पहलगाम के टैक्सी स्टैंड पर आमतौर पर जून और जुलाई के महीने में खड़े होने की जगह नहीं मिलती थी. क्योंकि इतनी भीड़ होती थी और लोग गाड़ियों के लिए इंतजार करते थे. हर सीज़न में यहां लाखों की संख्या में टूरिस्ट आते थे. लेकिन पहलगाम हमले के बाद यहां पर सबकुछ बदल गया है. पिछले चार दशकों से यहां पर गाड़ियों का काम करने वाले नज़ीर अहमद बताते है, " टैक्सी स्टैंड पर करीब 500 गाड़ियां रहती थी. पहलगाम में 1200 से ज़्यादा लोग इस पर पूरी तरह से निर्भर है. हम अमरनाथ यात्रा का इंतज़ार कर रहे हैं. हम बहुत ख़राब स्थिति में हैं".
"पहलगाम में शांतिपूर्ण रहता था"
"हमें हर दिन लाखों रुपया का नुक़सान हो रहा है. हाल ही में कैबिनेट की बैठक हुई थी. चंदनवाड़ी और आसपास के इलाकों में कम से कम पार्क वग़ैरह खोल दें. जिससे लोग आना शुरू हों. हमें बहुत दिक़्क़त हो रही है. गाड़ियों का ख़र्चा तक नहीं निकाल पा रहा है. हमें सरकार की तरफ से आश्वासन है. यहां पर पर्यटक ज़्यादा आएंगे. लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है." अहमद आगे कहते हैं, तकलीफ इस बात की है कि जब पूरे कश्मीर में आतंकवाद का माहौल होता था. तब भी पहलगाम में शांतिपूर्ण रहता था. लेकिन अब कश्मीर में शांति है और पहलगाम में आतंकवाद की गूंज.
"परिवार और बच्चों का क़त्ल कर दिया"
नजीर अहमद बताते है, "अमरनाथ यात्रा की तैयारियां हो रही है. लेकिन हमारा जो बिज़नस है वो 100 फ़ीसदी ख़त्म हो चुका है. हमारे पास कोई सहारा नहीं है और 22 तारीख़ की घटना के बाद जिसे हम हैवानियत की घटना मानते हैं, उसने तो हमारे परिवार और बच्चों का क़त्ल कर दिया है. भले ही पूरे कश्मीर में दिक्कतें हो लेकिन पहलगाम हमेशा शांतिपूर्ण इलाक़ा रहा है. लेकिन इस हादसे ने हमारी तस्वीर बदल दी है और हमें बहुत नुक़सान पहुंचाया है. हमारे बच्चों पर तो इतना असर पड़ रहा है कि हमारे लिए अब अपने बच्चों को पढ़ाना मुश्किल है. खाना खाने के लिए भी मुश्किल हो रही है, जो बचा कूचा था वो सब ख़त्म हो रहा है."
"शायद आपको एक मिनट नहीं दे पाते"
"अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू होगा. इस बार हो सकता है कि लाखों लोग आएंगे. ऐसा होने से कम से कम रोज़ी रोटी थोड़ी बेहतर होगी. ये सभी इंतज़ार कर रहे हैं कि इनकी गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हो जाए और उससे कम से कम हमें कुछ पैसे मिले. सामान्य तौर पर अगर आप यहां आते हैं तो शायद हम आपको एक मिनट नहीं दे पाते. हम किसी से बात करने का समय नहीं होता था. क्योंकि इतना काम होता था."
नजीर ने नम आंखों से कहा कि "बाज़ार ही शमशान पड़े हुए हैं. हम परेशान हैं, हमारे घर वाले परेशान है, हमारी तो रोज़ी रोटी छिन गई है. हम मानते हैं कि धर्म के नाम पर जो हुआ वो बिलकुल ग़लत हुआ है. जिसने भी किया है वो ग़लत किया है. हम तो कहते हैं कि ये शैतानियत का मतलब है और हमारे बच्चों का भी तो क़त्लेआम हुआ है इसमें.
"हमें 3000 रुपया दिन की कमाई करते थे. लेकिन अब हालात ये सोचिए कि हम EMI नहीं दे पा रहे हैं. हम तो कह रह सरकार गाड़ियां ले जाए. हमारे पास कुछ नहीं बचा है. हमारा तो सरकार से कहना है कि आप हमसे गाड़ी वापस ले लीजिए. हमने जितना भरा है बस हमें उतना ही वापस कर दो. हम अपनी गाड़ी बेचने को तैयार हैं. हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं. हमें पहले अपने बच्चों के लिए खाना चाहिए. गाड़ी की जब होगा स्थिति तब दोबारा ख़रीद लेंगे. लेकिन बिना खाए तो ज़िंदा भी नहीं रहेंगे. हमारी कमाई हज़ार रुपया महीने की नहीं है "
अमरनाथ यात्रा से उम्मीद
तीन दशकों से पहलगाम के टैक्सी असोसिएशन के अध्यक्ष ग़ुलाम नबी ने कहा कि हमने तो गाड़ियां तैयार रखी है कि कम से कम एक महीने के लिए जब अमरनाथ यात्रा चलेगी तो हमें पैसे मिलेंगे. हम यहां से लेकर लोगों को कम से कम 23 हज़ार रूपये कुछ देकर पैसे ले जा सकें. हम सरकार से ये अपील करना चाहते हैं कि दरिंदों ने जो किया वो तो नुक़सान कर दिया. अब कम से कम सरकार हमारा और नुक़सान ना करें. ये जितने पार्क है ये सब खोले जाएं कम से कम पर्यटन तो बढ़ेगा.
"हम सुबह चार बजे यहां पर आ जाते हैं. हमारा पूरा सिक्योरिटी चेक होता है. पूरी गाड़ी चैक होती है. हमें उसके बाद पर्ची दी जाती है जिसके आधार पर हम चंदनवाड़ी के लिए निकलते हैं. हर साल हमारे 1000 से पंद्रह सौ गाड़ियों का ऑर्डर आता है. उसी तरह से पांच हज़ार घोड़ों का ऑर्डर आता है और फिर उसी आधार पर यहां से यात्रियों को ले जाया जाता है. ये संख्या निर्भर करती है कि रजिस्ट्रेशन यात्रियों का कितना हुआ है. साधुपारा से चैक पोस्ट में गाड़ियां चैक होती है और उसके बाद जिसके पास टोकन होता है, उसके बाद ही वहां तक गाड़ियों को जाने की अमुमति किया जाता है."