शराब पर निर्भरता के कारण अनुशासनात्मक आधार पर सेवा से मुक्त किए एक सैनिक नागेंद्र सिंह के लिए सुप्रीम कोर्ट आगे आया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सैनिक को देय दिव्यांगता पेंशन में हस्तक्षेप नहीं करने का सुझाव दिया है. अदालत ने सरकार से कहा कि करगिल युद्ध में शामिल इस जवान के प्रति बड़ा दिल दिखाया जाना चाहिए. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने ये सुझाव दिया है.
इस तथ्य पर गौर करते हुए कि सैनिक सशस्त्र बल ट्राइब्यूनल द्वारा पेंशन दी गई थी, ऐसे में इसमें हस्तक्षेप करना न्याय के हित में नहीं होगा. पीठ ने केंद्र सरकार से 'न्याय के मानवीय पक्ष' को देखने का आग्रह किया. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें न्याय के मानवीय पक्ष को देखना होगा. यह एक ऐसा शख्स है जिसने आगे बढ़कर सेना में सेवा की है. हम (जज) भी इंसान हैं, जब हम ताबूतों को उठाते हुए देखते हैं तो हम पर भी उसका असर होता है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार की ओर से ASG माधवी दीवान से कहा, उन्होंने कारगिल में सेवा की, उन्हें पेंशन दी गई, उनका एक परिवार है, कभी-कभी आपको न्याय के मानवीय पक्ष को देखना पड़ता है. इस आदमी के लिए एक अपवाद बनाएं.
ASG दीवान ने तर्क दिया था कि सशस्त्र बलों से उसकी बर्खास्तगी अनुशासनात्मक आधार पर थी. शराब पर निर्भरता दिव्यांगता की श्रेणी में नहीं आ सकती, खासकर सशस्त्र बलों में.. चूंकि बर्खास्तगी अनुशासनात्मक आधार पर थी, इसलिए सैनिक दिव्यांगता पेंशन का हकदार नहीं है.
यह देखते हुए कि इस स्तर पर कोई भी हस्तक्षेप सैनिक के परिवार के सदस्यों के लिए हानिकारक होगा. पीठ ने संकेत दिया कि वह सशस्त्र बल ट्राइब्यूनल के आदेश को उलटने का इच्छुक नहीं है. ट्रिब्यूनल ने सैनिक को दिव्यांगता पेंशन दी थी, जिसे केंद्र सरकार ने चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने ASG को केंद्र सरकार के निर्देश प्राप्त करने का अवसर प्रदान करते हुए मामले को टाल दिया.