- सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस या एजेंसियों द्वारा पूछताछ के दौरान वकील की मौजूदगी की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की.
- याचिका में वकील की आंशिक या सीमित पहुंच को व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है.
- याचिका में अनुच्छेद 20(3), 21 और 22 के तहत वकील की मौजूदगी को अनिवार्य अधिकार घोषित करने की मांग की गई है.
पुलिस या अन्य जांच एजेंसियों द्वारा पूछताछ के दौरान किसी व्यक्ति के वकील को उपस्थित रहने की अनुमति दी जाए... सुप्रीम कोर्ट में दाखिल इस मांग वाली याचिका पर बुधवार को सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में परीक्षण करने को तैयार है. सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें यह निर्देश देने की मांग की गई है कि पुलिस या जांच एजेंसियों द्वारा पूछताछ के दौरान व्यक्ति के वकील की मौजूदगी की अनुमति देने की मांग की गई है.
CJI की पीठ ने की सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने वकील शफी मैथर की ओर से दायर इस याचिका पर सुनवाई की. सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने यह जानना चाहा कि क्या याचिका में ऐसे किसी विशिष्ट मामले का उल्लेख है, जहां पूछताछ के दौरान किसी व्यक्ति पर दबाव या ज़बरदस्ती की गई हो.
जस्टिस चंद्रन ने पूछा कि क्या याचिका में ऐसी कोई घटनाओं का उल्लेख है जिनसे वकील की मौजूदगी की ज़रूरत साबित होती हो. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी ने दलील दी कि सार्वजनिक हित में यह आवश्यक है कि किसी व्यक्ति से पूछताछ के दौरान उसका वकील मौजूद रहे, ताकि वह बता सके कि कौन-सा सवाल आत्मदोष (self-incrimination) की श्रेणी में आता है.
इंडिया: एनुअल रिपोर्ट ऑन टॉर्चर 2019 का किया जिक्र
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत के सामने ऐसे उदाहरण रखे जाने चाहिए. इस पर गुरुस्वामी ने ‘इंडिया: एनुअल रिपोर्ट ऑन टॉर्चर 2019' (National Campaign Against Torture) का हवाला दिया, जिसमें देश में 2019 के दौरान यातना और पुलिस की दमनात्मक प्रवृत्तियों से जुड़ी प्रमुख घटनाओं का ज़िक्र है.
इसके बाद अदालत ने केंद्र को नोटिस जारी किया. याचिका में कहा गया है कि पूछताछ के दौरान वकील तक “आंशिक या सीमित पहुंच” देना व्यक्ति के मौलिक अधिकारों, अनुच्छेद 20(3), 21 और 22 का उल्लंघन है, और यह हिरासत में हिंसा या मौत जैसी घटनाओं की आशंका बढ़ाता है.
याचिका में कहा गया है कि कानूनी सलाह तक विवेकाधीन या आंशिक पहुंच का यह चलन संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत आत्मदोष से बचाव के अधिकार, अनुच्छेद 22 के तहत वकील की सहायता के अधिकार, और अनुच्छेद 21 के तहत निष्पक्ष जांच व निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन करता है.
इसके अलावा, मनी लॉन्ड्रिंग (PMLA), नारकोटिक ड्रग्स एंड साइक्ट्रोपिक सब्सटेंसेज़ एक्ट (NDPS) जैसे विशेष कानूनों में पूछताछ के दौरान वकील को केवल “दृश्य दूरी पर, परंतु श्रव्य सीमा से बाहर” रहने की अनुमति देने की प्रथा को “ज़बरदस्ती की पूछताछ” का माहौल बनाने वाला बताया गया है.
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 41D, भारत न्याय संहिता (BNSS) की धारा 38, और विशेष कानूनों जैसे PMLA की धारा 50 की व्याख्या इस अधिकार को शामिल करते हुए की जाए. पूछताछ या जांच के दौरान व्यक्ति को वकील तक पहुँच देने के लिए दिशानिर्देश बनाए जाएं ताकि उसके मौलिक अधिकारों — अनुच्छेद 20(3), 21 और 22(1) — की रक्षा हो सके.
किसी भी व्यक्ति को पूछताछ से पहले मौन रहने के अधिकार (Right to Silence) और वकील की सहायता के अधिकार की अनिवार्य सूचना देने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाएं.