अगस्त 2019 में जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाया तो लद्दाख को यूनियन टेरिटरी का दर्ज़ा मिला. लद्दाख में लेह की पहाड़ियों पर रहने वाले लोगों ने नाच-गाकर इसका जश्न मनाया, लेकिन अब लद्दाख के लोग अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं और दिल्ली पहुंचे हैं.
लद्दाख के लोगों की चार मांगें हैं. पहला राज्य का दर्जा, दूसरा छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा, तीसरा लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीटें और चौथा स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण. मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित सोनम वांगचुक भी इस प्रदर्शन में शामिल होंगे.
इन लोगों की मांग है कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए, लेकिन विधानसभा के साथ. फिलहाल, लद्दाख के लोग अपने कल्चर, अपनी ज़मीन की पहचान और पर्यावरण के लिए आवाज़ उठा रहे हैं. लद्दाख से उठ रही तमाम मागों में सबसे अहम है लद्दाख को शेड्यूल-6 में शामिल करने की, जो लद्दाख में मौजूद जिला काउंसिलों को खास अधिकार देगा.
इससे इन काउंसिल के पास इलाके में ज़मीन, जंगल समेत अन्य चीजों में कानून बनाने का अधिकार होगा. शेड्यूल-6 के बिना लद्दाख की नाज़ुक पारिस्थिति उद्योगों के प्रवाह से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है. भाजपा ने वादा किया था कि लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट कौंसिल के चुनाव जीतने के बाद शेड्यूल-6 पर करवाई होगी.
लोगों का आरोप है कि लद्दाख के लिए आवंटित किया गया बजट भी ठीक से इस्तेमाल नहीं किया जा रहा. बढ़ते पर्यटन को लेकर भी चिंता है. लद्दाख की जनसंख्या 3.5 लाख है, लेकिन 2020-21 में 4 लाख पर्यटक यहां पहुंचे थे, जिसे लेकर चिंता जताई गई. इस बात को लेकर गुस्सा है कि लद्दाख के लोगों की अभी भी प्रतिनिधित्व की कमी है और नीति-निर्माण में उनकी भूमिका बहुत कम है.
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