क्या उत्तराखंड में आने वाला है बड़ा भूकंप? वैज्ञानिकों को क्यों सता रही चिंता

भूकंपों के बावजूद वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती के भीतर जमा भूकंपीय ऊर्जा का केवल 5-6% हिस्सा ही निकल पाया है. सेंट्रल सिस्मिक गैप, जो कांगड़ा से नेपाल-बिहार सीमा तक फैला है, में भारी मात्रा में ऊर्जा जमा हो रही है.

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  • उत्तराखंड सहित हिमालय क्षेत्र भूकंप के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील और उच्च जोखिम वाले इलाकों में आता है.
  • पिछले पांच सौ वर्षों में उत्तराखंड में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है, जिससे सेंट्रल सिस्मिक गैप बन गया है.
  • उत्तराखंड, सिक्किम और पूर्वोत्तर भारत में जमा भूकंपीय ऊर्जा का केवल एक छोटा हिस्सा ही रिलीज़ हुआ है.
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हाल ही में रूस में 8.8 रिक्टर स्केल की तीव्रता का भूकंप आया, जिसने एक बार फिर भूकंप के खतरों को चर्चा में ला दिया है. वैज्ञानिकों ने लंबे समय से चेतावनी दी है कि हिमालय क्षेत्र, विशेष रूप से उत्तराखंड, भूकंपीय दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील है. पिछले लगभग 500 वर्षों में उत्तराखंड में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है, जिसके कारण वैज्ञानिक इसे सेंट्रल सिस्मिक गैप कहते हैं.

वाडिया इंस्टीट्यूट के पूर्व वैज्ञानिक और एशियन सिस्मोलॉजिकल कमीशन, सिंगापुर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. परमेश बनर्जी के अनुसार, उत्तराखंड, सिक्किम और पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्र भूकंप के लिहाज से सबसे अधिक जोखिम वाले हैं. पिछले 500-600 वर्षों में इस क्षेत्र, विशेषकर उत्तराखंड, में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है.

इन भूकंपों के बावजूद वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती के भीतर जमा भूकंपीय ऊर्जा का केवल 5-6% हिस्सा ही निकल पाया है. सेंट्रल सिस्मिक गैप, जो कांगड़ा से नेपाल-बिहार सीमा तक फैला है, में भारी मात्रा में ऊर्जा जमा हो रही है.

उत्तराखंड... भूकंप के लिए संवेदनशील क्षेत्र
उत्तराखंड भूकंपीय जोन 4 और 5 में आता है, जो उच्च जोखिम वाले क्षेत्र हैं. उत्तरकाशी (भटवाड़ी), रुद्रप्रयाग, चमोली, और पिथौरागढ़ जैसे इलाकों में अक्सर छोटे-मोटे भूकंपीय झटके महसूस होते हैं. हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि छोटे भूकंपों का मतलब यह नहीं है कि बड़ा भूकंप नहीं आएगा. छोटे भूकंप जमा ऊर्जा को पूरी तरह से रिलीज नहीं कर पाते और इस ऊर्जा को निकालने के लिए 7 या 8 रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता का भूकंप आवश्यक है.

सेंट्रल सिस्मिक गैप और खतरा
डॉ. बनर्जी के अनुसार उत्तर-पश्चिमी हिमालय, विशेषकर उत्तराखंड, में भूकंपीय ऊर्जा लगातार जमा हो रही है. इस क्षेत्र में 7 या 8 रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता का भूकंप आना लगभग निश्चित है. लेकिन इसका समय बताना मुश्किल है. यह भूकंप जब भी आएगा, उत्तराखंड, सिक्किम, और पूर्वोत्तर भारत में भारी तबाही मचा सकता है. इसका कारण यूरेशियन प्लेट और इंडियन प्लेट का लगातार टकराव है, जो हिमालय क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधियों को बढ़ाता है. उत्तराखंड की मिट्टी और जमीन की संरचना ढीली होने के कारण भूकंप का प्रभाव और विनाशकारी हो सकता है.

डॉ. बनर्जी के अनुसार दिल्ली में चट्टानें और जमीन अपेक्षाकृत मजबूत हैं. इसलिए वहां बड़ा भूकंप आने की संभावना कम है. हालांकि, हिमालय क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने पर दिल्ली में भी इसके झटके महसूस हो सकते हैं.

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उत्तराखंड और हिमालय क्षेत्र में सेंट्रल सिस्मिक गैप के कारण भूकंप का खतरा लगातार बना हुआ है. छोटे भूकंप इस खतरे को कम नहीं करते, बल्कि यह संकेत देते हैं कि जमा ऊर्जा को रिलीज करने के लिए बड़ा भूकंप जरूरी है. वैज्ञानिकों की चेतावनी के अनुसार, इस क्षेत्र में भूकंप से बचाव और तैयारी के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि संभावित तबाही को कम किया जा सके.

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