सैन्य प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांग हुए कैडेटों की समस्या का सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है. इस मामले में आने वाले सोमवार को सुनवाई होगी. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ इस मामले में सुनवाई करेगी. यह कदम 12 अगस्त को एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट के बाद उठाया गया है, जिसमें राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और भारतीय सैन्य अकादमी जैसे प्रमुख संस्थानों में दिव्यांगता के बाद सेवा से छुट्टी पाए कैडेटों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला गया है.
ये कैडेट कमीशनिंग से पहले ही घायल हो गए थे, इसलिए इन कैडेटों को दिव्यांगता पेंशन या पूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना के तहत इलाज जैसे पूर्व सैनिक लाभ नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे उन्हें संस्थागत सहायता के बिना बढ़ते चिकित्सा खर्च का सामना करना पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर जवाब मांगा कि क्या उनके लिए कोई बीमा योजना हो सकती है और प्रशिक्षण के दौरान घायल हुए कैडेटों के पुनर्वास के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं.
कोर्ट ने कहा कि आप देखें कि क्या कैडेट वापस आकर सेना का हिस्सा बन सकते हैं (डेस्क जॉब या ऑफिस जॉब) में, लेकिन अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भट्टी ने शीर्ष अदालत को बताया कि इस पर एक प्रस्ताव की आवश्यकता होगी, क्योंकि सेना में लड़ाकों को भी डेस्क जॉब दी जाती है. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सेना में डेस्क जॉब नहीं तो उन्हें कोई ऑफिस जॉब दी जानी चाहिए. यह सामाजिक न्याय का कानून है. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें सुविधाएं और पुनर्वास मिले. हम भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ, चीफ ऑफ एयरफोर्स स्टाफ और सामाजिक न्याय मंत्रालय को नोटिस जारी करते हैं.