समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने कहा कि, आज राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र नहीं बचा है. आज कोई भी दल ऐसा नहीं है जिसमें आंतरिक लोकतंत्र हो. यह स्थिति लोकतंत्र की समाप्ति और तानाशाही को लाने वाली होती है. लोहिया कहते थे कि आज हम ऐसा समाज बन गए हैं, जहां हम दूसरों की तो आलोचना करते हैं लेकिन आत्मचिंतन नहीं करते. सबसे अच्छा वह दिन होगा जिस दिन हम अपने दल की सरकार की आलोचना शुरू करेंगे.''
रघु ठाकुर ने उक्त बात नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में "लोहिया के सपनों का भारत- भारतीय समाजवाद की रूपरेखा" पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में कही. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश थे और अध्यक्षता गांधीवादी समाजवादी रघु ठाकुर ने की. कार्यक्रम को पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे, दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष और पत्रकार राम बहादुर राय और राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर केएल शर्मा और किताब के लेखक अशोक पंकज ने भी संबोधित किया.
रघु ठाकुर ने कहा कि, ''लोहिया कहते थे कि गांधी ने हमको सबसे बड़ा हथियार दिया है कि कितनी ही बड़ी सत्ता या निरंकुश सत्ता क्यों ना हो, अगर एक व्यक्ति भी प्रतिकार करना चाहे तो कर सकता है. यही सबसे बड़ी शक्ति है, इंसान के मन में प्रतिकार करने की शक्ति. यह लोहिया का दर्शन है जिस पर चर्चा होनी चाहिए. महत्वाकांक्षाएं और उनके झगड़े हर दल और हर समय में रहे हैं. ऐसा कोई संगठन, कोई देश नहीं, जहां महत्वाकांक्षाओं के झगड़े ना हों, हर विचारधारा में हैं. लेकिन यह अच्छी बात भी है क्योंकि इससे नई चीज सामने आती है. कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए. इसी अंतर के कारण समाज में दिक्कत पैदा होती है.''
उन्होंने कहा कि, "आज लोहिया पर पूरी दुनिया में चर्चा शुरू हुई है. विचार कभी मरता नहीं है.अलग-अलग कालखंड में उसकी चर्चा कम या ज्यादा हो सकती है. लोहिया कहा करते थे कि एटम और गांधी में यदि जीत की चर्चा होगी तो आखिर में गांधीजी जीतेंगे. ब्रेल्स फोर्ड यूरोप के बड़े पत्रकार ने अपनी टिप्पणी मे कहा कि- एटम और गांधी में नहीं बल्कि एटम, गांधी और मार्क्स/लेनिन में है और 15 साल बाद उन्ही ब्रेल्स फोर्ड ने लिखा कि लोहिया ठीक थे क्योंकि आज मार्क्स /लेनिन फुसफुसाहट सिद्ध हो चुके हैं. आज लड़ाई एटम और गांधी के बीच ही है.''
आज के मीडिया ऐटम से भी बड़ी चुनौती
रघु ठाकुर ने कहा कि, ''मैं आज के मीडिया को ऐटम से भी बड़ी चुनौती मानता हूं. इंसान की आजादी को राज्य के हमले से कैसे बचाया जाए, यह आज एक बड़ा प्रश्न है. यह कल भी था और आज तो और भी बड़ा हो गया है. राज्य के हमले से इंसान की आजादी को अगर बचाना है तो संस्थाओं के भरोसे नहीं बचाया जा सकता. उसके लिए हमें सूत्र खोजने होंगे, गांधी और लोहिया में. डॉ लोहिया कहा करते थे कि मैं एक ऐसा इंसान गढ़ना चाहता हूं जो स्वभाव से सत्याग्रही हो. यह दलों के स्तर पर नहीं हो सकता. जिस दिन हर इंसान सत्याग्रही हो जाएगा, लड़ने को तैयार हो जाएगा, वह दिन सबसे अच्छा दिन होगा. उस दिन सत्ता की ताकत, सत्ता की शक्ति कमजोर पड़ जाएगी.''
रघु ठाकुर ने कहा कि, ''आज सभी दल भयभीत हैं कि हमारी सरकार आएगी या नहीं. टिकटार्थी इस चीज से चिंतित हैं कि उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं मिलेगा. जिस दिन हम तय कर लेंगे कि हम जहां भी हैं,जहां भी रहें, वहां निर्भीक रहेंगे. सत्ता रहे ना रहे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. उस दिन सच्चा समाजवाद आएगा. एक बार रामविलास शर्मा जी से किसी ने प्रश्न किया कि समाजवाद क्या है? तो रामविलास जी ने अपना कुर्ता उठाकर पेट दिखाया और कहा कि पेट पर यह जो चर्बी दिखाई दे रही है, यह नहीं होनी चाहिए. इस चर्बी का हटना ही समाजवाद है. असहमति का हमारा अधिकार होना चाहिए. लेकिन हम अपनी जिम्मेदारी न मानें, यह भी सही नहीं है. दोनों साथ-साथ होने चाहिए, असहमति का अधिकार और जिम्मेदारी भी. सन 1974 में युवजन सभा के एक सम्मेलन में जयप्रकाश जी से पूछा गया कि उनकी संपूर्ण क्रांति क्या है? तो जयप्रकाश जी ने उत्तर दिया कि लोहिया की सप्त-क्रांति ही मेरी संपूर्ण क्रांति है. लोहिया जी कहा करते थे कि राजनीति अल्पकालिक धर्म है और धर्म अल्पकालिक राजनीति. दोनों को अलग-अलग करके नहीं देखना चाहिए. दोनों को एक साथ देखना चाहिए. धर्म में भी परिवर्तन की संभावनाएं होनी चाहिए."
गांधी के बाद लोहिया की आवाज दूर-दराज के गांव तक भी पहुंचती थी : हरिवंश
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने कहा कि -" इस पुस्तक का संकलन बड़े ही सुंदर तरीके से किया गया है . गांधी के बाद लोहिया की आवाज दूर-दराज के गांव तक भी पहुंचती थी जबकि उस समय बातों को पहुंचाने के साधन बहुत ही सीमित थे. दूर गांव समाज का आदमी चर्चा करता था कि कोई हमारे जैसा ही धोती कुर्ते वाला हमारी बात कहने वाला, हमारे बारे में सोचने वाला भी है.''
उन्होंने कहा कि, ''जेपी (जयप्रकाश नारायण) बड़े भावुक व्यक्ति थे. गांधी जी ने एक बार कांग्रेस की मीटिंग में कहा कि समाजवादी जो इतनी लंबी-लंबी बातें करते हैं इन समाजवादियों को एक प्रदेश को सौंप देना चाहिए, उसमें यह काम करके दिखाएं. लेकिन सरदार पटेल और दूसरे कई कांग्रेसी नेता इसके लिए तैयार नहीं हुए. यदि ऐसा हो जाता तो शायद कांग्रेस और देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव हो सकता था. डॉक्टर लोहिया में अद्भुत प्रतिभा थी.''
डॉ लोहिया ने गहराई से अध्ययन कर देश को विचार दिए
मुचकुंद दुबे ने कहा कि, "मैं बचपन से ही समाजवादी रहा हूं और आज भी हूं. मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं की जयप्रकाश मेरे हीरो रहे हैं और विद्यार्थी जीवन में डॉक्टर लोहिया मेरे हीरो रहे. मैं अपने विद्यार्थी जीवन में युवजन सभा में बहुत सक्रिय रहा. किसी एक विचारधारा को पसंद करना और दूसरी को नापसंद करना, उस समय, हमारी समझ में नहीं आता था. समाजवाद, मार्क्सवाद, कांग्रेस वाद और भाजपावाद, ये चारों विचारधाराए भारत में ही जन्मी और यहीं पोषित हुई. सिविल नाफरमानी गांधी जी का देश को दिया गया सबसे बड़ा हथियार है. इसी विचार ने हमें आजादी दिलाई. बाकी सभी हथियार असफल साबित हुए हैं. डॉ लोहिया ने गहराई से अध्ययन कर देश को विचार दिए. "
डॉ लोहिया असहमति की आवाज थे : रामबहादुर राय
राम बहादुर राय ने अपने संबोधन में कहा कि,"लोहिया का साहित्य बिखरा हुआ है और इसको संजोकर पंकज जी ने एक अच्छा काम किया है. डॉ लोहिया आंदोलनकारी ही नहीं थे परंतु यदि लोग आवाज उठा रहे होते थे तो लोहिया उसमें भी आवाज मिला देते थे. यह पुस्तक डॉ लोहिया को एक महापुरुष के रूप में प्रस्तुत करती है. डॉ लोहिया असहमति की आवाज थे. असहमति का स्वर लोकतंत्र में होना चाहिए और जितना प्रबल हो उतना ही अच्छा है. डॉ लोहिया एक महापुरुष हैं, थे नहीं, बल्कि हैं. जिनके विचारों का महत्व होता है, वही महापुरुष होता है. यदि कोई बड़ा समूह किसी व्यक्ति के बारे में श्रद्धा रखता है तो वह व्यक्ति महापुरुष है. डॉ लोहिया को लाखों लोग श्रद्धा से याद करते हैं. लोहिया के रास्ते पर चलकर राष्ट्र निर्माण में लंबी रेखा खींची जा सकती है. रघु ठाकुर आज इसके उदाहरण हैं. वे डॉ लोहिया के सच्चे उत्तराधिकारी हैं."
डॉक्टर लोहिया संपत्ति तथा जमीन के समान वितरण के पक्षधर थे
प्रोफेसर केएल शर्मा ने कहा कि, ''डॉ लोहिया का जीवन बहुत छोटा रहा.उनकी राजनीतिक सक्रियता 1952 से 1967 यानि 15 साल की रही. इसमें उन्होंने बहुत कुछ कह दिया तथा देश को बहुत कुछ दिया भी. जवाहरलाल नेहरू जिनको बहुत लंबा समय मिला वे लोहिया से पीछे रहे. जागरूकता लाने के लिए डॉक्टर लोहिया ने गांधी जी से सिविल नाफरमानी लिया. मानववाद पर डॉ लोहिया ने बहुत जोर दिया. डॉ लोहिया ने थोड़ा-थोड़ा सब जगह से लिया. डॉक्टर लोहिया संपत्ति तथा जमीन के समान वितरण के पक्षधर थे. गरीबी और गैर-बराबरी को मिटाने के लिए संपत्ति का वितरण समान होना चाहिए. पेट और मन दोनों का सामंजस्य ही समाजवाद है. डॉक्टर लोहिया संपत्ति के विरोधी नहीं थे परंतु संपत्ति कुछ ही लोगों के पास केंद्रित हो जाए, इसके विरोधी थे.''
कार्यक्रम के प्रारंभ में राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक माहेश्वरी ने अतिथियों का परिचय कराया. 'लोहिया के सपनों का भारत' पुस्तक के लेखक अशोक पंकज ने कहा कि ''जबकि लोहिया का साहित्य काफी विस्तृत है और कोई भी नया पाठक जो लोहिया को जानना चाहता है,उसके लिए इतनी पुस्तकें पढ़ना शुरुआत में संभव नहीं है. मेरे मन में आया कि लोहिया जी के बारे में जो भी साहित्य उपलब्ध है उसका अध्ययन कर उनके विचारों को संक्षिप्त रूप में एक पुस्तक के रूप में लिखा जाना चाहिए. समाजवादी नेता एवं विचारक रघु ठाकुर जी ने मुझे पुस्तक लिखने के लिए प्रोत्साहित किया.पुस्तक की भूमिका भी रघु ठाकुर जी ने ही लिखी है.'' अतिथियों का स्वागत मुकेश चंद्रा ने पुष्प-गुच्छ देकर किया तथा संचालन अरुण प्रताप सिंह ने किया.