क्या हिंदू उत्तराधिकार कानून के प्रावधान लैंगिक भेदभाव करते हैं ? क्या ये कानून महिलाओं से भेदभाव करता है ? सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है. मामले में SC चार हफ्ते बाद अगली सुनवाई करेगा. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में हिंदू उत्तराधिकार कानून के प्रावधान को चुनौती दी गई है याचिका में प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसमें विवाहित महिला की मृत्यू होने पर उसकी संपत्ति विरासत के तौर पर उसके पति के पक्ष को देने का प्रावधान किया गया है. यानी महिला के अपने माता- पिता के परिवार से पहले महिलाओं के लिए लैंगिक न्याय और गरिमा को सुरक्षित करने की दलील दी गई है.
याचिका में कहा गया है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धाराएं "असंवैधानिक" हैं और लैंगिक समानता का उल्लंघन करती हैं.कोर्ट को हिंदू महिलाओं की ओर से हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि जहां समाज लैंगिक समानता की ओर बढ़ रहा है, वहीं हिंदू उत्तराधिकार कानून लिंग के आधार पर भेदभाव करता है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है.
याचिका में कहा गया है कि ये याचिका हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों में "गहरी जड़ वाली पितृसत्तात्मक विचारधारा का खुलासा करती है. इस तरह के मुद्दों को सामने रखती है कि मृत महिला के पति का परिवार उसके माता-पिता से भी पहले विरासत की पंक्ति में आता है. ये प्रावधान बड़े पैमाने पर पुरुष वंश के भीतर संपत्ति को बनाए रखने का प्रबंधन करते हैं. यह अप्रासंगिक है कि इस प्रथा को पर्सनल लॉ या धर्म के आधार पर स्थापित किया गया था या इसे संहिताबद्ध किया गया है या नहीं. यदि यह लैंगिक समानता का उल्लंघन करता है, तो इसे चुनौती दी जा सकती है.
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