"नैतिक अधमता के कृत्यों का वर्दीधारी पेशे...", व्याभिचार पर सशस्त्र बलों को बाहर रखने की याचिका पर सुनवाई में रक्षा मंत्रालय

केंद्र ने एक अर्जी दाखिल की है, जिसमें 2018 के फैसले में आईपीसी की धारा 497 के तहत व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में रखते हुए स्पष्टीकरण मांगा गया था, जिसमें कहा गया था कि यह सशस्त्र बलों पर लागू नहीं होना चाहिए.

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रक्षा मंत्रालय का मानना, ये वर्दीधारी पेशे हैं, जहां नैतिक अधमता का कोई स्थान नहीं

नई दिल्‍ली: आईपीसी की धारा 497 यानि व्याभिचार पर सशस्त्र बलों को बाहर रखने की अर्जी पर सुनवाई हुई. रक्षा मंत्रालय ने व्याभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले से छूट मांगी है. रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ से कहा कि धारा 497 को रद्द करने के बाद रक्षा कर्मियों के बीच व्याभिचार के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. रक्षा मंत्रालय सेना अधिनियम के प्रावधानों के तहत सशस्त्र कर्मियों पर मुकदमा चलाना जारी रखना चाहता है. उनका कहना है कि नैतिक अधमता के कृत्यों का वर्दीधारी पेशे में कोई स्थान नहीं है. 

व्याभिचार के लिए कोर्ट मार्शल किए गए सेना अफसर अब व्याभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दे रहे हैं. अधिकारियों द्वारा अनुशासन का उल्लंघन राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ के सामने रक्षा मंत्रालय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील व एएसजी माधवी दीवान ने कहा, "वो सेना अधिनियम के प्रावधानों के तहत व्यभिचार के लिए सशस्त्र कर्मियों पर मुकदमा चलाना जारी रखना चाहते हैं. अशोभनीय आचरण के लिए उनका कोर्ट मार्शल होता है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बावजूद वो कोर्ट द्वारा प्रतिबंधित प्रावधान के तहत नहीं है." 

रक्षा मंत्रालय का मानना है कि ये वर्दीधारी पेशे हैं, जहां नैतिक अधमता का कोई स्थान नहीं है. अधिकारियों द्वारा अनुशासन का उल्लंघन राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है. दोषी अधिकारियों की धारणा यह है कि वे अब अनुशासनात्मक कार्रवाई के अधीन नहीं हैं, क्योंकि धारा 497 को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया है और व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है. हमें जो चिंता है कि वह मामलों की बाढ़ है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बाद एएफटी में कई मामले लंबित हैं. बहुत अराजकता है, जिस क्षण किसी पर आरोप पत्र दायर किया जाता है, अधिकारी जोसेफ शाइन के इस फैसले का हवाला देते हुए आरोपों को रद्द करने के लिए आवेदन करता है. धारणा यह है कि उन्हें दंडित नहीं किया जा सकता है. उनका बचाव यह है कि आप अप्रत्यक्ष रूप से वह नहीं कर सकते, जो आप सीधे नहीं कर सकते हैं. हम रक्षा बलों में और अधिक महिलाओं को लेने जा रहे हैं. इसलिए इस अदालत से एक स्पष्टीकरण आवश्यक है, क्योंकि अधिक से अधिक महिलाएं पुरुषों के साथ काम करने जा रही हैं और उन्हें नई वास्तविकता से परिचित होना होगा. 

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दरअसल केंद्र ने एक अर्जी दाखिल की है, जिसमें 2018 के फैसले में आईपीसी की धारा 497 के तहत व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में रखते हुए स्पष्टीकरण मांगा गया था, जिसमें कहा गया था कि यह सशस्त्र बलों पर लागू नहीं होना चाहिए. इसमें अपने साथी कर्मी की पत्नी के साथ व्यभिचार का मामला शामिल है. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने  कहा था कि व्यभिचार गहरा दर्द पैदा करता है और परिवारों को अलग कर देता है. इसलिए, इससे संबंधित मामलों को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. 

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जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाले संविधान पीठ ने मौखिक रूप से कहा था कि आप सभी वकील उस दर्द, गहरे दर्द से अवगत हैं जो व्यभिचार एक परिवार में पैदा करता है? हमने देखा है कि व्यभिचार के कारण परिवार कैसे टूटते हैं. हमने इसे अपने तक ही रखने की सोची, लेकिन हम आपको सिर्फ इतना बता रहे हैं कि इसे हल्के-फुल्के अंदाज में न लें. यदि आपके पास अनुभव है, तो आप जानते होंगे कि व्यभिचार होने पर परिवार में क्या होता है. बेंच में अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस सी.टी. रविकुमार भी शामिल हैं.

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