SC का बड़ा फैसला, 'दुर्घटना मामलों में दामाद की मौत पर मुआवजे की मांग कर सकती है उस पर निर्भर सास'

सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के इस विचार से असहमति जताई कि सास कानूनी प्रतिनिधि नहीं हो सकती.

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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस विचार से असहमति जताई कि सास कानूनी प्रतिनिधि नहीं हो सकती
नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट  (Supreme Court)  ने बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि दुर्घटना के मामलों में सास (Mother In Law) मुआवजे की मांग कर सकती है. SC ने  माना है कि सास, दामाद की कानूनी उत्तराधिकारी नहीं हो सकती लेकिन मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे (Motor Accident Claim)का दावा करने के लिए उसे उसके कानूनी प्रतिनिधि के रूप में माना जा सकता है.जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने ये फैसला देते हुए कहा कि भारतीय समाज में सास का बुढ़ापे में अपनी बेटी और दामाद के साथ रहना और अपने भरण-पोषण के लिए अपने दामाद पर निर्भर रहना असामान्य नहीं है. वह कानूनी उत्तराधिकारी नहीं हो सकती लेकिन दामाद की मृत्यु होने पर वह निश्चित रूप से प्रभावित पक्ष है.ऐसी स्थिति में हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि वह मोटर वाहन अधिनियम की धारा-166 के तहत एक 'कानूनी प्रतिनिधि'है और दावा याचिका दायर करने की हकदार है.

अदालत ने केरल हाईकोर्ट के इस विचार से असहमति जताई कि सास कानूनी प्रतिनिधि नहीं हो सकती. मामला 20 जून, 2011 को एक सड़क दुर्घटना में गणित के प्रोफेसर एन वेणुगोपालन नायर की मौत पर मोटर दुर्घटना ट्राइब्यूनल द्वारा मुआवजा देने से संबंधित है. 52 वर्षीय मृतक अपनी पत्नी, दो बेटियों और सास के साथ रहता था. हाईकोर्ट ने मृतक परिवार को दिए जाने वाले मुआवजे को कम कर दिया.

केरल HC ने कहा था कि ट्रिब्यूनल को निर्भरता मुआवजे का आकलन सही तरीके से नहीं किया है लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील की स्वीकार करते हुए बीमा कंपनी से पीड़ित परिवार को 85.81 लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री स्पष्ट रूप से स्थापित करती है कि सास, मृतक और उसके परिवार के सदस्यों के साथ रह रही थी. वह अपने आश्रय और रखरखाव के लिए दामाद पर निर्भर थी.

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