सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही शारीरिक रूप से सुनवाई शुरू होगी. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि मार्च में सुनवाई शुरू होने की उम्मीद है. दरअसल, सरकारी नौकरियों और प्रवेशों के लिए मराठा कोटा की संवैधानिक वैधता का मामले में जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि मार्च में सुनवाई शुरू होने की उम्मीद है, इसलिए मामले में पूरी तैयारी करनी चाहिए और फिर तीन- चार हफ्ते बाद सुनवाई शुरू करनी चाहिए .कोर्ट ने कहा कि 8 मार्च से मामले की सुनवाई करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो मराठा आरक्षण मामले को 8 मार्च से शुरू कर 18 मार्च तक खत्म कर देगा. 8, 9 और 10 मार्च को याचिकाकर्ता अपनी बहस शुरू करेंगे.
जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हमें इंदिरा साहनी मामले में संविधान पीठ के फैसले के तहत बाध्य होकर चलना चाहिए हालांकि याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि मामले को सात जजों को भेजा जाना चाहिए. महाराष्ट्र सरकार ने मामले की सुनवाई शारीरिक रूप से करनी चाहिए. राज्य को वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि मामले से संबंधित कागजात काफी ज्यादा हैं ये 30-40 वाल्यूम में हैं जिनको प्रिंट भी किया जाना है . इसमें दो हफ्ते लगेंगे और फिर सभी पक्षकारों को देना है . सुना है कि मार्च में शारीरिक रूप से सुनवाई शुरू होगी. कोर्ट को फैसला करना था कि शारीरिक रूप सुनवाई हो सकती है या वर्चुअल सुनवाई होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो 5 फरवरी को तय करेगा शारीरिक सुनवाई की जाए या नहीं. दरअसल, मराठा समुदाय को आरक्षण के मामले में महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. मराठा आरक्षण पर लगी रोक हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार ने याचिका दाखिल की .याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण पर लगाई गई अंतरिम रोक हटाई जाए.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण पर रोक लगाते हुए मामले को सुनवाई के लिए बड़ी पीठ के समक्ष भेज दिया था .सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर 2020 के अपने एक अंतरिम आदेश में कहा है कि साल 2020-2021 में नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में एडमीशन के दौरान मराठा आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. तीन जजों की बेंच ने इस मामले को विचार के लिए एक बड़ी बेंच के पास भेजा है. कोर्ट ने कहा कि यह बेंच मराठा आरक्षण की वैधता पर विचार करेगी.
बता दें कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) अधिनियम, 2018 को नौकरियों और एडमिशनों के लिए महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए लागू किया गया था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा कि 16 प्रतिशत आरक्षण उचित नहीं है. उसने कहा कि रोजगार में आरक्षण 12 प्रतिशत और एडमिशन में 13 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. बाद में कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
महाराष्ट्र सरकार ने 30 नवंबर 2018 को विधानसभा में मराठा आरक्षण बिल पास किया था. इसके तहत मराठी लोगों को राज्य की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है. राज्य सरकार के इस फैसले की वैधता के खिलाफ बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. इस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया था.