उम्रकैद के दोषियों की समय पूर्व रिहाई की नीति पर UP सरकार फिर से करे विचार : सुप्रीम कोर्ट

अदालत माता प्रसाद द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार कर रही है. याचिका में कहा गया था कि 26 जनवरी, 2020 को उसके अनुरोध को मंज़ूरी मिलने के बावजूद उसे जेल से रिहा नहीं किया गया है.

विज्ञापन
Read Time: 8 mins
उम्रकैद के दोषियों की समय पूर्व रिहाई की नीति पर UP सरकार फिर से करे विचार : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को उम्रकैद के दोषियों की समय पूर्व रिहाई की नीति पर एक बार फिर विचार करने को कहा है. कोर्ट ने 2021 की नई नीति में समय पूर्व रिहाई के लिए कैदियों की आयु न्यूनतम 60 वर्ष होने के प्रावधान पर ऐतराज जताया है. कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह नीति टिकाऊ नहीं दिखती है. अदालत ने इस नीति की वैधता पर 'बड़ा संदेह' व्यक्त किया है. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा है कि प्रथम दृष्टया यह नीति टिकाऊ नही लगती है. पीठ ने यूपी सरकार को इस नीति पर चार महीने में जरूरी कदम उठाने के लिए कहा है.

पीठ ने कहा कि हम समय पूर्व रिहाई के आवेदन के लिए 60 वर्ष की न्यूनतम आयु निर्धारित करने वाले इस खंड की वैधता पर बड़ा संदेह व्यक्त करना चाहते हैं. इस शर्त का अर्थ यह है कि उम्रकैद की सजा पाए 20 साल के युवा अपराधी को समय पूर्व रिहाई का आवेदन करने के लिए 40 साल सलाखों के पीछे बिताने होंगे . हम चाहते हैं कि नीति के इस हिस्से की राज्य सरकार फिर से परीक्षण करें. दरअसल राज्यपाल, राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार दोषियों की समयपूर्व रिहाई के लिए संविधान के अनुच्छेद-161 के तहत प्रदत शक्ति का प्रयोग करते हैं. 

अदालत माता प्रसाद द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार कर रही है. याचिका में कहा गया था कि 26 जनवरी, 2020 को उसके अनुरोध को मंज़ूरी मिलने के बावजूद उसे जेल से रिहा नहीं किया गया है. उसका कहना था कि उसे वर्ष 2004 में दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी और 17 साल से अधिक सजा काटने के बाद उसे जेल से रिहा नहीं किया गया है . वहीं राज्य सरकार द्वारा दलील दी गई थी कि 28 जुलाई, 2021 को समय से पहले रिहाई की नीति में संशोधन किया गया था . याचिकाकर्ता के मामले में लागू होने वाला महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है कि ऐसे सभी दोषियों के आवेदनों पर विचार के लिए 60 वर्ष की आयु और बिना छूट के 20 वर्ष एवं छूट के साथ 25 वर्ष की हिरासत में होना अनिवार्य है. 

सुप्रीम कोर्ट ने BJP विधायक की हत्या की दोषी महिला को दिया पेरोल, CJI ने CBI पर ली चुटकी

राज्य सरकार का कहना था कि वर्ष 2018 की नीति के तहत याचिकाकर्ता का मामला कवर किया जाएगा, हालांकि 2021 की नीति के अनुसार वह 60 वर्ष की अपेक्षित आयु का नहीं है. राज्य सरकार ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता की अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है, वहां याचिकाकर्ता सजा के निलंबन के लिए आवेदन कर सकता है. लेकिन शीर्ष अदालत ने सक्षम अथॉरिटी को तीन महीने की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता के आवेदन पर फैसला लेने का निर्देश दिया. साथ ही कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि हाईकोर्ट में अपील लंबित होने पर राज्य सरकार को याचिकाकर्ता द्वारा समय पूर्व रिहाई के आवेदन पर विचार करने पर रोक है. 

पीठ ने राज्य सरकार की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि 2021 की नीति को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता बिना किसी छूट के लगभग 22 वर्ष और छूट के साथ लगभग 28 वर्ष जेल में बिता चुका है. उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की अन्य पीठ के समक्ष लंबित एक मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा था कि अपील लंबित होने के दौरान 20-25 वर्षों से जेलों में बंद उन कैदियों की समय पूर्व रिहाई पर पूर्व नीति(2018) के तहत विचार करने का निर्णय लिया गया है जिनके मामलों पर उस समय विचार नहीं किया गया था. 
 

Featured Video Of The Day
Monsoon 2025: देश में उत्तर से दक्षिण... गांव से शहर तक बाढ़-बारिश का कहर | Delhi Rain | Uttarkashi
Topics mentioned in this article