नाबालिग बच्चियों से शादी का मामला बीते कई दिनों से सुर्खियों में बना हुआ है. इसे लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला भी आया है. कोर्ट ने अपने फैसले में बाल विवाह पर गाइडलाइन जारी कर कहा है कि बाल विवाह रोकथाम अधिनियम को किसी भी व्यक्तिगत कानून के तहत परंपराओं से बाधित नहीं किया जा सकता है.कोर्ट के इस फैसले के बाद नाबालिग की सगाई कराने पर भी प्रतिबंध होगा. यानी अगर कोई ये सोचे की नाबालिग बच्ची की अभी सगाई करा या बच्ची से सगाई कर लेते हैं और शादी कुछ साल बाद जब वह बालिक हो जाएगी तब करेंगे, तो ये भी मान्य नहीं होगा. ऐसा करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी. आपको बता दें कि देश में अभी भी कई ऐसे राज्य और कई ऐसे समुदाय हैं जहां नाबालिग बच्चियों से विवाह एक आम आम बात है. इसमें खास तौर पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का जिक्र आता है. इसके तहत प्यूबर्टी की उम्र और वयस्कता की उम्र एक समान है. हालांकि, इसे लेकर कोर्ट में मामला है, जिसपर कोर्ट को फैसला सुनाना है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड क्या कहता है
मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 नाबालिग के साथ शादी की अनुमति देती है. इस कानून में साफ तौर पर कहा गया है कि प्यूबर्टी की उम्र ( जिसे 15 साल मानी जाती है) और वयस्कता की उम्र समान है. 1937 के कानून की धारा 2 में प्रावधान है कि सभी विवाह शरीयत के तहत आएंगे. भले ही इसमें कोई भी रीति-रिवाज और परंपरा अपनाई गई हो.
क्या कहता है बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006
बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 (पीसीएमए) के तहत दूल्हे और दुल्हन में किसी एक की भी उम्र विवाह योग्य न होने पर इसे एक बाल विवाह के रूप में परिभाषित करता है. इसके तहत 18 वर्ष या उससे कम उम्र की बच्चियों और 21 साल से कम उम्र के लड़के को बच्चे के तौर पर संदर्भित किया जाता है. यह कानून किसी भी एक पक्ष की तरफ से कोर्ट में चुनौती दिए जाने पर इस बाल विवाह को रद्द करने योग्य बनाता है.
देश के कई राज्यों में आज भी होता है बाल विवाह
हम भले आज 2024 में होकर नए समाज की परिकल्पनाओं को नई ऊंचाइयां दे रहे हों लेकिन देश में आज भी ऐसे कई राज्य हैं, जहां नाबालिग बच्यिों की शादी करा दी जा रही है. अतिरिक्त सॉलिसटर जनरल ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान वर्तमान स्थिति के बारे में बताते हुए कहा था कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और असम जैसे राज्यों में बाल विवाह के मामले सबसे ज्यादा देखे जा गए हैं.
नाबालिग बच्ची से शादी अमान्य - हाईकोर्ट
सुप्रीम कोर्ट से पहले कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी अपने एक हालिया आदेश में कहा था कि नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी अमान्य मानी जाएगी. फिर चाहे इसे इस्लाम धर्म ने अपने नियमों में जायज ही क्यों न ठहराया हो. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि नाबालिग रहने पर शादी कराना यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण अधिनियम यानी पॉस्को के प्रावधानों का उल्लंघन है.
पहले भी आ चुके हैं ऐसे मामले
कोर्ट के सामने इस तरह का यह कोई पहला मामला नहीं है. 2022 में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोरक्ट ने जावेद के केस में कहा था कि मुस्लिम लड़की जो नाबालिग है, लेकिन अगर लड़की शारीरिक तौर पर अगर वयस्क हो तो वह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत निकाह कर सकती है.
पंजाब हाई कोर्ट ने भी दिया फैसला
नाबालिग से शादी को लेकर पंजाब हाई कोर्ट ने भी एक फैसला सुनाया था.उस दौरान कोर्ट के सामने 16 साल की लड़की और 21 साल के लड़के ने अर्जी दाखिल कर सुरक्षा मुहैयार कराने की गुहार लगाई थी. कोर्ट को बताया गया था कि उन्हें कुछ समय पहले प्यार हुआ है और उन्होंने उसके बाद निकाह कर लिया है. याचिकाकर्ता ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का हवाला देते हुए कहा था कि अगर लड़की प्यूबर्टी यानी शारीरिक तौर पर अगर वयस्क है तो वह बालिग मानी जाती है. ऐसे वह अपनी मर्जी से किसी से भी निकाह करने की हकदार होती है. उस दौरान हाई कोर्ट ने भी कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ की धारा 195 के तहत नाबालिग लड़की प्यूबर्टी पाने के बाद निकाह के योग्य हो जाती है.