सुप्रीम कोर्ट ने असम में चुनाव आयोग की परिसीमन प्रक्रिया पर रोक लगाने से किया इनकार

याचिका में कहा गया है कि 8ए असम और तीन उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ भेदभाव करती है, जिसके लिए चुनाव आयोग को परिसीमन करने का अधिकार निर्धारित किया गया है.

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सुप्रीम कोर्ट
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  • सुप्रीम कोर्ट का परिसीमन प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार
  • 10 विपक्षी नेताओं की याचिका पर नोटिस जारी
  • सुप्रीम कोर्ट ने तीन हफ्ते में केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने असम में चुनाव आयोग की परिसीमन प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि असम में विधानसभा और संसदीय क्षेत्र के लिए चल रही परिसीमन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. ऐसे में हमारा विचार है कि इस पर रोक लगाना उचित नहीं है. इसलिए हम चुनाव आयोग को अपने कदम रोकने के लिए नहीं कहेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने 10 विपक्षी नेताओं की याचिका पर नोटिस जारी किया.  साथ ही तीन हफ्ते में केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा.

सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि परिसीमन पर रोक कैसे लगा सकते हैं? ये 2008 का कानून है. अब 15 साल बाद एकदम रोक नहीं लगा सकते. क़ानून लागू होने के 15 साल बाद भी हम वैधानिक प्रावधान पर रोक नहीं लगा सकते. हमें इसे उचित ठहराने के लिए उन्हें समय देना होगा. यह एक गंभीर संवैधानिक प्रक्रिया है.

दरअसल याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने मांग की थी कि फिलहाल परिसीमन प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए. 10 विपक्षी नेता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. असम समेत चार राज्यों में चल रही परिसीमन प्रक्रिया को चुनौती दी है. याचिका में चुनाव आयोग द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली और 20.06.2023 को अधिसूचित उसके प्रस्तावों को चुनौती दी गई है.

याचिकाकर्ता कांग्रेस, रायजोर दल, असम जातीय परिषद, सीपीआई (एम), सीपीआई, टीएमसी, एनसीपी, राजद और आंचलिक गण मोर्चा से संबंधित हैं.

याचिका में चुनाव आयोग के 20.06.2023 को जारी हालिया मसौदा आदेश को चुनौती दी गई है. इसमें असम में 126 विधानसभा और 14 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा को फिर से समायोजित करने के हालिया प्रस्ताव किया गया है.

याचिकाकर्ताओं में लुरिनज्योति गोगोई (असम जातीय परिषद), देबब्रत सैकिया (कांग्रेस), रोकीबुल हुसैन (कांग्रेस), अखिल गोगोई (रायजोर दल), मनोरंजन तालुकदार (सीपीआई (एम)), घनकंटा चुटिया (तृणमूल कांग्रेस), मुनिन महंत (सीपीआई), दिगंता कोंवर (आंचलिक गण मोर्चा), महेंद्र भुइयां (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) और स्वर्ण हजारिका (राष्ट्रीय जनता दल) शामिल हैं. 

याचिका में विभिन्न जिलों के लिए अलग-अलग औसत विधानसभा आकार लेकर ECI द्वारा अपनाई गई पद्धति को चुनौती दी गई है और तर्क दिया गया है कि परिसीमन की प्रक्रिया में जनसंख्या घनत्व या जनसंख्या की कोई भूमिका नहीं है.

याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 8ए को भी चुनौती दी गई है, जिसके अनुसार चुनाव आयोग अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर रहा है. याचिकाकर्ताओं ने इस प्रावधान को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह मनमाना और अपारदर्शी होने के साथ-साथ असम राज्य के लिए भी भेदभावपूर्ण है.

याचिका में तर्क दिया गया है कि देश के बाकी हिस्सों के लिए परिसीमन एक सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त निकाय द्वारा किया गया है और जम्मू-कश्मीर के लिए भी वही आयोग बनाया गया था.

याचिका में कहा गया है कि 8ए असम और तीन उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ भेदभाव करती है, जिसके लिए चुनाव आयोग को परिसीमन करने का अधिकार निर्धारित किया गया है. हालांकि याचिकाकर्ताओं की तरफ से इस मामले पर जल्द सुनवाई की मांग पर भरोसा देते हुए कहा कि वह जल्द ही इस मामले पर सुनवाई करेंगे.

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याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि परिसीमन की एक तय प्रक्रिया है. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज अध्यक्ष और राज्य के सभी दलों के जन प्रतिनिधि शामिल होते हैं. राज्य की आबादी की भागीदारी भी होती है. 2002 के परिसीमन में उस प्रक्रिया का पालन किया गया था, जबकि 2008 में संशोधन कर धारा 10 A को जोड़ा गया.

दरअसल असम के 126 विधानसभा और 14 लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन के लिए ECI के द्वारा ड्राफ़्ट प्रपोजल को चुनौती देते हुए दस विपक्षी पार्टियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. असम के परिसीमन को लेकर नौ विपक्षी पार्टियों ने ECI के मसौदे में लिए गए निर्णय की वैधता को चुनौती के साथ धारा 8A की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया गया है. याचिका में इसके लिए अपनाई गई प्रक्रिया पर सवाल उठाया गया है.

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