एक बीमार के लिए सबसे बड़ी जरूरत दवा की होती है, लेकिन मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में टीबी की दवा नहीं मिल रही है. यह हालात सूबे के दूरदराज के इलाकों के नहीं हैं, बल्कि यह पीड़ा है राजधानी भोपाल में अस्पतालों के चक्कर काटने वाले मरीजों की. दवा नहीं मिलने से मरीज परेशान हैं और ऐसे में कुछ न कुछ इंतजाम तो करना ही है, इसलिए डॉक्टर बड़े मरीजों को बच्चों की दवा की खुराक बढ़ाकर दे रहे हैं. उस पर परेशानी की बात ये है कि टीबी के मरीजों में ज्यादातर भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित हैं.
टीबी के मरीजों को चार दवाओं की निश्चित खुराक 4FDC और 3FDC दी जाती है, आइसोनियाजिड + रिफैम्पिसिन + एथमबुटोल + पाइराज़िनामाइड (Isoniazid + Rifampicin + Ethambutol + Pyrazinamide) निश्चित खुराक कॉम्बिनेशन के रूप में. भोपाल में यह दवाएं उपलब्ध नहीं हैं, यही कारण है कि टीबी के मरीजों को पीडियाट्रिक यानी बच्चों के एफडीसी चार दिया जा रहा है.
केंद्र सरकार का देश को 2025 तक टीबी मुक्त करने का लक्ष्य है, लेकिन आंकड़ों से यह लक्ष्य दूर नजर आता है. आइए आंकड़ों के जरिए समझते हैं देश में टीबी के हालात.
मरीजों की अपनी कहानी है और अपना दर्द है. टीबी से पीड़ित नुसरत जहां कहती हैं कि वे गैस पीड़ित हैं. कुल सालों पहले ही उन्हें पता चला की उन्हें टीबी हो गई है. दवा मिल नहीं रही है, लेकिन डॉक्टर उन्हें बच्चों की दवा की खुराक बढ़ा कर दे रहे हैं.
पुष्पा राजपूत भी इसी कारण परेशान हैं. उनका कहना है कि समय पर दवाएं मिल जाए तो अच्छा रहेगा, लेकिन डॉक्टर कहते हैं कि दवाई आएगी तो दे देंगे.
आसिफ खान की पत्नी भी टीबी की मरीज हैं. आसिफ बताते हैं कि जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में इलाज चल रहा था. सर्जरी भी हुई है. छह महीने से तो दवा मिल रही थी, लेकिन पिछले 15 दिनों से नहीं. रोज कहते हैं कि दवा नहीं है और अगर दवाई नहीं है तो छह महीने पहले जो शिकायत थी वह एक बार फिर शुरू हो जाएगी. रोजाना बहुत से पेशेंट आते हैं, लेकिन यही सुनने को मिलता है कि दवाई मौजूद नहीं है. इसी तरह का मामला शाहिद खान का भी है. शाहिद की दोनों बेटियों को टीबी है. दवा नहीं मिल रही है और 10 दिनों से वो दवा की तलाश में यहां से वहां भटक रहे हैं.
मरीजों की परेशानी पर डॉक्टर अनिल जैन ने कहा कि सभी दवाई दे रहे हैं. हमारे पास आदेश आ चुका है. मरीजों को दवाएं स्थानीय स्तर पर खरीदकर उपलब्ध कराएंगे. बच्चों की दवाई देने के संबंध में भी निर्देशों का पालन किया है. उससे अलग हम कुछ भी नहीं दे रहे हैं.
इस मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढिंगरा ने कहा कि जिस तरह कोरोना की समस्या ने गैस पीड़ितों को ज्यादा परेशान किया था, उसी तरह टीबी की समस्या भी काफी है. गैस की वजह से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर हुआ है. पिछले कुछ महीनों से ऐसा माहौल है कि पूरे देश में टीबी की दवाइयां कम हुई हैं. भोपाल के डॉट सेंटर में भी दवाएं नहीं आ रही हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वे लिस्ट बनाएं और ऐसी व्यवस्था बनाए की मरीजों खासकर गैस पीड़ितों की दवा एक भी दिन न छूटे. उन्होंने कहा कि यह एक तरह का टिकिंग बॉम है क्योंकि एक टीबी का मरीज एक ही दिन में 3-4 मरीजों को प्रभावित कर सकता है.
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