'तीन बार तलाक बोलकर तलाक नहीं हो सकता...', कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा और क्यों मांगी केंद्र से रिपोर्ट, पढ़ें हर एक बात

कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में अब अगली सुनवाई 17 मार्च के बाद होगी. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से तीन हफ्ते में लिखित जवाब दाखिल करने को भी कहा है. 

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नई दिल्ली:

तीन तलाक का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है. इसे लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक जोरदार बहस भी हुई. दरअसल, ये बहस उस याचिका को लेकर हुई जिसमें तीन तलाक को लेकर केंद्र सरकार के कानून को चुनौती दी गई है. इस बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार से इस कानून को लेकर सरकार से पूरा ब्योरा मांगा है. साथ ही तीन तलाक को लकेर देशभर में कितनी FIR और चार्जशीट हुईं हैं वो भी बताने को कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि हम डेटा का परीक्षण करेंगे. कोई भी वकील तीन तलाक प्रथा की वैधता का बचाव नहीं कर सकता है. कोर्ट ने ये भी कहा है कि लेकिन हमारे सामने सवाल यह है कि क्या इसे आपराधिक बनाया जा सकता है. खासकर तब जब इस प्रथा पर ही प्रतिबंध है. कोर्ट ने ये भी साफ किया कि कोई एक बार में तीन बार तलाक बोलकर किसी से तालक नहीं ले सकता है. इस मामले में अब अगली सुनवाई 17 मार्च के बाद होगी. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से तीन हफ्ते में लिखित जवाब दाखिल करने को भी कहा है. 

CJI ने क्या कुछ कहा

इस मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टीस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना ने कहा कि पति-पत्नी के बीच संबंध बना रहता है, यह खत्म नहीं होता, प्रक्रिया ही अपराध है.सिख, जैन, बौद्ध आदि हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत आते हैं. हमारे पास वैधानिक अधिनियम हैं. मुझे नहीं लगता कि कोई भी वकील तीन तलाक की प्रथा का समर्थन करेगा लेकिन हमारे सामने सवाल यह है कि क्या इसे आपराधिक बनाया जा सकता है, जबकि इस प्रथा पर प्रतिबंध है और एक बार में तीन बार तलाक बोलकर तलाक नहीं हो सकता. 

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का किया विरोध

मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ऐसी तमाम याचिकाओं का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि तीन तलाक केवल कथनी ही नहीं, बल्कि रिश्ते को भी तोड़ता है.आप कहते हैं कि अगले ही मिनट से आप मेरी पत्नी नहीं हैं. यह एक दुर्लभ संवैधानिक संशोधन है. 

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केंद्र ने बनाया है कानून

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट फिलहाल तीन तलाक़ पर केंद्र सरकार के क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर  सुनवाई कर रहा है.सरकार ने इस क़ानून के जरिये तीन तलाक़ को अपराध के दायरे में लाकर तीन साल की सज़ा का  प्रावधान किया है, जिसे विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने SC में चुनौती दी गई है. केंद्र सरकार ने SC में जवाब दाखिल कर इस क़ानून का बचाव किया है. सरकार का कहना है कि  SC द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किये जाने के बावजूद इस पर रोक नहीं लग पाई थी. कोर्ट के फैसले के बाद भी देश भर में सैकड़ों तीन तलाक के केस सामने आए हैं.ऐसे में SC के फैसले पर पूरी तरह अमल सुनिश्चित करने के लिए क़ानून की ज़रूरत थी. उसने इसे रोकने में मदद की है. 

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