विधेयक मंजूर करने में राज्यपालों की देरी पर तमिलनाडु और केरल की याचिकाओं पर SC में सोमवार को सुनवाई

याचिका में कहा गया है कि विधेयकों को लंबे और अनिश्चितकाल तक लंबित रखने का राज्यपाल का व्यवहार स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. 

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सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल से सहायता मांगी थी. (फाइल)
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  • केरल-तमिलनाडु ने विधेयक मंजूरी में राज्यपालों द्वारा देरी का आरोप लगाया
  • राज्यपाल के व्यवहार को मनमाना, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया
  • SC ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल से सहायता मांगी थी
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नई दिल्ली :

तमिलनाडु और केरल सरकार (Tamil Nadu and Kerala Government) की दो अलग-अलग याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सोमवार को सुनवाई करेगा जिनमें विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपालों द्वारा देरी किए जाने का आरोप लगाया गया है. याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ द्वारा सुनवाई की जाएगी. राज्यपाल आर एन रवि द्वारा विधेयकों को लौटाए जाने के कुछ दिन बाद तमिलनाडु विधानसभा ने शनिवार को एक विशेष बैठक में 10 विधेयकों को फिर से पारित किया. 

रवि द्वारा लौटाए जाने के बाद कानून, कृषि और उच्च शिक्षा सहित विभिन्न विभागों वाले विधेयक फिर से पारित किए गए. पुन: पारित विधेयकों को मंजूरी के लिए फिर से राज्यपाल को भेज दिया गया. 

शीर्ष अदालत ने गत 10 नवंबर को विधेयकों को मंजूरी देने में तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा कथित देरी किए जाने को 'गंभीर चिंता का विषय' बताते हुए राजभवन पर '12 विधेयकों को रोककर रखने' का आरोप लगाने वाली राज्य सरकार की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था. 

शीर्ष अदालत ने केंद्र को नोटिस जारी करते हुए मामले में अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल से सहायता मांगी थी. 

न्यायालय ने कहा था, ‘‘रिट याचिका में जो मुद्दे उठाए गए हैं, वे गंभीर चिंता का विषय हैं. इस अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए गए तालिकाबद्ध बयानों से, ऐसा प्रतीत होता है कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को भेजे गए लगभग 12 विधेयकों पर आगे की कार्रवाई नहीं की गई है.''

इसने कहा था, 'अन्य मामले, जैसे अभियोजन के लिए मंजूरी देने के प्रस्ताव, कैदियों की समय से पहले रिहाई के प्रस्ताव और लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के प्रस्ताव लंबित हैं.''

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा था, ‘‘स्थिति को ध्यान में रखते हुए, हम दूसरे प्रतिवादी, अर्थात्, भारत संघ को नोटिस जारी करते हैं जिसका प्रतिनिधित्व गृह मंत्रालय में सरकार के सचिव द्वारा किया जाता है. हम अनुरोध करते हैं कि भारत के अटॉर्नी जनरल या उनकी अनुपस्थिति में, भारत के सॉलिसिटर जनरल अदालत की सहायता करेंगे.'

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इसने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 200 में यह प्रावधान किया गया है कि जब कोई विधेयक किसी राज्य की विधानसभा द्वारा या जहां राज्य में द्विसदन विधायिका है, दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाता है, तो इसे राज्यपाल को प्रस्तुत किया जाएगा, जो (1) विधेयक पर सहमति की घोषणा करेंगे या (2) उस पर सहमति रोक दें या (3) विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर दें. 

तमिलनाडु सरकार ने शीर्ष अदालत से हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हुए आरोप लगाया, ‘‘एक संवैधानिक प्राधिकार लगातार असंवैधानिक तरीके से काम कर रहा है और बाहरी कारणों के चलते राज्य सरकार के कामकाज में बाधा डाल रहा है.''

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राज्य सरकार ने कहा, ‘‘तमिलनाडु के राज्यपाल/प्रथम प्रतिवादी द्वारा तमिलनाडु राज्य विधानमंडल द्वारा पारित एवं अग्रेषित विधेयकों पर विचार करने और मंजूरी देने के संवैधानिक कर्तव्य का पालन करने में निष्क्रियता, चूक, देरी और विफलता तथा राज्य सरकार द्वारा उनके हस्ताक्षर के लिए भेजी गई फाइल, सरकारी आदेशों व नीतियों पर विचार न करना असंवैधानिक, अवैध, मनमाना और अनुचित होने के साथ ही सत्ता का दुर्भावनापूर्ण इस्तेमाल भी है.”

इसने कहा कि राज्यपाल, ‘‘छूट आदेशों, दिन-प्रतिदिन की फाइल, नियुक्ति आदेशों पर हस्ताक्षर नहीं करके, भर्ती आदेशों को मंजूरी न देकर, भ्रष्टाचार में शामिल मंत्रियों, विधायकों पर मुकदमा चलाने की स्वीकृति न देकर, जिसमें शीर्ष अदालत द्वारा जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करना शामिल है और तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को मंजूरी न देकर पूरे प्रशासन को ठप कर रहे हैं. वह राज्य प्रशासन के साथ सहयोग न करके प्रतिकूल रवैया अपना रहे हैं.”

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इसी तरह, केरल सरकार ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पर राज्य विधानसभा में पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने का आरोप लगाते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है और दावा किया कि इससे ‘‘जनता के अधिकारों का हनन हुआ'' है. 

केरल सरकार ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित आठ विधेयकों के संबंध में राज्य के राज्यपाल की ओर से कार्रवाई नहीं किए जाने का दावा किया है और कहा कि इनमें से कई विधेयक व्यापक जनहित से संबंधित हैं तथा इसमें कल्याणकारी उपायों को शामिल किया गया है जिनकी मंजूरी में देरी से राज्य की जनता इनसे मिलने वाले लाभों से वंचित है. 

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इसने कहा कि केरल राज्य लोगों के प्रति अपने कर्तव्य के निर्वहन को पूरा करने के उद्देश्य से राज्य विधानसभा द्वारा पारित आठ विधेयकों के संबंध में राज्यपाल की निष्क्रियता के संबंध में माननीय न्यायालय द्वारा उचित आदेश दिया जाना चाहिए. केरल सरकार की ओर से याचिका में कहा गया, ‘‘इनमें तीन विधेयक दो साल से अधिक समय से राज्यपाल के पास लंबित हैं और तीन अन्य तकरीबन एक साल से अधिक समय से लंबित हैं. इन विधेयकों के माध्यम से जनता के लिए लागू की जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं के संबंध में वर्तमान में राज्यपाल का जिस तरह का आचरण प्रदर्शित हो रहा है उससे राज्य के लोगों के अधिकारों के हनन के अलावा, कानून के शासन और लोकतांत्रिक सुशासन सहित हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों और मूलभूत ढांचों के नष्ट होने का खतरा है.''

याचिका में कहा गया है कि विधेयकों को लंबे और अनिश्चितकाल तक लंबित रखने का राज्यपाल का व्यवहार स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. 

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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