बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के मामले में BJP को राहत, SC ने वापस लिया अवमानना का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी 2023 को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के महासचिव बीएल संतोष द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर भारत के चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया.

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सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर 2022 को खुली अदालत में बीजेपी की ओर से दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए हामी भर दी थी.
नई दिल्ली:

बिहार के विधानसभा चुनाव 2020 में अपने उम्मीदवारों का आपराधिक इतिहास सार्वजनिक नहीं करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी को बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्याशियों के आपराधिक इतिहास सार्वजनिक ना करने पर अवमानना का दोषी ठहराकर एक लाख रुपये जुर्माने के 2021 के फैसले को वापस ले लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पार्टी ने जान-बूझकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवज्ञा नहीं की थी. 

सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी 2023 को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के महासचिव बीएल संतोष द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर भारत के चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया. इसे 2020 बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड को प्रकाशित नहीं करने के लिए पार्टी पर जुर्माना लगाने के आदेश के खिलाफ दाखिल किया गया था. 

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और बीआर गवई की पीठ अगस्त 2021 में पारित आदेश के खिलाफ बीजेपी महासचिव बीएल संतोष द्वारा दायर एक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड को प्रकाशित करने के निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए बीजेपी पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था. 

पीठ ने भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को पुनर्विचार याचिका में एक अतिरिक्त प्रतिवादी के रूप में जोड़ा और उसे नोटिस जारी किया था. पीठ ने अमिक्स क्यूरी के वी विश्वनाथन से भी सहायता करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर 2022 को खुली अदालत में बीजेपी की ओर से दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए हामी भर दी थी. 

बीजेपी के अलावा सात अन्य दलों को भी अवमानना का दंड दिया गया था. इसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल (यूनाइटेड), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था. 

दरअसल, जस्टिस आरएफ नरीमन (अब  सेवानिवृत्त) और बीआर गवई की पीठ द्वारा पारित मूल आदेश में उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटे के भीतर आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रकाशन, समाचार पत्रों और पार्टियों की आधिकारिक वेबसाइटों में इस तरह की जानकारी के प्रकाशन जैसे कई निर्देश शामिल थे.

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