उच्चतम न्यायालय ने प्रेसिडेंशियल रफेरेंस पर फैसला सुनाते हुए कहा गवर्नर द्वारा बिलों को मंज़ूरी देने के लिए टाइमलाइन तय नहीं की जा सकती. "डीम्ड असेंट" का सिद्धांत संविधान की भावना और शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ है. कोर्ट ने कहा चुनी हुई सरकार कैबिनेट को ड्राइवर की सीट पर होना चाहिए, ड्राइवर की सीट पर दो लोग नहीं हो सकते लेकिन गवर्नर का कोई सिर्फ़ औपचारिक रोल नहीं होता. गवर्नर, प्रेसिडेंट का खास रोल और असर होता है. गवर्नर के पास बिल रोकने और प्रोसेस को रोकने का कोई अधिकार नहीं है. वह मंज़ूरी दे सकता है, बिल को असेंबली में वापस भेज सकता है या प्रेसिडेंट को भेज सकता है.
बता दें प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर की संविधान पीठ ने 10 दिनों तक दलीलें सुनने के बाद 11 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
एक उचित समय के अंदर काम करना होगा: SC
SC ने राय देते हुए कहा, गवर्नर और प्रेसिडेंट बिल को मंज़ूरी देने के लिए टाइमलाइन तय नहीं कर सकते. हालांकि गवर्नर बिल को हमेशा के लिए रोककर नहीं रख सकते; उन्हें एक उचित समय के अंदर काम करना होगा. - अगर गवर्नर बिल को मंज़ूरी नहीं दे रहे हैं, तो उसे ज़रूरी तौर पर विधानमंडल को वापस भेजना होगा. SC का यह भी कहना है कि "मानी गई मंज़ूरी" का कॉन्सेप्ट संविधान की भावना और शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ है.
गवर्नर द्वारा बिलों को मंजूरी देने के लिए टाइमलाइन तय नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने कहा चुनी हुई सरकार कैबिनेट को ड्राइवर की सीट पर होना चाहिए, ड्राइवर की सीट पर दो लोग नहीं हो सकते लेकिन गवर्नर का कोई सिर्फ़ औपचारिक रोल नहीं होता. गवर्नर, प्रेसिडेंट का खास रोल और असर होता है. गवर्नर के पास बिल रोकने और प्रोसेस को रोकने का कोई अधिकार नहीं है. वह मंज़ूरी दे सकता है, बिल को असेंबली में वापस भेज सकता है या प्रेसिडेंट को भेज सकता है.
यह संघवाद की भावना के खिलाफ होगा.... उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना रोक कर रखते हैं तो यह संघवाद की भावना के खिलाफ होगा.
गवर्नर द्वारा बिलों को मंज़ूरी देने के लिए टाइमलाइन तय नहीं की जा सकती: SC
गवर्नर द्वारा बिलों को मंज़ूरी देने के लिए टाइमलाइन तय नहीं की जा सकती . "डीम्ड असेंट" का सिद्धांत संविधान की भावना और शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ है.
गवर्नर बिल को हमेशा के लिए रोककर नहीं रख सकते - SC
सुनवाई के दौरान SC ने संघवाद के सिद्धांत पर ज़ोर दिया और कहा गवर्नर बिल को हमेशा के लिए रोककर नहीं रख सकते. अगर गवर्नर बिल पर मंज़ूरी नहीं दे रहे हैं, तो उसे ज़रूरी तौर पर विधानमंडल को वापस भेजना होगा. भारत के सहयोगी संघवाद में, गवर्नर को बिल पर हाउस के साथ मतभेद दूर करने के लिए बातचीत का तरीका अपनाना चाहिए, न कि रुकावट डालने वाला तरीका अपनाना चाहिए.
राज्यपाल राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित बिलों पर अनिश्चित काल तक सहमति नहीं रोक सकते- SC
SC ने कहा, राज्यपाल राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित बिलों पर अनिश्चित काल तक सहमति नहीं रोक सकते. भारत के सहकारी संघवाद में, राज्यपालों को किसी बिल पर सदन के साथ मतभेदों को दूर करने के लिए बातचीत का तरीका अपनाना चाहिए, न कि रुकावट डालने वाला तरीका अपनाना चाहिए.
जानें सुनवाई के दौरान CJI ने क्या कहा
सुनवाई के दौरान CJI ने कहा, पहला मुद्दा यह है कि हम गवर्नर के साथ ऑप्शन पर विचार कर रहे हैं- सबमिशन यह है कि टेक्स्ट साफ है, पेश होने पर, गवर्नर बिल को मंज़ूरी दे सकते हैं या इसलिए रोक सकते हैं, या प्रेसिडेंट के लिए रिज़र्व कर सकते हैं.
राष्ट्रपति के संदर्भ पर राय सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पीठ बैठी
राष्ट्रपति के संदर्भ पर राय सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पीठ बैठ चुकी और पांच जजों की संविधान पीठ फैसला सुना रही है.
11 सितंबर को फैसला रखा था सुरक्षित
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी.आर. गवई की अगुवाई वाली कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने 11 सितंबर को केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ-साथ तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे विपक्ष शासित राज्यों की ओर से 10 दिनों तक मौखिक दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिन्होंने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस का विरोध किया था.
केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए थे
इस साल जुलाई में, पांच जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी.एस. नरसिम्हा और अतुल एस. चंदुरकर भी थे, ने “इन री: एसेंट, विदहोल्डिंग ऑर रिज़र्वेशन ऑफ़ बिल्स बाय द गवर्नर एंड द प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया” टाइटल वाले मामले में केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए थे और यूनियन ऑफ़ इंडिया के सबसे बड़े लॉ ऑफिसर एजी वेंकटरमणी से मदद मांगी थी.
केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए थे
इस साल जुलाई में, पांच जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी.एस. नरसिम्हा और अतुल एस. चंदुरकर भी थे, ने “इन री: एसेंट, विदहोल्डिंग ऑर रिज़र्वेशन ऑफ़ बिल्स बाय द गवर्नर एंड द प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया” टाइटल वाले मामले में केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए थे और यूनियन ऑफ़ इंडिया के सबसे बड़े लॉ ऑफिसर एजी वेंकटरमणी से मदद मांगी थी.
पांच सदस्यीय संविधान पीठ करेगी सुनवाई
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ करेगी। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा और एएस चंदुरकर भी शामिल हैं. यह मामला इसलिए अहम है क्योंकि यह राज्यपालों की ओर से विधेयकों पर निर्णय लेने में हो रही देरी पर स्पष्ट दिशा-निर्देश तय कर सकता है, जिससे केंद्र और राज्य के बीच टकराव के मुद्दों पर न्यायिक मार्गदर्शन मिल सकेगा.
राष्ट्रपति ने इन 14 सवालों पर SC की राय मांगी
ये फैसला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के उन 14 सवालों के जवाब में आएगा, जो उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से पूछे हैं. इसकी जरूरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु सरकार के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा था कि गवर्नर राज्य के बिलों पर फैसला करने में देरी नहीं कर सकते. गवर्नर को विधेयक पर तीन महीने में निर्णय लेना होगा चाहे वो उसे रोकने का फैसला करें, पास करने का या फिर राष्ट्रपति के पास भेजने का.














