पुरानी किताबों और अभिलेखों के अनुसार दिल्ली में जिस जगह युद्ध स्मारक के मेहराब की नींव आज से ठीक 101 साल पहले रखी गई थी, जिसे आज इंडिया गेट के नाम से जाना जाता है, वहां एक गुंबदनुमा ढांचे वाले स्मारक में कटोरे की आकृति जैसे पात्र में लौ जगमगाती रहती है. इस अवसर पर समारोह स्थल पर स्मारक मेहराब की एक प्रतिकृति का भी अनावरण किया गया था. ऐतिहासिक घटना की तस्वीरें इस बात की गवाही देती हैं. प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) और तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध (1919) में मारे गए सैनिकों के सम्मान में लाल बलुआ पत्थर से निर्मित 42 मीटर ऊंचा युद्ध स्मारक मेहराब बनाया गया था और उसकी सतह पर सैनिकों के नाम खुदे हुए हैं.
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पुराने अभिलेखों के अनुसार, वास्तुकार सर एडविन लैंडसीर लुटियंस द्वारा डिजाइन किए गए स्मारक की आधारशिला 10 फरवरी, 1921 को ब्रिटिश शाही ड्यूक ऑफ कनॉट ने अपनी भारत यात्रा के दौरान रखी थी. प्रिंस आर्थर, ड्यूक ऑफ कनॉट एंड स्ट्रैथर्न, ब्रिटिश साम्राज्य के तत्कालीन शासक किंग जॉर्ज पंचम के चाचा थे जिन्होंने 1911 में दिल्ली में एक भव्य दरबार आयोजित किया था, जहां उन्होंने शाही राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की भी घोषणा की थी.
यह प्रतिष्ठित स्मारक आज दिल्ली तथा भारत का एक वास्तविक प्रतीक है. नयी शाही राजधानी ‘नयी दिल्ली' के निर्माण के दौरान इसे बनाया गया था और फरवरी 1931 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने इसका अनावरण किया था. नई शाही राजधानी के निर्माण के दौरान प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया और ब्रिटिश भारतीय सेना से बड़ी संख्या में सैनिकों को युद्ध क्षेत्रों में भेजा गया.
अमर जवान ज्योति 'बुझाई नहीं जा रही बल्कि...', विवाद के बीच केंद्र ने किया साफ
इंडिया गेट आज एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण स्थल है जो भारत के उन शहीद सैनिकों के लिए स्मारक है. उन अभियानों में 80,000 से अधिक भारतीयों ने अपनी जान दी और इंडिया गेट पर 13,516 शहीदों के नाम अंकित हैं. ‘एक सैनिक के हेलमेट के साथ उल्टी बंदूक, शाश्वत प्रज्वलित लौ' वाली ‘अमर जवान ज्योति' 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारत की जीत के उपलक्ष्य में बनाई गई थी और इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी, 1972 को किया था.
इंडिया गेट के मेहराबों के नीचे 50 वर्षों तक लगातार प्रज्जवलित रहने के बाद अमर जवान ज्योति को 21 जनवरी को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में शाश्वत ज्वाला के साथ मिला दिया गया, जिस पर विशेषज्ञों और पूर्व सैनिकों की राय बंटी हुई है और इसने एक विवाद को जन्म दिया. ‘नयी दिल्ली' के उद्घाटन से पहले जनवरी 1931 में लंदन में प्रकाशित द आर्किटेक्चरल रिव्यू में इस युद्ध स्मारक मेहराब पर एक खंड है, जिसकी प्रति ‘पीटीआई' को मिली है. 1938 में प्रकाशित जॉन मुरे की किताब हैंडबुक फॉर ट्रैवलर्स इन इंडिया, बर्मा एंड सीलोन' के एक संस्करण में भी इस लौ का उल्लेख है.
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