- राज्यपाल की शक्तियों से जुड़े राष्ट्रपति के 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को फैसला सुना सकता है
- संविधान पीठ तय करेगी कि क्या राज्यपाल-राष्ट्रपति के ऊपर विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा तय की जा सकती है
- सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने पहले कहा था कि गवर्नर को राज्य के विधेयकों पर 3 महीने में फैसला लेना होगा
गवर्नर और राष्ट्रपति की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को बड़ा फैसला सुना सकता है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के 14 सवालों पर शीर्ष अदालत की पांच जजों की संविधान पीठ अपनी राय देने वाली है. इस फैसले का देश की संघीय व्यवस्था, राज्यों के अधिकार और गवर्नर की भूमिका पर दूरगामी प्रभाव होगा. संविधान पीठ यह तय करेगी कि क्या अदालत राज्यपाल और राष्ट्रपति पर राज्य के विधेयकों (State Bills) पर निर्णय लेने की समयसीमा तय कर सकती है या नहीं.
5 जजों की संविधान पीठ सुनाएगी फैसला
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर की पीठ यह भी फैसला देगी कि क्या गवर्नर की बिल सम्बंधी शक्तियां न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं या नहीं. यह फैसला राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए 14 संवैधानिक सवालों पर आएगा. राष्ट्रपति का यह संदर्भ सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच के उस फैसले के बाद आया था, जिसमें तमिलनाडु सरकार के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा गया था कि गवर्नर बिलों पर फैसला करने में देरी नहीं कर सकते.
गवर्नर को 3 महीने में निर्णय लेने का दिया था फैसला
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 10 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद सितंबर में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि गवर्नर को किसी भी राज्य विधेयक पर तीन महीने में निर्णय लेना होगा, चाहे उसे रोकना हो, पास करना हो या फिर राष्ट्रपति को भेजना हो.
फैसले पर राष्ट्रपति ने SC से पूछे 14 सवाल
कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर बिल को दोबारा पारित करके गवर्नर के पास भेजा जाता है तो उस पर एक महीने में निर्णय लेना होगा. गवर्नर द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर तीन महीने में फैसला करना चाहिए. इसी फैसले के बाद राष्ट्रपति ने यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के पास औपचारिक रूप से भेज दिया था, जिसमें 14 महत्वपूर्ण मुद्दों पर राय मांगी गई थी. इनमें प्रमुख सवाल ये हैं-
- अनुच्छेद 200 के तहत गवर्नर के पास बिल आने पर क्या-क्या विकल्प हैं?
- क्या गवर्नर मंत्रिपरिषद की सलाह से बाध्य हैं?
- अनुच्छेद 200 के तहत गवर्नर के निर्णय न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं या नहीं?
- क्या अनुच्छेद 361 गवर्नर की कार्रवाई को अदालती समीक्षा से पूरी तरह बाहर करता है?
- जब संविधान में कोई समयसीमा नहीं है तो क्या सुप्रीम कोर्ट समयसीमा तय कर सकता है?
केंद्र की दलील, SC को ऐसा अधिकार नहीं
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को गवर्नर और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा निर्धारित करने का अधिकार नहीं है. लेकिन उन्होंने माना कि गवर्नर बिलों को अनिश्चितकाल तक रोककर नहीं रख सकते.
राज्यों ने समयसीमा को बताया था जरूरी
सुनवाई में तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक सहित कई राज्यों ने 8 अप्रैल के सुप्रीम कोर्ट के फैसला को सही बताया था और कहा था कि समयसीमा हटाने की कोई जरूरत नहीं है. उनका कहना था कि गवर्नर द्वारा बिलों पर फैसला लेने में देरी संविधान के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाती है.














