मराठा समुदाय को आरक्षण (Maratha quota) की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) बुधवार, 5 मई को फैसला सुनाएगा. पांच जजों की संविधान पीठ यह फैसला सुनाएगी. गौरतलब है कि 26 मार्च को मराठा आरक्षण के खिलाफ दाखिल याचिका पर 10 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह इस बात का परीक्षण करेगा कि राज्य 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण कर सकते हैं या नहीं, 1992 में दिए गए इंदिरा साहनी फैसले को दोबारा देखने की जरूरत है या नहीं और इंदिरा साहनी जजमेंट को बड़ी बेंच में भेजने जाने की जरूरत है या नहीं?
कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण देना जारी रखेंगे, सुप्रीम कोर्ट ने किया सवाल
इंदिरा साहनी जजमेंट में आरक्षण के लिए 50 फीसदी की सीमा तय की गई है. 9 दिसंबर को महाराष्ट्र में नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाए जाने के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बदलाव से मना कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा को 12 फीसदी से लेकर 13 फीसदी तक रिजर्वेशन देने की बात की थी. जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने मामले में सुनवाई की और फिर फैसला सुरक्षित रख लिया.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान तमाम राज्यों से जवाब दाखिल करने को कहा कि क्या विधायिका इस बात को लेकर सक्षम है कि वह आरक्षण देने के लिए किसी जाति विशेष को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित कर सके. सुप्रीम कोर्ट 102 संशोधन के व्याख्या के सवाल को भी देखेगा जिसमें विशेष समुदाय को आरक्षण देने का प्रावधान है और उसका नाम राष्ट्रपति द्वारा बनाई गए लिस्ट में होता है.सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि 102 वां संविधान संशोधन संवैधानिक है. सॉलिसिटर जनरल ने भी अटॉर्नी की दलील के साथ जाने की बात कही, वहीं सुनवाई के दौरान सिद्धार्थ भटनागर ने कहा कि इंदिरा साहनी जजमेंट में 9 जजों में से 8 ने कहा था कि रिजर्वेशन की लिमिट 50 फीसदी होगी और ये बाध्यकारी है.