रोड रेज मामले में नवजोत सिद्धू की सजा बढ़ाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट कल सुनाएगा फैसला

नवजोत सिद्धू का वर्ष 1988 में पटियाला में पार्किंग को लेकर झगड़ा हुआ था जिसमें एक बुजुर्ग की मौत हो गई थी.

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रोड रेज मामले में नवजोत सिद्धू की सजा बढ़ाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट कल सुनाएगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को तय करेगा, नवजोत सिद्धू की सजा बढ़ाई जाए या नहीं
नई दिल्‍ली:

रोडरेज मामले में नवजोत सिंह सिद्धू  (Navjot Sidhu)की सजा बढ़ाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)कल फैसला सुनाएगा. सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को तय करेगा कि सिद्धू की सजा बढ़ाई जाए या नहीं? पीड़ित परिवार की ओर से इस मामले में पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी. बता दें, नवजोत सिद्धू का वर्ष 1988 में पटियाला में पार्किंग को लेकर झगड़ा हुआ था जिसमें एक बुजुर्ग की मौत हो गई थी. इस मामले में पहले सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को 1 हजार का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया था. इसके खिलाफ पीड़ित पक्ष ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी. 

सिद्धू के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह 34 साल पुराना मामला है. इस मामले में दोषसिद्धि पर रोक सुप्रीम कोर्ट ने ही लगाई थी, उसका विस्तृत आदेश भी दिया गया था. गौरतलब है कि इसी वर्ष मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने 33 साल पुराने रोड रेज केस में सिद्धू की सजा बढ़ाने की पी‍ड़‍ित परिवार की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा था. SC ने  सभी पक्षों की दलीलें सुनने को बाद फैसला सुरक्षित रखा था.पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू की मुश्किलें उस समय बढ़ गईं थीं जब SC ने साधारण चोट की बजाए गंभीर अपराध की सजा देने की याचिका पर सिद्धू को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.  दरअसल, पीड़ित परिवार ने याचिका दाखिल कर रोड रेज केस में साधारण चोट नहीं, बल्कि गंभीर अपराध के तहत सजा बढ़ाने की मांग की है. 

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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान विशेष पीठ में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल के सामने पीड़ित परिवार यानी याचिकाकर्ता की ओर से सिद्धार्थ लूथरा ने कई पुराने  मामलों में आए फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सड़क पर हुई हत्या और उसकी वजह पर कोई विवाद नहीं है. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से भी साफ है की हत्या की हमले की वजह से आई चोट थी, हार्ट अटैक नहीं. लिहाजा दोषी को दी गई सजा को और बढ़ाया जाए. दूसरी ओर, सिद्धू की ओर से पी. चिदंबरम ने याचिकाकर्ता की दलीलों का विरोध करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता ने मामले को अलग दिशा दी है. ये मामला तो आईपीसी की धारा 323 के तहत आता है. घटना 1998 की है. कोर्ट इसमें दोषी को मामूली चोट पहुंचाने के जुर्म में एक साल की सजा सुना चुका है.  जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि पिछले फैसले जो उद्धृत किए गए हैं उनके मुताबिक भी ये सिर्फ मामूली चोट का मामला नहीं बल्कि एक खास श्रेणी में आता है. अब आपको उन दलीलों के साथ बचाव करना है. पूरे फैसले के बजाय आपको सजा की इन्हीं दलीलों पर अपना जवाब रखना हैं. मौजूदा स्थिति में हम सिर्फ इसी पर सुनवाई को फोकस रखना चाहते हैं. हम पेंडोरा बॉक्स नहीं खोलना चाहते. चिदंबरम ने कहा कि इसका मतलब मामले के फैसले को फिर से खोलना होगा.

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इससे पहले सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया जिसमें उन्‍होंने अपने खिलाफ पुनर्विचार याचिका को खारिज करने की मांग की. सिद्धू ने अनुरोध किया है कि उनको जेल की सजा ना दी जाए. फैसले पर पुनर्विचार के लिए कोई वैध आधार नहीं है. कोई हथियार बरामद नहीं हुआ, कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी. घटना को 3 दशक से अधिक समय बीत चुका है. पिछले 3 दशकों में उनका बेदाग राजनीतिक और खेल करियर रहा है. वे कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं, उनको आगे  सजा नहीं मिलनी चाहिए. अदालत ने 1000 रुपये जुर्माने की जो सजा दी थी, वही इसके लिए काफी है. 

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