- देश के CJI बीआर गवई 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत हो जाएंगे. शुक्रवार को उनका विदाई समारोह था.
- सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर फैसला देने को लेकर संतुष्टि जाहिर की.
- CJI ने आर्टिकल 21 के तहत सम्मान के साथ जीने के अधिकार को बड़ा मूल अधिकार मानते हुए जमानत मामले का उल्लेख किया.
देश के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई 23 नवंबर, 2025 को सेवानिवृत हो जाएंगे. शुक्रवार उनका आखिरी कार्य दिवस था, इसीलिए विदाई समारोह भी इसी दौरान आयोजित किया गया. अपनी फेयरवेल स्पीच में सीजेआई ने कहा कि वह बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ फैसला देकर संतुष्ट हैं. सिर्फ इसलिए कि कोई कानून के खिलाफ है, उससे रहने की जगह का अधिकार नहीं छीना जा सकता.
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क्रीमी लेयर पर दिये फैसले का किया बचाव
CJI ने क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि क्रीमी लेयर के जजमेंट को लेकर मेरे ही समुदाय में मेरी बहुत बुराई हुई है. हालांकि एक जज से अपने फैसले का बचाव करने की उम्मीद नहीं की जाती. मैंने एक उदाहरण दिया कि सेंट स्टीफंस में पढ़ने वाले चीफ सेक्रेटरी के बेटे की तुलना ग्राम पंचायत या एग्रीकल्चरल स्कूल में पढ़ने वाले खेतिहर मजदूर के बेटे से कैसे की जाए. आर्टिकल 14 बराबरी की बात करता है. डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि अगर हम सभी के साथ एक जैसा बर्ताव करेंगे तो इससे गैर-बराबरी कम होने के बजाय और गैर-बराबरी बढ़ेगी. इसलिए जो पीछे हैं उनके साथ खास बर्ताव ही बराबरी का कॉन्सेप्ट है.
CJI ने सुनाया लॉ क्लर्क का शेड्यूल्ड कास्ट वाला किस्सा
CJI ने कहा कि मैं खुद से एक सवाल पूछता हूं. क्या आदिवासी इलाकों के एक ऐसे व्यक्ति की तुलना मेरे बेटे से की जा सकती है जो अपने पिता के पद की वजह से सबसे अच्छी स्कूलिंग या शिक्षा का हकदार है. जब मैंने यह जजमेंट लिखा, तो मेरे एक लॉ क्लर्क, जो शेड्यूल्ड कास्ट से थे, उन्होंने कहा कि यह बात मुझे परेशान करती है कि मुझे सबसे अच्छी एजुकेशन मिलती है, तो मुझे शेड्यूल्ड कास्ट का फायदा क्यों मिलना चाहिए. इसके बाद उन्होंने कहा कि वह शेड्यूल्ड कास्ट (SC) का कोई फायदा नहीं लेंगे.
रात को दिए गए एक जमानत के फैसले का जिक्र
CJI ने देर रात को दिए गए एक जमानत के फैसले की बात करते हुए कहा कि मुझे हैरानी हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी, क्योकि दूसरे जज ने 48 घंटे के लिए प्रोटेक्शन देने से मना कर दिया. अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों में दखल नहीं देता तो क्या उसे संविधान और आज़ादी का कस्टोडियन कहा जा सकता है. फिर हमने खुद से पूछा कि अगर लंबे समय तक जेल में रहने वाले व्यक्ति को बिना ट्रायल के जेल में रखा जा सकता है तो क्या उसे बिना ट्रायल के सज़ा दी गई है. इसीलिए हमने आर्टिकल 21 (सम्मान के साथ जीने का अधिकार) के अधिकार को एक बड़ा मूल अधिकार माना.
संविधान के मूल्य शुरू से ही मेरे दिमाग में थे
CJI बी आर गवई ने कहा कि आज मैं अपने माता-पिता और भारत के संविधान का शुक्रगुजार हूं, जिसकी वजह से यह सफर मुमकिन हुआ. मेरे पिता, जैसा कि मैंने पहले ही कहा है, पब्लिक लाइफ के लिए बहुत समर्पित थे और इसलिए संविधान के मूल्य शुरू से ही मेरे दिमाग में बसे हुए थे.मैं अपने पिता की वजह से कानूनी पेशे में आया. यह भी हो सकता था कि मैं उनके नक्शेकदम पर चलते हुए पॉलिटिक्स में आ जाता, लेकिन मैं किस्मत का शुक्रगुजार हूं कि 1990 में कुछ ऐसा हुआ कि मैंने पूरी तरह से प्रैक्टिस पर ध्यान देने का फैसला किया.
मैं हमेशा संविधान के सहारे रहा हूं
मेरी मां ने मुझे कड़ी मेहनत सिखाए. मेरे माता-पिता ने मुझे जो मूल्य दिए वे हमेशा मेरे साथ रहेंगे. और मैं हमेशा उनका शुक्रगुजार रहूंगा. सीजेआई ने कहा कि मैं 18 साल तक वकील और 22 साल और छह दिन तक जज रहा. 40 साल से ज़्यादा के इस सफर में, मैं हमेशा संविधान के सहारे रहा हूं. मैंने एक जज के तौर पर अपने सफ़र में मैंने हमेशा अपनी शपथ पर खरा उतरने की कोशिश की है. मुझे खुशी है कि अपने 40 साल के सफ़र में मैं खुश रहा हूं. हालांकि मेरे एक फ़ैसले की बुराई हुई थी, लेकिन मैंने उस बुराई का जवाब नहीं दिया.













