सुप्रीम कोर्ट ने गवली की रिहाई पर रोक जारी रखी, सुनाया 'शोले' का डायलॉग- "सो जा बेटे वरना गब्बर आ जाएगा"

गैंगस्टर से राजनेता बना अरुण गवली 17 सालों से सलाखों के पीछे है, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत दोषियों को सजा में छूट के लिए कम से कम 40 साल की सजा काटनी होती है.

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नई दिल्ली:

गैंगस्टर से राजनेता बने अरुण गवली (Arun Gawli) की समय पूर्व रिहाई पर रोक जारी रखते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शोले फिल्म का मशहूर डायलॉग सुना दिया. जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने गवली की समय पूर्व रिहाई पर रोक लगाने के अपने पहले के आदेश की पुष्टि की. अरुण गवली हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.

जस्टिस सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के 5 अप्रैल के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाने वाले अपने 3 जून के आदेश को बरकरार रखा और अपीलों पर सुनवाई के लिए 20 नवंबर की तारीख तय की. हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों को 2006 की छूट नीति के तहत समय पूर्व रिहाई के लिए गवली के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था. 

शुरुआत में महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजा ठाकरे ने दलील दी कि गवली के खिलाफ 46 से अधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या के करीब 10 मामले शामिल हैं. शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ वकील से पूछा कि क्या गवली ने पिछले पांच से आठ सालों में कुछ किया है. ठाकरे ने जवाब दिया कि गैंगस्टर 17 सालों से सलाखों के पीछे है. 

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इसके बाद पीठ ने पूछा कि "क्या वह सुधर गया है या नहीं, जब वह सलाखों के पीछे होगा तो समाज को कैसे पता चलेगा? वह 72 साल का है. हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत दोषियों को सजा में छूट के लिए कम से कम 40 साल की सजा काटनी होती है. यह 2015 की नीति के अनुसार है. 

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गवली को 2009 में दोषी ठहराया गया था

अरुण गवली की ओर से पेश वरिष्ठ वकील नित्या रामकृष्णन ने कहा कि मामले में अन्य सह-आरोपियों को जमानत दी गई है और बॉम्बे हाईकोर्ट ने समय से पहले रिहाई देकर सही किया. राज्य सरकार ने अपनी सजा में छूट की नीति (2015 में) बदल दी है, लेकिन जज ने माना है कि वह नीति लागू होगी जो उस समय लागू थी जब उसे दोषी ठहराया गया था. सन 2006 की नीति लागू होगी क्योंकि उसे 2009 में दोषी ठहराया गया था. यह नीति उम्र और दुर्बलता के आधार पर छूट की अनुमति देती है. 

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अदालत ने कहा कि लेकिन आपको पता होना चाहिए कि हर कोई अरुण गवली नहीं है. फिल्म 'शोले' में एक मशहूर डायलॉग है, 'सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जाएगा. यहां यह मामला हो सकता है. 

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गवली हृदय रोग से पीड़ित

गवली की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में विस्तार से बताते हुए रामकृष्णन ने अदालत को बताया कि वह हृदय रोग से पीड़ित है और उसके फेफड़े में खराबी है. इस पर महाराष्ट्र सरकार के वकील ने कहा कि 40 साल तक लगातार धूम्रपान करने की वजह से ऐसा हुआ है. रामकृष्णन ने जवाब दिया कि तो क्या हुआ, आप उसे इस वजह से अंदर नहीं रख सकते. उस पर धूम्रपान का कोई मुकदमा नहीं चल रहा है. सलाहकार बोर्ड ने प्रमाणित किया है कि वह अपनी उम्र के हिसाब से कमजोर है, इसलिए 2006 की नीति लागू होगी क्योंकि उसे तब दोषी ठहराया गया था. 2015 की बाद की नीति लागू नहीं हो सकती.

दरअसल 3 जून को शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के 5 अप्रैल के आदेश के संचालन पर रोक लगा दी थी. पीठ ने गवली की याचिका को स्वीकार कर लिया था, जिसमें 31 अगस्त, 2012 को उसकी दोषसिद्धि की तिथि पर प्रचलित 10 जनवरी, 2006 की छूट नीति के कारण राज्य सरकार को उसकी समय पूर्व रिहाई के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी. 

मुंबई शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की 2007 में की गई हत्या के मामले में गवली आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. अगस्त 2012 में मुंबई की  सत्र अदालत ने उन्हें इस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 17 लाख रुपये का जुर्माना लगाया.

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