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पुणे बीपीओ गैंगरेप केस में आया सु्प्रीम कोर्ट का फैसला, बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले पर लगी मुहर

अपील में जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.

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पुणे बीपीओ गैंगरेप केस में बड़ा फैसला
नई दिल्ली:

2007 पुणे बीपीओ गैंगरेप और हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया है. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दो दोषियों की मौत की सजा उम्रकैद में बदल दी है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने दया याचिका पर फैसले में देरी के चलते मौत की सजा को रद्द कर इसे उम्रकैद में बदल दिया था. जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट की भी मुहर लग गई है. अपील में जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.

क्या है मामला

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली पीड़िता पुणे के हिंजवड़ी  बीपीओ में काम करती थी. 1 नवंबर 2007 की नाइट शिफ्ट के लिए कंपनी की कैब से जा रही थी. उस समय कार पुरुषोत्तम बोराटे चला रहा था जबकि उसका दोस्त प्रदीप कोकाटे भी उसके साथ मौजूद था. पुरुषोत्तम ने कार कंपनी की ओर ले जाने की जगह पुणे- मुंबई एक्सप्रेस वे के पास एक गांव के पास ले गया. वहां पर सुनसान जगह पर दोनों ने लड़की का बलात्कार किया और पहचान छिपाने के लिए उसका सिर पत्थर से कुचलकर फरार हो गए थे.

फांसी की सजा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने किया रद्द

फैसला सुरक्षित रखते हुए कोर्ट ने दोषियों की मौत की सजा के निष्पादन में न्यायिक देरी और राज्य द्वारा की गई देरी पर गौर किया था. 2019 में बीपीओ में काम करनेवाली 22 वर्षीय महिला के बलात्कार और हत्या के दो दोषियों को मिली फांसी की सजा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था. दया याचिका पर फैसले में देरी के चलते दोनों ने फांसी की सजा रद्द करने की मांग की थी. जिसपर सुनवाई के बाद अदालत ने इसे उम्रकैद में बदल दिया.

इनमें से एक आरोपी कैब ड्राइवर था  वहीं दूसरा उसका दोस्त था. साल 2007 में विप्रो कंपनी के बीपीओ में काम करने वाली पीड़िता की पुरुषोत्तम बोराटे और प्रदीप कोकाटे नाम के शख्स ने बलात्कार के बाद हत्या कर दी थी. वारदात के कुछ दिन बाद ही पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया था. दोनों को पुणे की सेशन कोर्ट ने मार्च 2012 में फांसी की सजा सुनाई थी. वहीं, हाईकोर्ट ने भी सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था. जिसके बाद दोनों सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.

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उम्रकैद में बदली फांसी की सजा

सुप्रीम कोर्ट ने भी दोनों को राहत नहीं दी और साल 2015 में फांसी को बरकरार रखा. इसके बाद से दोनों पुणे की यरवदा जेल में बंद हैं और दोनों की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है. हालांकि, कई साल बीत जाने के बाद इसी साल जून महीने में दोनों ने कई साल से जेल में बंद होने का हवाला देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में अपनी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की गुहार लगाते हुए याचिका दायर की थी. जिसपर यह फैसला आया था.

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