तरुण तेजपाल केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव सुनवाई से हुए अलग, बताई ये वजह

पत्रकार तरुण तेजपाल ने बॉम्‍बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर 2013 के रेप मामले में उन्हें बरी करने के खिलाफ गोवा सरकार द्वारा दायर अपील पर ‘ इन कैमरा' में सुनवाई का अनुरोध किया था, जिसे हाईकोर्ट ने 24 नवंबर 2021 को खारिज कर दिया था.

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तरुण तेजपाल मामले में जज ने खुद को सुनवाई से किया अलग
नई दिल्ली:

सहयोगी से रेप का मामले में तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल (Tarun Tejpal) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जज जस्टिस एल नागेश्वर राव ने सुनवाई से खुद को अलग किया और कहा कि वो 2015 में इस मामले में गोवा सरकार की ओर से पेश हुए थे. मामले की सुनवाई अब अगले हफ्ते दूसरी बेंच करेगी. याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट में मामले की अपील की इन-कैमरा सुनवाई की मांग की गई है. इसमें कहा गया है कि मामले की सुनवाई ‘बंद कमरे, में हो. हाईकोर्ट के याचिका खारिज करने को चुनौती दी गई है.  जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की बेंच को सुनवाई करनी थी. 

पत्रकार तरुण तेजपाल ने बॉम्‍बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर 2013 के रेप मामले में उन्हें बरी करने के खिलाफ गोवा सरकार द्वारा दायर अपील पर ‘ इन कैमरा' में सुनवाई का अनुरोध किया था, जिसे हाईकोर्ट ने 24 नवंबर 2021 को खारिज कर दिया था . तेजपाल की दलील थी कि बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील पर पीड़िता की तरह आरोपी की भी पहचान को संरक्षित कर जरूरी है. साथ ही उन्होंने अपील के सुनवाई योग्य होने को लेकर शुरुआती आपत्ति दर्ज कराते हुए उसे खारिज करने की गुहार लगाई थी, हालांकि गोवा सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर  जनरल तुषार मेहता ने तेजपात की ‘बंद कमरे में' सुनवाई की अपील का विरोध करते हुए कहा कि देश को जानने का हक है कि लड़की (पीड़िता) के साथ क्या व्यवहार किया गया. 

21 मई 2021 को सत्र अदालत ने तहलका मैगजीन के प्रधान संपादक तरुण तेजपात को रेप के मामले में बरी कर दिया था. उन पर आरोप था कि उन्होंने नवंबर 2013 में गोवा में आयोजित कार्यक्रम के दौरान पंच सितारा होटल के लिफ्ट में अपनी सहकर्मी पर यौन हमला किया. इस फैसले के खिलाफ गोवा सरकार ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की है. तेजपाल के वकील अमित देसाई ने  बॉम्‍बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ में न्यायमूर्ति एम एस सोनक और न्यायमूर्ति एम एस जावलकर की खंडपीठ से मामले की सुनवाई ‘बंद कमरे' में करने की अपील की थी जैसा कि इस मामले में निचली अदालत में सुनवाई हुई थी. देसाई ने कहा था कि मामले और आरोपों की संवेदनशीलता को देखते हुए सुनवाई ‘बंद कमरे' में होनी चाहिए. 

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उन्होंने इसके लिए पीठ के समक्ष औपचारिक आवेदन कर विचार करने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की अपील ‘त्रुटिपूर्ण' और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 378 (बरी के मामले में अपील) के ‘अनुरूप' नहीं है., लेकिन तुषार मेहता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि देश को जानने का हक है कि शिकायत, विशेष आरोप, और आरोपों को पुष्ट करने वाले सबूत को लेकर अदालत आने वाली लड़की से इस संस्था ने कैसा व्यवहार किया है.

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