करवा चौथ के एक विज्ञापन को वापस लेने का जिक्र कर सुप्रीम कोर्ट के जज ने समलैंगिकता मुद्दे पर की अहम टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जज जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ (Justice D.Y. Chandrachud) ने करवा चौथ के एक विज्ञापन का जिक्र करते हुए समलैंगिकता के मुद्दे पर अहम टिप्पणी की है.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जज जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ (Justice D.Y. Chandrachud) ने करवा चौथ के एक विज्ञापन का जिक्र करते हुए समलैंगिकता के मुद्दे पर अहम टिप्पणी की है. उन्होंने शनिवार को एक व्याख्यान में कहा कि किसी मामले में किए गए न्याय को बहुत जल्द ही पलटा जा सकता है, अगर लोग हाशिए पर लोगों के हितों की रक्षा के लिए सही रास्ते पर नहीं चलते हैं. हाल ही में करवा चौथ के एक विज्ञापन को विरोध के मद्देनजर वापस लेने का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि नवतेज सिंह जौहर मामले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से मुक्त करना अकेले एलजीबीटीक्यू समुदाय (LGBTQ community) के सदस्यों को अपने अधिकारों का अहसास कराने के लिए पर्याप्त नहीं था. करवा चौथ से संबंधित इस विज्ञापन में समलैंगिक जोड़े को दिखाया गया था.

न्यायाधीश देश के उत्तरी हिस्सों में प्रचलित हिंदू त्योहार 'करवा चौथ' के संबंध में भारतीय फर्म डाबर के विज्ञापन का जिक्र कर रहे थे. इस त्योहार में पत्नियां अपने पति की लंबी आयु के लिए दिन भर का उपवास रखती हैं और 'पूजा' करती हैं. सोशल मीडिया पर और मध्य प्रदेश के एक राजनेता की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद, एक महिला जोड़े के त्योहार मनाते हुए विज्ञापन को डाबर द्वारा वापस ले लिया गया था. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, 'हालांकि अदालतें हाशिये के लोगों के हितों की रक्षा के लिए संवैधानिक अधिकारों के दायरा का विस्तार करती हैं, लेकिन यदि लोग सही मार्ग नहीं अपनाते हैं, तो न्याय शीघ्र ही प्रभावहीन हो जाता है. 

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पुणे में आईएलएस लॉ कॉलेज में ‘भारत में मध्यस्थता का भविष्य' विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा, ‘‘नवतेज सिंह जौहर मामले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाना ही एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों को उनके अधिकारों का एहसास करने के लिए पर्याप्त नहीं था. नवतेज सिंह मामले में महत्वपूर्ण फैसले के चार साल बाद, करवा चौथ मनाते हुए एक समलैंगिक जोड़े को चित्रित करने वाली एक फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन को हटा दिया गया था.''

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न्यायाधीश ने कहा कि भारत की अदालतों पर मुकदमों का भारी बोझ है और लंबित मुकदमों के अंबार को देखते हुए मध्यस्थता जैसा विवाद समाधान तंत्र एक महत्वपूर्ण उपकरण है. उन्होंने कहा कि मध्यस्थता सामाजिक परिवर्तन ला सकती है और हाशिये के समुदायों और महिलाओं के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो सकती है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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