यूरोपीय तथा यूरेशियन मामलों की अमेरिकी सहायक विदेशमंत्री कैरेन डॉनफ्राइड ने बुधवार को कहा कि अमेरिका का रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर पाबंदी लगाने का इरादा नहीं है.
उन्होंने कहा कि अमेरिका के भारत के साथ रिश्ते सर्वाधिक परिणामोन्मुखी हैं, और भले ही नीतियों के मामले में अमेरिका और भारत के दृष्टिकोण अलग-अलग हो सकते हैं, दोनों ही देश अंतरराष्ट्रीय नियमों पर आधारित व्यवस्था को बरकरार रखने के प्रति कटिबद्ध हैं, और क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करते हैं.
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ऊर्जा संसाधनों के मामलों के अमेरिकी सहायक विदेशमंत्री जॉफरी प्यॉट ने कहा कि अमेरिका को रूस से तेल खरीद के मामले को लेकर भारतीय दृष्टिकोण से 'कोई दिक्कत नहीं', लेकिन हम इस मुद्दे पर जारी बातचीत को अहम मानते हैं. उन्होंने यह ज़िक्र भी किया कि कैसे हाल ही में हुई ज़्यादातर द्विपक्षीय चर्चाओं में ऊर्जा सुरक्षा भी बेहद अहम हिस्सा रही है.
इस बीच, वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिकों ने रूसी तेल पर लागू की गई अधिकतम मूल्य पाबंदी को उचित ठहराया और कहा कि भले ही भारत सौदेबाज़ी नहीं कर रहा है, लेकिन यह बेहतर कीमत पाने के लिए मोलभाव करने का अच्छा मौका था. दिसंबर में ही अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा था कि अधिकतम मूल्य पाबंदी के चलते 'रूसी तेल की कीमतों में कमी आएगी', और चीन व भारत जैसे मुल्क कीमतों में भारी कमी के लिए मोलभाव कर पाएंगे.
अधिकतम मूल्य पाबंदी के पीछे का विचार यूक्रेन में युद्ध को चला रहे रूस की कमाई को कम करना था, और अमेरिकी राजनयिकों ने संकेत दिए हैं कि उनका मानना है कि इन पाबंदियों से इच्छित नतीजे मिल भी रहे हैं.
पिछले कुछ महीनों में भारत ज़्यादा से ज़्यादा रूसी तेल सस्ती कीमत पर खरीद रहा है, और यूरोप और अमेरिका के लिए ईंधन के रूप में रिफाइन भी कर रहा है. भारत में रिफाइन किए गए ईंधन को रूसी मूल का ईंधन नहीं माना जाता.
समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में बताया गया है कि डेटा इन्टेलिजेन्स फर्म केप्लर के मुताबिक, भारत ने पिछले माह न्यूयॉर्क में लगभग 89,000 बैरल गैसोलीन और डीज़ल का प्रतिदिन निर्यात किया, जो लगभग चार वर्ष में सर्वाधिक रहा. ब्लूमबर्ग के अनुसार, जनवरी में यूरोप में 1,72,000 बैरल लो-सल्फर डीज़ल प्रतिदिन पहुंचा, जो अक्टूबर, 2021 के बाद सर्वाधिक रहा.