सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को CBI और CVC को समयबद्ध तरीके से जांच करने के लिए दिशा-निर्देश मांगने वाली याचिका पर सुनवाई हुई. इस सुनवाई के दौरान CJI संजीव खन्ना ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि कभी-कभी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी जाती है और अदालतें जांच की अनुमति दे दी हैं. CJI ने कहा कि हम सर्वव्यापी निर्देश नहीं दे सकते और निर्देश केस विशेष के लिए होने चाहिए. आप हाइकोर्ट भी जा सकते हैं. वहीं, सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि पिछले 4 सालों में कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है. CBI के पास 2500 से अधिक मामले लंबित हैं.
याचिकाकर्ता ने कहा कि ताकतवर लोग सत्ता में आते हैं और सीबीआई उसी के अनुसार काम करती है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र की दलीलें सुनने के बाद कहा कि 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल किया जाए और उसके बाद जवाब दाखिल किया जाए. यह याचिका विभिन्न मामलों का हवाला देते हुए दायर की गई थी, जिनमें सीबीआई द्वारा बहुत धीमी प्रगति या काम करने की बात कही गई है.
याचिका में जांच में देरी के लिए दिल्ली पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम 1946 या केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) अधिनियम 2013 में समयबद्ध जांच पूरी करने के दिशा-निर्देशों की कमी को जिम्मेदार ठहराया गया है. कहा गया है कि इस प्रकार कई मामलों की जांच में देरी होती है, खासकर अगर वे राजनीति या नौकरशाही के उच्च और शक्तिशाली लोगों से जुड़े हाई प्रोफाइल मामले हों और इस तरह कई मामले सालों या दशकों से लंबित हैं.
इसी कारण से एजेंसी की कई बार आलोचना भी हुई है क्योंकि इसने अतीत में कई घोटालों और मामलों को ठीक से नहीं संभाला है. पीवी नरसिम्हा राव, जयललिता, लालू प्रसाद यादव, मायावती और मुलायम सिंह यादव जैसे प्रमुख राजनेताओं की जांच में देरी करने के मामलों की भी याचिका में चर्चा की गई है. इस रणनीति के कारण या तो वे बरी हो जाते हैं या उन पर मुकदमा नहीं चलाया जाता.