यूनिफॉर्म सिविल कोड: BJP के लिए आसान नहीं UCC की राह, विपक्ष के लिए भी इसे रोकना मुश्किल

जब समान नागरिक संहिता (UCC) को तैयार करने और इसे लागू करने को लेकर बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती आदिवासियों और उत्तर पूर्व क्षेत्र से आती है.

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केंद्र संसद के मॉनसून सत्र में यूसीसी बिल पास कराने की कोशिश में है.
नई दिल्ली:

देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर नई बहस छिड़ी है. 11 करोड़ से अधिक लोग. लगभग 700 जनजातियां. एसटी समूहों के बीच विविधता. खासकर जब शादी के तरीके, शादी की उम्र, रजिस्ट्रेशन, अडॉप्शन, तलाक और विरासत से जुड़े रीति-रिवाजों और परंपराओं की बात आती है, तो यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करना बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है. 

पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल की एक रैली में यूसीसी का मुद्दा उठाया और इसे अपना समर्थन दिया. इसके बाद से राजनीतिक और कानूनी हलकों में यूसीसी पर चर्चा तेज हो गई. विधि आयोग ने यूसीसी के लिए लोगों से राय मांगें हैं. विधि आयोग को दो सप्ताह के अंदर लगभग 19 लाख सुझाव मिल चुके हैं. सुझाव भेजने की डेडलाइन 13 जुलाई रखी गई है. इस बीच विपक्ष यूसीसी के विरोध में एक मजबूत, एकीकृत सहमति बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है. वहीं, यूसीसी पर विचार के विरोध और अस्वीकृति के कारण बीजेपी के लिए भी इसे संसद में पास कराना आसान नहीं होगा.

UCC को लेकर बीजेपी के सामने चुनौतियां
जब समान नागरिक संहिता (UCC) को तैयार करने और इसे लागू करने को लेकर बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती आदिवासियों और उत्तर पूर्व क्षेत्र से आती है. भारत की जनजातियां संख्यात्मक रूप से बहुत छोटी हैं. ये कुल जनसंख्या का लगभग 9 प्रतिशत है. लेकिन उनका विस्तार बहुत विशाल है और उनके रीति-रिवाजों की विविधता भी बहुत व्यापक है.

उत्तर पूर्व की बात करें तो नगालैंड में बीजेपी की सहयोगी पार्टी नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) और मेघालय में बीजेपी की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) ने यूसीसी की विरोध किया है. मेघालय के सीएम कोनरॉड संगमा ने यूसीसी को भारत के विचार के खिलाफ बताया है.

इसी तरह मिज़ोरम में बीजेपी की सहयोगी पार्टी मिज़ो नेशनल फ्रंट ने भी कहा है कि यूसीसी मिज़ोरम के लोगों की धार्मिक, सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानूनों, संस्कृतियों और परंपराओं को समाप्त करने की एक कोशिश है. मेघालय के मुख्यमंत्री कोनरॉड के. संगमा ने इस बात पर चिंता जताई कि यूसीसी का राज्य के तीन प्रमुख मातृसत्तात्मक समुदायों- गारो, खासी और जैंतिया पर किस तरह का प्रभाव पड़ सकता है.

वहीं, मेघालय में मातृसत्तात्मक खासील समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली हाइनीवट्रेप यूथ काउंसिल ने कहा है कि वह यूसीसी लागू करने के कदम के खिलाफ भारत के विधि आयोग को चिट्ठी लिखेगी. संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त निकाय 'खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद' ने पिछले सप्ताह एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से भूमि स्वामित्व की प्रथागत प्रथाओं, खासी में मातृसत्तात्मक प्रणाली की रक्षा की जरूरत का हवाला दिया और समाजिक परंपराओं और संस्कृति का ध्यान रखते हुए यूसीसी को नहीं अपनाने का आग्रह किया.

NDPP ने कहा है कि नागाओं को संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) के तहत उनकी पारंपरिक प्रथाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है. ऐसे में केंद्र और विधि आयोग को इस मामले पर पुनर्विचार करना चाहिए. पार्टी ने विशेष रूप से कहा है कि भारत-नागा राजनीतिक बातचीत 'अहम मोड़' पर है. यूसीसी जैसा कानून बनाना 'मूर्खतापूर्ण' होगा और इसका इस बातचीत पर असर पड़ सकता है. वहीं, असम में बीजेपी की प्रमुख सहयोगी एजीएफ या असम गण परिषद ने अभी तक यूसीसी पर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है. 

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बता दें कि पूर्वोत्तर दुनिया के सबसे सांस्कृतिक रूप से विविध क्षेत्रों में एक है. यह 220 से अधिक जातीय समुदायों का घर है. कई लोगों को डर है कि यूसीसी संविधान द्वारा संरक्षित उनके प्रथागत कानूनों को प्रभावित करेगा.

उधर, बीजेपी भी इन चिंताओं से वाकिफ है. शायद इसी कारण से संसदीय समिति के अध्यक्ष बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी ने जनजातीय क्षेत्रों सहित यूसीसी के कामकाज की व्यावहारिकता पर सवाल उठाया है, क्योंकि उनके रीति-रिवाज, परंपराएं और रीति-रिवाज अन्य समुदायों से भिन्न हैं और संविधान उन्हें विशेष सुरक्षा प्रदान करता है. यह मामला कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने भी उठाया था. उन्होंने कहा था कि यूसीसी संविधान के कई प्रावधानों के साथ टकराव में आएगी.

बीजेपी आदिवासी बहुल क्षेत्रों में अपने वोट शेयर पर यूसीसी के संभावित प्रभावों से भी वाकिफ है. 2018 के चुनाव में बीजेपी को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक चुनावी नुकसान आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ही हुआ. इसलिए हम समझते हैं कि वह यूसीसी को लेकर सावधान रहेगी और व्यापक परामर्श का रास्ता अपनाएगी. 

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अब बात पंजाब की. पंजाब में बीजेपी की पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने भी UCC पर चिंता जाहिर की है.  अकाली दल ने कहा कि इससे अल्पसंख्यकों और आदिवासी समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. वहीं, कई सिख कार्यकर्ताओं  का कहना है कि अपने रीति-रिवाजों के संबंध में केंद्र से बात करने के लिए उनके पास एक सिख पर्सनल लॉ होगा.

 यूसीसी लागू करेगी उत्तराखंड सरकार
इस बीच, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. उन्होंने सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की. दोनों के बीच यूसीसी मसौदे पर एक लंबी चर्चा हुई. इस मसौदे को रिटायर्ड जस्टिस रंजना देसाई के नेतृत्व वाली एक समिति ने पेश किया था. एक साल पहले गठित की गई समिति ने पिछले 11 महीनों में लगभग 63 बैठकें की हैं. ऐसा पता चला है कि उसने न केवल हिंदू अखाड़ों, बल्कि सीमावर्ती गांवों, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लोगों से भी मुलाकात की है. समिति ने समान मुद्दों पर कई कानूनों के साथ मौजूद विसंगतियों पर भी गौर किया है.

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उदाहरण के लिए जब बच्चों को गोद लेने की बात आती है, तो धार्मिक कानून किशोर न्याय अधिनियम से अलग हो सकते हैं. इसी तरह जब शादी की बात आती है, तो बाल विवाह रोकथाम अधिनियम है, जो मुस्लिम पर्सनल लॉ के विपरीत है. रिटायर्ड जस्टिस रंजना देसाई ने विशेष रूप से जोर देते हुए कहा है कि कानून का मसौदा राज्य के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जा रहा है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी ने कहा है कि राज्य में जल्द ही यूसीसी लागू किया जाएगा और एक तरह से स्वतंत्र भारत में यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य बन जाएगा.

यूसीसी पर विपक्ष के सामने चुनौतियां
विपक्ष ने भी वास्तव में यूसीसी के विचार के प्रति कोई स्पष्ट, एकीकृत सामूहिक प्रतिरोध नहीं किया है. ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि कुछ पार्टियां कम से कम यह नहीं चाहती हैं कि उन्हें प्रतिगामी कानूनों का समर्थन करने वाले के रूप में देखा जाए. उदाहरण के लिए, बीएसपी यूसीसी के विचार का समर्थन करती है. उसका मानना ​​है कि सरकार को मुसलमानों और आदिवासियों सहित सभी समुदायों को विश्वास में लेने के बाद ही इस पर आगे बढ़ना चाहिए. पार्टी का रुख है कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने यूसीसी के विचार का समर्थन किया था, लेकिन इसे जल्दबाजी में लागू नहीं किया जाना चाहिए.

यूसीसी को लेकर कांग्रेस के अंदर भी अलग-अलग आवाजें उठने लगी हैं. शिवसेना यूसीसी की मुखर समर्थक रही है. हालांकि, अब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला गुट कह रहा है कि सरकार को चुनावों को ध्यान में रखते हुए यूसीसी नहीं लाना चाहिए. क्योंकि इससे कई हिंदू भी प्रभावित होंगे. हाल ही में संयुक्त विपक्ष से अपना समर्थन वापस लेने वाली आम आदमी पार्टी ने भी यूसीसी के विचार का समर्थन किया है.


राज्यसभा में आप के 10 सांसद हैं. जब संसद में बीजेपी यूसीसी विधेयक लाएगी, तो उसके लिए संख्या बल महत्वपूर्ण होगा. खासकर इसलिए क्योंकि जिन पार्टियों ने अतीत में इसके कदमों का समर्थन किया है, जैसे कि वाईएसआरसीपी... अब वो यूसीसी का विरोध कर रहे हैं. इससे पता चलता है कि विपक्ष के भीतर भी मतभेद हैं. बहरहाल 17 और 18 जुलाई को बेंगलुरु में 15 विपक्षी दलों की बैठक होनी है, तभी इस मामले में कुछ स्पष्टता आ सकती है.

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