समान नागरिक संहिता उत्तराखंड सरकार ने बढ़ाया कदम, कमेटी का किया गया गठन

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भाजपा शासित कुछ राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर शुरू हुई कवायद का विरोध किया है.

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समान नागरिक संहिता उत्तराखंड सरकार ने बढ़ाया कदम, कमेटी का किया गया गठन
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (फाइल फोटो)
चम्पावत:

उत्तराखंड सरकार ने शुक्रवार को राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने के अपने फैसले पर कदम बढ़ाते हुए कमेटी का गठन किया है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हमने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने का निर्णय लिया है. गोवा के बाद उत्तराखंड इसे लागू करने वाला दूसरा राज्य होगा. चंपावत में उन्होंने कहा कि "हम लोगों के लिए यूसीसी लाएंगे, चाहे वे किसी भी धर्म और समाज के वर्ग के हों." सीएम ने इसके लिए शुक्रवार को एक ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन किया है. 

मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया कि देवभूमि की संस्कृति को संरक्षित करते हुए सभी धार्मिक समुदायों को एकरूपता प्रदान करने के लिए माननीय न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई जी की अध्यक्षता में समान नागरिक संहिता (UCC) के क्रियान्वयन हेतु विशेषज्ञ समिति का गठन कर दिया गया है.

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इससे पहले 2 मई को, हिमाचल प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर ने भी घोषणा की थी कि यूसीसी को जल्द ही राज्य में लाया जाएगा. हालांकि, देश के कई राज्यों में समान नागरिक संहिता पर बहस छिड़ गई है, हाल ही में असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने भी यह कहकर इसका समर्थन किया था कि UCC को मुस्लिम महिलाओं के अधिक हित में लागू किया जाना चाहिए अन्यथा बहुविवाह जारी रहेगा.

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 इधर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भाजपा शासित कुछ राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर शुरू हुई कवायद के बीच मंगलवार को कहा था कि यह असंवैधानिक कदम होगा और इसे देश के मुसलमान स्वीकार नहीं करेंगे.पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि वह ऐसा कोई कदम उठाने से परहेज करे.

उन्होंने एक बयान में कहा था, ‘‘भारत का संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के मुताबिक जीवन जीने की अनुमति देता है और यह मौलिक अधिकार भी है. इसी अधिकार के तहत अल्पसंख्यकों और आदिवासी वर्गों को उनकी रीति-रिवाज, आस्था और परंपरा के अनुसार अलग पर्सनल लॉ की अनुमति है.'' उनके मुताबिक, पर्सनल लॉ किसी तरह से संविधान में हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि यह अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदायों के बीच परस्पर विश्वास को कायम रखने में मदद करता है.

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