयानों और कार्रवाइयों को लेकर सुर्खियों में बने हुए हैं. 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' के नारे पर दूसरा कार्यकाल हासिल करने वाले राष्ट्रपति ट्रंप अप्रत्याशित व्यक्ति बन गए हैं. वह क्या बयान दे देंगे और कौन सा कदम उठा लेंगे इसका अनुमान लगा पाना कठिन है. राष्ट्रपति बनने के बाद से ट्रंप ने कई देशों पर टैरिफ लगा दिए हैं. उनके इस कदम की चपेट में भारत भी है. उन्होंने भारत पर 50 फीसदी का टैरिफ लगा दिया है. भारत ने उनके इस कदम पर संतुलित प्रतिक्रिया दी. लेकिन दोनों देशों के रिश्तों में थोड़ा तनाव आया है. इस बीच लगता है कि ट्रंप को अपनी गलती का एहसास होने लगा है. उन्होंने शुक्रवार को कहा कि हमने चीन के हाथों भारत और रूस जैसे दोस्त खो दिए. इसके बाद उन्होंने शनिवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके दोस्त बने रहेंगे. 

ट्रंप ने शुक्रवार को अपने ट्रूथ सोशल अकाउंट पर लिखा, "ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को गहरे, अंधेरे चीन के हाथों खो दिया. उम्मीद करता हूं कि उनकी साझेदारी लंबी और समृद्ध हो." अपनी पोस्ट के साथ ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक फोटो भी लगाई थी. यह फोटो इसी हफ्ते सोमवार चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन की थी. ट्रंप के इस बयान पर शुक्रवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. 

क्या पश्चाताप की आग में जल रहे हैं डोनाल्ड ट्रंप

ट्रंप के इस बयान को उनकी आत्मग्लानी के रूप में देखा जा रहा है. ट्रंप के इस बयान के सवाल पर अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार कमर आगा अंग्रेजी के एक मुहावरे का इस्तेमाल करते हुए इसे 'एडमिशन ऑफ गिल्ट' बताते हैं. वो कहते हैं कि देखने वाली बात यह भी है कि उन्होंने अभी तक संबंधों को सामान्य बनाने के लिए कोई पहल नहीं की है, जबकि उन पर भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के लिए आंतरिक और बाहरी दोनों तरह का दबाव भी है. 

एससीओ समित के दौरान चीन से आई इस तरह की तस्वीरों ने अमेरिकी राष्ट्रपति की चिंता बढ़ा दी है.

भारत को लेकर पिछले दो दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बयान इस बात के संकेत हैं कि चीन और भारत के बीच जमी बर्फ पिघल रही है क्योंकि इसका बड़ा कारण ट्रंप की ओर से भारत पर लगाए टैरिफ हैं. इस टैरिफ ने भारत-अमेरिका संबंधों पर बुरा असर डाला है. भारत और चीन की बढ़ती नजदीकियां देख ट्रंप इन दिनों परेशान हैं. 

डॉक्टर पवन चौरसिया ट्रंप इंडिया फाउंडेशन के रिसर्च फेलो हैं. ट्रंप को अहंकारी व्यक्ति बताते हुए वो कहते हैं कि अहंकार की वजह से ही उन्होंने दोस्त और दुश्मन में भेद न करते हुए, दोनों के साथ एक समान व्यवहार किया. वो कहते हैं कि ट्रंप ने तो भारत, जापान और यूरोपीय यूनियन जैसे अमेरिकी दोस्तों के साथ तो और भी बदतर व्यवहार किया है.

कैसे रहे हैं भारत-अमेरिका संबंध

चौरसिया कहते हैं कि पिछले तीन दशक से सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने भारत से संबंधों बहुत संजो कर रखा था. लेकिन ट्रंप ने उसे अपनी सनक से खराब करने की कोशिश की है. उन्होंने एक तरह से भारत को चीन के पाले में धकेलने की कोशिश की. वो कहते हैं कि ऐसा लगता है कि ट्रंप के सलाहकारों ने ट्रंप को यह समझाया होगा कि अमेरिका की इंडो-पैसिफिक नीति भारत के बिना अधूरी है और भारत को इस तरह चीन की तरफ धकेल देने से हम अलग-थलग पड़ जाएंगे. वो कहते हैं कि ट्रंप को भारत की सैन्य ताकत का भी एहसास कराया गया होगा, क्योंकि आज दुनिया में भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जो सैन्य मामले में शक्ति संपन्न हैं, जब रूस और चीन एक साथ हो रहे हैं, ऐसे समय में भारत का साथ छोड़ देने से अमेरिका के पास कोई ताकतवर देश नहीं बचेगा. यह स्थिति अमेरिका के लिए नुकसानदायक हो सकती है. वो कहते हैं कि भारत की नौसेना ब्लू ओशियन नेवी है, जो यहां से लेकर अफ्रीका तक में अभियान चला सकती है. उन्होंने बताया कि भारत ही एक ऐसा देश है, जिसने पिछले तीन दशक में चीन का मुकाबला किया है और उसके सामने डटकर खड़ा रहा है.

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के विरोध में चेन्नई में प्रदर्शन करते वामपंथी कार्यकर्ता.

वो कहते हैं कि क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत) में शामिल देशों में से भारत को छोड़कर किसी भी देश की सीमा चीन से नहीं लगती है. इसलिए अमेरिका को लगा होगा कि भारत ही एक ऐसा देश है, जो चीन के सामने खड़ा हो सकता है, इसलिए उन्हें लगा होगा कि उसे भी नाराज कर देना ठीक नहीं है. 

अमेरिका की विदेश नीति में भारत का स्थान

वहीं कमर आगा कहते हैं कि अमेरिकी विदेश नीति में भारत एक महत्वपूर्ण देश है. भारत के बिना इंडो-पैसिफिक अपूर्ण है. वो कहते हैं कि भारत किसी के दबाव में नहीं आता है, वह अपने हित के फैसले खुद लेता है. भारत की हर सरकार ने ऐसा ही किया है. वो कहते हैं कि ट्रंप ने शायद सोचा था कि टैरिफ लगा देने से भारत दबाव में आ जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आगा कहते हैं कि शायद अमेरिका के ये चीजें समझ नहीं आई थीं, लेकिन अब उन्हें समझ में आने लगा है. वो उम्मीद जताते हुए हैं कि भारत-अमेरिका संबंध जल्द ही सामान्य हो जाएंगे. आगा कहते हैं कि भारत के लिए भी अमेरिका बहुत महत्वपूर्ण है. दोनों जगह लोकतंत्र और कानून का शासन है, लाखों भारतीय वहां काम करते हैं और पढ़ते हैं और वहां की अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं. इसलिए ऐसा नहीं लगता है कि अकेले ट्रंप या उनकी नीतियां भारत-अमेरिका संबंधों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा पाएंगी.

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अमेरिकी भी हैं डोनाल्ड ट्रंप से नाराज

आगा और डॉक्टर चौरसिया जिस बात को कह रहे हैं, उसी बात को अमेरिकी विशेषज्ञ भी कह रहे हैं. जॉन बोल्टन, ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे. वो भारत के साथ बिगड़ते रिश्ते को लेकर बहुत सख्त हैं. इसके लिए वो ट्रंप की मुखर आलोचना करते रहते हैं. कुछ दिन पहले बोल्टन ने कहा था कि डोनाल्ड ट्रंप के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बहुत अच्छे व्यक्तिगत संबंध थे, लेकिन अब वह खत्म हो गए हैं. बोल्टन यहां तक भी कह चुके हैं कि रूस पर लगाई गई पाबंदियां भारत को उसका तेल खरीदने से नहीं रोक सकती हैं.

एक ब्रिटिश मीडिया हाउस से बोल्टन ने कहा था कि चीन अब खुद को अमेरिका का विकल्प की तरह पेश करने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने कहा था, "मोदी की चीन में मौजूदगी मुझे पूरी तरह से ट्रंप के कारण लगती है. पिछले कई महीनों में ट्रंप ने भारत के साथ जिस तरह का व्यवहार किया है, उसने दशकों की मेहनत को पीछे धकेल दिया है. भारत को रूस से दूर करके यह समझाने की कोशिश की गई थी कि भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा चीन है, लेकिन अब हालात बदल गए हैं."

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अमेरिकी कांग्रेस के बाहर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के विरोध में प्रदर्शन करते लोग.

किस तरफ है भारत की जनता का मन

चौरसिया एक बात की ओर ध्यान खींचते हुए कहते हैं कि पिछले दो-तीन दशक में पहली बार भारतीय जनता का मन अमेरिका के खिलाफ है, इससे पहले ऐसा नहीं होता था, भारतीय जनता के लिए  अमेरिका ड्रीम डेस्टिनेशन बना हुआ था. लोग वहां काम करना चाहते थे, वहां बसना चाहते थे और वहां के विश्वविद्यालयों में पढ़ना चाहते थे. लेकिन अब लोगों की भारत की रणनीतिक स्वायत्तता पसंद आ रही है, लोग अब यह कह रहे हैं कि इस तरह से हमें कभी रूस ने परेशान नहीं किया. इसलिए अब चीन के साथ संबंध सुधारने को लेकर भी बात हो रही है.

चीन के साथ सुधरते रिश्तों के सवाल पर डॉक्टर चौरसिया कहते हैं चीन अगर अपनी विस्तारवादी नीतियों से अलग हो जाए तो, भारत और चीन दुनिया को एक नया आकार दे सकते हैं. वो कहते हैं कि भारत और चीन विकासशील देश हैं और दोनों के पास दुनिया का दुनिया की 20 फीसदी से अधिक की आबाद है, जिनमें युवाओं की संख्या सबसे अधिक है और दोनों के पास मैन पॉवर और रिसोर्स भी है, ऐसे में अगर दोनों देशों के संबंध अच्छे हो जाएं तो वो केवल दक्षिण एशिया के लिए नहीं बल्कि सभी विकासशील देशों के लिए अच्छा कर सकते हैं. चौरसिया कहते हैं कि इस बात को अब हमारे नीति-निर्माता भी समझ रहे हैं और वो अमेरिका वाले कंफर्ट जोन से बाहर आ रहे हैं. वो कहते हैं कि भारत जैसे विकासशील देश के लिए अपने नीतियों में बदलाव करना कोई बड़ी बात नहीं है. वो कहते हैं कि भारत ने उस समय अमेरिका का सामना किया था, जब वह आज जितना मजबूत नहीं था. 

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वहीं चीन के साथ भारत की बढ़ती नजदीकियों के सवाल पर आगा कहते हैं कि चीन हमारा पड़ोसी है और हमारे लिए महत्वपूर्ण देश है. भारत का सारा जोर विकास पर है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो यहां तक कहा है कि युद्ध का समय अब समाप्त हो गया है. इसके बाद से दोनों देशों के संबंध सुधर रहे हैं और सीमा पर हालात भी सामान्य होने की प्रक्रिया में हैं. दोनों देशों में 127 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार है. 

राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ वॉर का असर भारत पर क्या होगा यह तो वक्त बताएगा. लेकिन भारत ने उनके कदमों पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी है. भारत ने अभी तक कोई कड़ा बयान नहीं दिया है. डॉक्टर चौरसिया भारत की इस रणनीति को भी एक सही एक्शन मानते हैं. वो इसे मौसम और पर्यावरण के उदाहरण से समझाते हैं. वो कहते हैं कि खराब मौसम तो गुजर जाएगा, लेकिन अगर वातावरण सही बना रहा तो दोनों देशों के रिश्ते फिर से पटरी पर आकर सामान्य जाएंगे. इसलिए हमें मौसम  ठीक होने का अभी इंतजार करना चाहिए. 

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