अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है सुप्रीम कोर्ट... BJP सांसद निशिकांत दुबे का न्यायपालिका पर हमला

संविधान के अनुच्छेद 368 का हवाला देते हुए दुबे ने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है और उच्चतम न्यायालय का काम कानूनों की व्याख्या करना है. उन्होंने कहा कि अदालत सरकार को आदेश दे सकती है, लेकिन संसद को नहीं.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयान अब और भी तीखी और नाराजगी भरी हो गई है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बाद अब झारखंड के गोड्डा से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ तीखा हमला बोला है. उन्होंने शनिवार को कहा कि कानून अगर सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए.

भाजपा सांसद ने कहा, "देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है. सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है. अगर हर चीज के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है, तो संसद और राज्य विधानसभा को बंद कर देना चाहिए."

निशिकांत दुबे ने न्यायालय पर आरोप लगाया कि वह विधायिका द्वारा पारित कानूनों को रद्द करके संसद की विधायी शक्तियों को अपने हाथ में ले रहा है और यहां तक ​​कि राष्ट्रपति को निर्देश भी दे रहा है, जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कर्ता प्राधिकारी हैं.

दुबे ने एक बयान में न्यायपालिका की शक्ति की औचित्य और सीमाओं पर सवाल उठाते हुए कहा, "आप नियुक्ति प्राधिकारी को कैसे निर्देश दे सकते हैं? राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं. संसद इस देश का कानून बनाती है. आप उस संसद को निर्देश देंगे? आपने नया कानून कैसे बनाया? किस कानून में लिखा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना है? इसका मतलब है कि आप इस देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं. जब संसद बैठेगी, तो इस पर विस्तृत चर्चा होगी."

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उन्होंने अधिनियम द्वारा ‘उपयोग के कारण वक्फ' प्रावधान को कमजोर करने पर अदालत की आलोचनात्मक टिप्पणियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसने अयोध्या में राम मंदिर समेत मंदिरों से जुड़े मामलों में दस्तावेजी सबूत मांगे हैं, लेकिन मौजूदा मामले में इसी तरह की आवश्यकता को नजरअंदाज करने का मार्ग चुना है.

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संविधान के अनुच्छेद 368 का हवाला देते हुए दुबे ने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है और उच्चतम न्यायालय का काम कानूनों की व्याख्या करना है. उन्होंने कहा कि अदालत सरकार को आदेश दे सकती है, लेकिन संसद को नहीं.

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Photo Credit: ANI

दुबे ने अधिकार क्षेत्र के कथित अतिक्रमण को लेकर अदालत को निशाने पर लेने के लिए उसके पूर्व के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि उसने सहमति से समलैंगिक संबंध स्थापित करने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया जो पूर्ववर्ती भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अंतर्गत आता था तथा आईटी अधिनियम की धारा 66 (ए) को निरस्त कर दिया.

उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. अधिनियम को इस महीने की शुरुआत में संसद ने पारित किया था.

न्यायालय द्वारा इस कानून के कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर सवाल उठाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने अगली सुनवाई तक उन्हें लागू न करने पर सहमति व्यक्त की है.

राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल में समय सीमा निर्धारित किये जाने पर भी बहस शुरू हो गई है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शीर्ष अदालत के इस निर्णय से असहमति जताई है. उन्होंने कहा कि, "अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है."

धनखड़ यह भी कहते रहे हैं कि उच्चतम न्यायालय द्वारा 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द करना गलत था.

वहीं दूसरी ओर, विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के संबंध में शीर्ष अदालत के उक्त निर्देश के साथ-साथ वक्फ (संशोधन) अधिनियम मामले में उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही की सराहना की है.

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