नए विधेयक के तहत मृत्युदंड प्राप्त दोषी दया याचिका पर राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ अपील नहीं कर सकता

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह लेने के लिए प्रस्तावित बीएनएसएस विधेयक की धारा 473 के अनुसार, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दिए गए राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जाएगी और यह अंतिम होगा, और राष्ट्रपति द्वारा निर्णय के आने के संबंध में किसी भी अदालत में कोई प्रश्न नहीं उठाया जाएगा.’’

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प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: मृत्युदंड की सजा प्राप्त जिस दोषी की दया याचिका का राष्ट्रपति ने निपटारा कर दिया हो, उसे नए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक (बीएनएसएस), 2023 के कानून बनने पर फैसले के खिलाफ अदालत में अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा. संविधान का अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा को माफ करने, राहत देने, सजा कम करने या उसकी सजा को निलंबित करने का अधिकार देता है.

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह लेने के लिए प्रस्तावित बीएनएसएस विधेयक की धारा 473 के अनुसार, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दिए गए राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जाएगी और यह अंतिम होगा, और राष्ट्रपति द्वारा निर्णय के आने के संबंध में किसी भी अदालत में कोई प्रश्न नहीं उठाया जाएगा.''

उच्चतम न्यायालय ने अतीत में फैसला सुनाया है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा क्षमादान और माफी जैसी विशेषाधिकार शक्तियों का प्रयोग न्यायसंगत है और इसे ‘‘अनुचित और अस्पष्ट'' देरी, एकान्त कारावास समेत अन्य आधारों पर चुनौती दी जा सकती है.

मृत्युदंड प्राप्त अधिकांश दोषियों को अपनी दया याचिकाओं की अस्वीकृति के खिलाफ अदालतों का दरवाजा खटखटाते देखा गया है. कुछ मामलों में, दया याचिकाओं पर निर्णय लेने में राष्ट्रपति द्वारा ‘‘अत्यधिक देरी'' को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन माना गया और मृत्युदंड को भी बदल दिया गया.

अतीत में ऐसे कई उदाहरण रहे हैं जहां मौत की सजा पाए दोषियों ने अंतिम समय में अदालत का रुख किया और राष्ट्रपति द्वारा उनकी दया याचिकाओं को खारिज करने पर पुनर्विचार की मांग की. इनमें 2015 में 1991 मुंबई विस्फोटों के दोषी याकूब मेमन और 2020 में निर्भया मामले के चारों दोषियों की याचिका शामिल हैं. दोनों ही मामलों में उच्चतम न्यायालय ने मृत्युदंड पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

बीएनएसएस विधेयक की धारा 473 में एक ही मामले में मौत की सजा पाए कई दोषियों द्वारा दायर की गई अलग-अलग याचिकाओं के कारण होने वाली देरी को भी दूर करने का प्रावधान है. निर्भया मामले में, चारों दोषियों ने अलग-अलग समय पर अपनी दया याचिका दायर की थी, जिससे आखिरी याचिका खारिज होने तक देरी हुई.

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विधेयक में प्रस्ताव है कि जेल अधीक्षक यह सुनिश्चित करेगा कि प्रत्येक दोषी, यदि किसी मामले में एक से अधिक हैं, 60 दिन के भीतर दया याचिका प्रस्तुत करे और जहां अन्य दोषियों से ऐसी कोई याचिका प्राप्त नहीं होती है, वह स्वयं मूल दया याचिका के साथ नाम पते, केस रिकॉर्ड की प्रतियां और अन्य सभी विवरण केंद्र या राज्य सरकार को भेजें.

सभी दोषियों की याचिकाओं पर राष्ट्रपति एक साथ फैसला करेंगे. राज्यपाल (अनुच्छेद 161) और राष्ट्रपति (अनुच्छेद 72) के पास मृत्युदंड के मामलों में दया याचिका दायर करने के लिए समय-सीमा निर्दिष्ट करने के अलावा, बीएनएसएस विधेयक की धारा 473 राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेजने की याचिका पर राज्य सरकार की टिप्पणियां प्राप्त होने की तारीख से केंद्र को 60 दिन का समय देने का प्रावधान करती है.हालांकि, दया याचिकाओं के निपटारे के संबंध में राष्ट्रपति के लिए कोई समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं की गई है.

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दया याचिका पर राष्ट्रपति के फैसले के बारे में केंद्र द्वारा राज्य के गृह विभाग और संबंधित जेल अधीक्षक को निपटान के 48 घंटे के भीतर सूचित करने का प्रस्ताव किया गया है. हालांकि, शत्रुघ्न चौहान मामले में 2014 के आदेश में उच्चतम न्यायालय के एक दिशानिर्देश के बावजूद, राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका की अस्वीकृति और फांसी की तारीख के बीच 14 दिन का कोई अंतर विधेयक की धारा 473 में वर्णित नहीं किया गया है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त को लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक, 2023; भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) विधेयक, 2023 और भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक, 2023 पेश किये. ये विधेयक क्रमशः भारतीय दंड संहिता, 1860; दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का स्थान लेंगे.
 

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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