अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने बुधवार को नरोदा गांव नरसंहार मामले में माया कोडनानी, बाबू बजरंगी, जयदीप पटेल समेत 86 लोगों को बरी कर दिया. घटना के 21 साल बाद अदालत की तरफ से यह फैसला सुनाया गया. माया कोडनानी भारतीय जनता पार्टी की पूर्व विधायक रही हैं. वहीं बाबू बजरंगी हिंदूवादी संगठन बजरंग दल के वरिष्ठ नेता रह चुके हैं. इन दोनों ही नेताओं पर एसआईटी की तरफ से गंभीर आरोप लगाए गए थे जिसे अदालत ने खारिज कर दिया.
कौन हैं माया कोडनानी?
माया कोडनानी का पूरा नाम माया सुरेंद्रकुमार कोडनानी है. वह पेशे से गाइनोकोलोजिस्ट हैं. उन्होंने बरोदा मेडिकल कॉलेज में लंबे समय तक अपनी सेवाएं भी दीं. राजनीति में प्रवेश के साथ ही उन्होंने पहली बार 1995 में निकाय चुनाव में लड़ा. इसके बाद वह गुजरात के 12वें विधानसभा चुनाव में नरोदा सीट से विधायक के तौर पर चुनी गईं. बाद में वह गुजरात सरकार में वुमेन एंड चाइल्ड डेवलेप्मेंट मंत्री भी रहीं. वर्ष 2002 में गुजरात दंगों में इनकी भूमिका के लिए निचली अदालत ने वर्ष 2012 में दोषी करार दिया था. इस मामले में बाद में उन्हें हाईकोर्ट से राहत मिल गई.
इस मामले में माया कोडनानी ने अपने बचाव में कहा था कि सुबह के वक्त वो गुजरात विधानसभा में थीं. वहीं, दोपहर में वे गोधरा ट्रेन हत्याकांड में मारे गए कार सेवकों के शवों को देखने के लिए सिविल अस्पताल पहुंची थीं. जबकि कुछ चश्मदीद ने कोर्ट में गवाही दी है कि कोडनानी दंगों के वक्त नरोदा में मौजूद थीं और उन्हीं ने भीड़ को उकसाया था.
माय़ा कोडनानी आरएसएस से भी जुड़ी रही थी. 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भी माया कोडनानी की जीत हुई. इसके बाद वह गुजरात सरकार में मंत्री बनीं थी. 2009 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष टीम से गिरफ्तारी के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. कोडनानी को खराब स्वास्थ्य के आधार कई बार जमानत मिलती रही और कथित रूस से अवसाद की शिकार कोडनानी को शॉक थेरेपी भी दी गई थी. सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा था कि उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति दिख रही थी और दवाओं से ठीक नहीं हो पा रही थी.
बजरंग दल से जुड़े रहे हैं बाबू बजरंगी
बाबू बजरंगी को बाबूभाई पटेल के नाम से भी जाना जाता है. उन्हें गुजरात दंगे के मामले में उम्र कैद की सजा मिली थी. वर्ष 2002 में गुजरात दंगों में बाबू बजरंगी की अहम भूमिका रहने के आरोप लगे थे. बाबू बजरंगी को दंगा भड़काने और अन्य धाराओं में दोषी मानते हुए निचली अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी. लेकिन नरोदा मामले में एसआईटी की तरफ से रखे गए सबूतों को गलत मानते हुए अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया.
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