मैटरनिटी एक्ट के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और गोद लेनेवाली माताओं के लिए मातृत्व अवकाश नियम भेदभावपूर्ण बताया गया है. सुप्रीम कोर्ट इस जनहित याचिका पर 28 अप्रैल को सुनवाई के लिए सहमत हुआ है. जनहित याचिका में कहा गया है कि मैटरनिटी एक्ट के तहत मातृत्व अवकाश केवल तभी मिल सकता है, जब 3 महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लिया जाए. इसी भेदभाव के कारण माता-पिता बड़े बच्चों की तुलना में नवजात बच्चों को गोद लेना पसंद करते हैं.
याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम के उस प्रावधान को चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि गोद लेनेवाली माताएं केवल तभी मातृत्व अवकाश की पात्र होंगी, जब वे 3 महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लेती हैं. याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान गोद लेनेवाली माताओं के प्रति "भेदभावपूर्ण और मनमाना" है. तीन महीने से अधिक उम्र के अनाथ, त्यागे गए या सरेंडर किए गए बच्चे को गोद लेनेवाली मां के लिए मातृत्व अवकाश का कोई प्रावधान नहीं है. इस तरह के अंतर से माता-पिता बड़े बच्चों के बजाय नवजात बच्चों को गोद लेना पसंद करेंगे.
याचिका में जैविक माताओं की तुलना में 3 महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लेने वाली माताओं को प्रदान की जाने वाली मातृत्व अवकाश की अवधि पर भी आपत्ति जताई गई है. गोद लेने वाली मां को 12 सप्ताह का मातृत्व लाभ मिलता है, लेकिन जैविक माताओं को 26 सप्ताह का मातृत्व लाभ मिलता है.
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