बिलकिस बानो मामले के 11 दोषियों की रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सवाल उठाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, दोषियों की रिहाई पर प्राधिकरण ने स्वतंत्र विवेक का इस्तेमाल कैसे किया? आखिरकार प्राधिकरण कैसे रिहाई देने की सहमति पर पहुंचा? सहमति वाली राय कैसे बनाई गई? कोर्ट ने कहा कि, सहमति वाली राय बनाने में भी विवेक का स्वतंत्र प्रयोग होना जरूरी है. इसे व्यापक कारणों से समर्थित करने की जरूरत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में भीड़भाड़ के संबंध में भी सवाल उठाए. उसने कहा, हम चाहते हैं कि भारत में 14 साल की सजा पूरी कर चुके सभी कैदियों के लिए सुधारात्मक सिद्धांत हो. हमारी जेलें खचाखच भरी क्यों हैं? ऐसे कैदियों को भी छूट का लाभ मिले.
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार और दोषियों के वकीलों से कहा कि दोषियों की रिहाई के आदेश को चुनौती दी जा सकती है.
11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो की सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार ने कहा कि रिहाई को लेकर सीबीआई ने कोई नकारात्मक राय नहीं दी.
छूट के आदेश को चुनौती दे सकती है बिलकीस बानो
सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि कौन सी छूट नीति लागू होगी और किस राज्य का अधिकार है, यह मुद्दा सुलझ चुका है और इसे दोबारा नहीं खोला जा सकता. अदालत ने कहा बिलकीस ने कभी भी छूट आदेश को चुनौती नहीं दी और इसलिए वह ऐसा कर सकती है. छूट आदेश को चुनौती देने के लिए कोई रोक नहीं है.
न्यायालय के सवालों के जवाब में दोषियों का दावा है कि महाराष्ट्र ट्रायल जज से भी सलाह ली गई थी, जबकि राज्य ने कहा कि सजा माफी के मामले में केवल गोधरा जज से सलाह ली गई थी. इस मामले में अब सुनवाई 31 अगस्त को होगी.
छूट की नीति को चुनिंदा तरीके से क्यों लागू किया जा रहा?
पिछली सुनवाई में जस्टिस बीवी नागरत्ना ने गुजरात सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा था कि आखिर यह छूट की पॉलिसी चुनिंदा लोगों के लिए ही आखिर क्यों है? उन्होंने कहा था कि हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि छूट की नीति को चुनिंदा तरीके से क्यों लागू किया जा रहा है? उन्होंने कहा था, सुधार का अवसर सिर्फ कुछ कैदियों को ही नहीं, यह मौका तो हर कैदी को दिया जाना चाहिए.
गुजरात सरकार की ओर से ASG एसवी राजू ने इस पर कहा था कि आम तौर पर इसका उत्तर देना मुश्किल है. हालांकि उन्होंने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में एक मामला लंबित है जिसमें सभी राज्यों को इसके बारे में डिटेल जानकारी कोर्ट को देनी है. इसके लिए कुछ निर्देश तैयार किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा था कि दोषियों को रिहाई कानून के मुताबिक दी गई है. चूंकि वे 2008 में दोषी ठहराए गए थे इसलिए उनके लिए 1992 की पॉलिसी के तहत विचार किया जाना था.
सार्वजनिक आक्रोश पर विचार नहीं करेगा सुप्रीम कोर्ट
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बिलकीस मामले में सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश पर सवाल उठाए थे. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि जनहित याचिका पर पिछला आदेश कैसे पारित किया गया, जबकि यह बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील होनी चाहिए थी. इस मामले में वह केवल कानूनी तर्कों और योग्यताओं के आधार पर चलेगा, हम सार्वजनिक आक्रोश पर विचार नहीं करेंगे.
सुनवाई के दौरान बिलकीस की वकील शोभा गुप्ता ने कहा था कि दोषियों की रिहाई पर गुजरात सरकार का निर्णय गलत है. इस मामले में महाराष्ट्र राज्य की बात नहीं सुनी गई. इसमें केंद्र को पार्टी भी नहीं बनाया गया है. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट का आदेश केवल दोषी राधेश्याम के आवेदन के संबंध में था जबकि गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को सजा में छूट दे दी. मैं ही पीड़ित थी लेकिन इसके नाते भी मुझे इनकी रिहाई होने तक फैसले के बारे में पता ही नहीं चलने दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने तर्क पर विचार नहीं किया
बिलकिस की ओर से कहा गया था कि यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला है. सुप्रीम कोर्ट ने भी उस दौरान हमारे तर्क पर विचार नहीं किया. गुजरात सरकार ने केवल इस बात पर आपत्ति जताई कि रिहाई का निर्णय कौन सी सरकार करेगी? इस मामले में अन्य दोषियों के लिए समय पूर्व रिहाई के आदेश राधेश्याम के मामले में पारित आदेश के आधार पर ही तैयार किए गए, जबकि ADGP की ओर से भी आपत्ति जताई गई थी. यहां तक कि ट्रायल जज ने भी इनकार किया था.
दरअसल दोषी राधेश्याम भगवानदास द्वारा दायर रिट याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि सजा में छूट पर निर्णय लेने का अधिकार गुजरात के पास होगा और साथ ही 1992 के नियमों के तहत छूट मिलेगी.