- सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधिकारों पर अहम निर्णय देगी
- पीठ तय करेगी कि क्या गवर्नर और प्रेसिडेंट के फैसलों पर समयसीमा और न्यायिक समीक्षा लगाना संभव है
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 संवैधानिक सवालों पर राय मांगी थी
राष्ट्रपति और राज्यपालों के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ गुरुवार को अहम फैसला सुना सकती है. पीठ यह तय करेगी कि क्या अदालत राज्यपाल और राष्ट्रपति के ऊपर यह समयसीमा लगा सकती है कि वह राज्य के विधेयकों पर कितने समय के अंदर निर्णय लें. चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ यह भी फैसला देगी कि क्या राज्यपाल की विधेयक संबंधी शक्तियां न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं या नहीं.
ये फैसला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के उन 14 सवालों के जवाब में आएगा, जो उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से पूछे हैं. इसकी जरूरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु सरकार के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा था कि गवर्नर राज्य के बिलों पर फैसला करने में देरी नहीं कर सकते. गवर्नर को विधेयक पर तीन महीने में निर्णय लेना होगा चाहे वो उसे रोकने का फैसला करें, पास करने का या फिर राष्ट्रपति के पास भेजने का.
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राष्ट्रपति ने इन 14 सवालों पर SC की राय मांगी
- जब राज्यपाल के सामने संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत कोई विधेयक पेश किया जाता है तो उनके सामने संवैधानिक विकल्प क्या हैं?
- क्या राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को पेश किए जाने पर अपने पास उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय कैबिनेट द्वारा दी गई सहायता और सलाह से बाध्य हैं?
- क्या राज्यपाल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है?
- क्या अनुच्छेद 361 संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है?
- संवैधानिक रूप से निर्धारित समयसीमा और राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में, क्या राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत सभी शक्तियों के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के जरिए समयसीमाएं लगाई जा सकती हैं और प्रयोग के तरीके को निर्धारित किया जा सकता है?
- क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है?
- संवैधानिक रूप से तय समयसीमा और राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में, क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा विवेक के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के जरिए समयसीमाएं लगाई जा सकती हैं और प्रयोग के तरीके को तय किया जा सकता है?
- राष्ट्रपति की शक्तियों को नियंत्रित करने वाली संवैधानिक योजना की रोशनी में, क्या राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत संदर्भ के जरिए सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेने और राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की सहमति के लिए विधेयक को सुरक्षित रखने या अन्यथा सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने की आवश्यकता है?
- क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय, कानून के लागू होने से पहले के चरण में न्यायोचित हैं? क्या न्यायालयों के लिए किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी विषय-वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेना स्वीकार्य है?
- क्या संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग और राष्ट्रपति या राज्यपाल के आदेशों को संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत किसी भी तरह से प्रतिस्थापित किया जा सकता है?
- क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल की सहमति के बिना लागू कानून माना जा सकता है?
- संविधान के अनुच्छेद 145(3) के मद्देनजर, क्या सुप्रीम कोर्ट की किसी भी पीठ के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह पहले यह तय करे कि उसके सामने कार्यवाही में शामिल प्रश्न ऐसी प्रकृति का है जिसमें संविधान की व्याख्या के रूप में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं और इसे कम से कम 5 जजों की पीठ द्वारा सुना जाए?
- क्या संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां प्रक्रियात्मक कानून के मामलों तक सीमित हैं या अनुच्छेद 142 ऐसे निर्देश जारी करने या आदेश पारित करने तक विस्तारित है जो संविधान या लागू कानून के मौजूदा मूल या प्रक्रियात्मक प्रावधानों के विपरीत या असंगत हैं?
- क्या संविधान अनुच्छेद 131 के तहत मुकदमे के माध्यम से छोड़कर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी अन्य अधिकार क्षेत्र को रोकता है?
सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि अगर कोई विधेयक लंबे समय तक राज्यपाल के पास लंबित है तो उसे 'मंजूरी प्राप्त' माना जाना चाहिए. राष्ट्रपति ने इस पर आपत्ति जताते हुए पूछा कि जब देश का संविधान राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर फैसले लेने का विवेकाधिकार देता है, तो सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया में दखल कैसे दे सकता है?













