सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी से राहत को रखा बरकरार

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ पर 2002 के गोधराकांड के बाद हुए दंगों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए सुबूत गढ़ने का आरोप है.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad) की गिरफ्तारी से राहत को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 15 जुलाई तक गुजरात सरकार अपना जवाब दाखिल करे. दस्तावेजों का अनुवाद कोर्ट को और दोनों पक्षकारों को सौंप दिया जाए. जस्टिस वीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की तीन जजों की बेंच में हुई तीस्ता की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. तीस्ता सीतलवाड़ की तरफ से वकील कपिल सिब्बल पेश हुए जबकि गुजरात सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बीएस राजू पेश हुए. गुजरात सरकार ने कहा कि सभी दस्तावेजों का अंग्रेजी में अनुवाद नहीं हो पाया है लिहाजा सुनवाई टाल दी जाए, लेकिन कोर्ट ने कहा कि हमारे यहां बैठने का असर तीन बेंच पर पड़ता है.

इसके बाद जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने तीस्ता को गिरफ्तारी से मिली राहत अगले आदेश तक बरकरार रखने का आदेश देते हुए अगली सुनवाई 19 जुलाई को तय कर दी.

पीठ ने कहा कि 15 जुलाई तक गुजराती दस्तावेजों का अनुवाद कोर्ट को और दोनों पक्षकारों को सौंप दिया जाए. पिछले साल सितंबर को तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत पर रिहा कर गुजरात हाईकोर्ट को मामले में मैरिट के आधार पर निर्णय करने को कहा था. पिछले शनिवार को हाईकोर्ट ने तीस्ता की जमानत रद्द कर तुरंत आत्मसमर्पण करने को कहा था. तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है. छुट्टी होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस प्रशांत मिश्र की पीठ शाम साढ़े छह बजे बैठी. सुनवाई के दौरान दोनों जजों के विचार अलग-अलग थे. लिहाजा तीन जजों की पीठ के सामने इस मामले की सुनवाई की सिफारिश की गई. उसी रात सवा 9 बजे जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने तीस्ता को एक हफ्ते के लिए 
राहत देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता महिला है, लिहाजा राहत की हकदार हैं.

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तीस्ता सीतलवाड़ पर क्या आरोप हैं?
गुजरात उच्च न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की नियमित जमानत याचिका शनिवार को खारिज कर दी थी और उन्हें 2002 के गोधराकांड के बाद हुए दंगों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए सुबूत गढ़ने से जुड़े एक मामले में तत्काल आत्मसमर्पण करने को कहा गया था. न्यायमूर्ति निर्जर देसाई की अदालत ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज की और उन्हें तत्काल आत्मसमर्पण करने को कहा था, क्योंकि वह पहले ही अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर हैं.

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